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झारखंड : अब लोगों को मिलेगी शुद्ध शहद से बनी चाॅकलेट की मिठास

- बारकुली पंचायत की महिलाएं बनाएंगी हनी चाॅकलेट, ले चुकी हैं प्रशिक्षण अनिल मिश्रा खूंटी, 27 मई (हि.स.)। खूंटी सहित राज्य के लोग बहुत जल्द महिलाओं द्वारा उत्पादित हनी चाॅकलेट अर्थात शुद्ध शहद से बने चाॅकलेट का स्वाद ले पाएंगे। तोरपा प्रखंड की बारकुली पंचायत के महिला मंडल से जुड़ी महिलाएं कोरोना के खत्म होते ही हनी चाॅकलेट का उत्पादन शुरू कर देंगी। इसका प्रशिक्षण भी महिलाओं दिया जा चुका है। शहद के लिए बिहार भेजे गये मधुमक्खी के बक्सों के वापस आने के बाद मधु से चाॅकलेट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी। फरवरी महीने में खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय श्रीवास्तव ने कसमार में 30 महिलाओं के बीच 300 इटालियन मधुमक्खी के बक्से का वितरण भी किया था। खादी ग्रामोद्योग भारत सरकार के हेडेम एग्रोटेक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सहयोग से बारकुली पंचायत के कसमार गांव की महिलाओं को मधुमक्खी पालन और प्रबंधन का तीन सप्ताह का प्रशिक्षण दिया गया है। प्रशिक्षक जोहर ग्राम विकास टेक्निकल स्टोर के अशोक ने बताया कि मधुमक्खी पालन कृषि आधारित व्यवसाय है। इस व्यवसाय को कोई भी व्यक्ति तीन सप्ताह तक कुशल प्रबंधन का प्रशिक्षण लेकर मधुमक्खी पालन का काम शुरू कर सकता है। इस क्षेत्र में रोजगार की आपार संभावनाएं हैं। बेरोजगार महिलाएं और युवाओं के लिए इस क्षेत्र में रोजगार के सुनहरा अवसर हैं। मधुमक्खी पालन करने पर एक साथ शहद, मोम, प्रोपोलिस आदि उत्पादों के जरिए अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने बताया कि बाजार में शहद लगभग तीन सौ रुपये प्रति किलो की दर पर बिकती है। कम समय का प्रशिक्षण और कम पूंजी से मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया जा सकता है। बेरोजगार लोग आसानी मधुमक्खी पालन कर अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं। अच्छी आमदनी और कम लागत को देखकर ही महिलाओं का झुकाव इस ओर हुआ है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाते हैं मधुमक्खी के बक्से प्रशिक्षक आशोक कुमार ने बताया कि मौसम के हिसाब से विभिन्न जिलों में मधुमक्खियों के बॉक्स भेजकर हर साल एक हजार से बारह क्विंंटल शहद एकत्रित हो सकती है, जहां मधुमक्खी पालन होता है। वहां फसलों में पराग कण की क्रिया तेजी से होती है और पैदावार भी 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि विभिन्न क्षेत्रों में मधुमक्खियों के बक्से को ले जाकर उन्हें विभिन्न स्थानों पर रखा जाता है। मधुमक्खियों द्वारा इनमें शहद जुटाया जाता है। पर्याप्त शहद जमा हो जाने पर इन बक्सों को एकत्रित किया जाता है और शहद को बोतलों व डिब्बों में भरा जाता है और बाजार में भेजा जाता है। कसमार में महिलाओं ने बताया कि एक स्थानीय फूल ठेलकांटा के कारण लगभग 10 दिन मधुमक्खी के बक्से गांव में रखे गये थे। उसके बाद उन्हें ओरमांझी भेजा गया। वहां से करंज और तरबूज की खेती है। बाद में उन्हें रामगढ़ जिले के गोला भेजा जायेगा। बारकुली पंचायत की महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए बहुत जल्दी इमली प्रोसेसिंग से भी जुड़ेंगी। आत्मनिर्भता की ओर कदम बढ़ाते हुए कसमार की महिलाओं ने लाखों रुपये की नर्सरी तैयार की है। बहुत जल्द महिलाएं इमली प्रोसेसिंग का काम भी शुरू करेंगी। हिन्दुस्थान समाचार Submitted By: Edited By: Sharda Vandana Published By: Sharda Vandana at May 27 2021 10:46AM

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