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आईआईटी और ब्रिटिश यूनिवर्सिटी ने बनाया रेलमार्गों के खतरों का अध्ययन करने वाला विशेष यंत्र

नई दिल्ली, 19 अप्रैल (आईएएनएस)। भारतीय आईआईटी व एक ब्रिटिश यूनिवर्सिटी ने रेलमार्गों पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के अध्ययन करने वाला यंत्र विकसित किया है। इसके तहत खतरों के प्रभाव को कम करने की रणनीतियां सुझाई गई हैं ताकि रेलमार्गों की आधारभूत संरचना को सतत बनाया जा सके। यह महत्वपूर्ण रिसर्च आईआईटी मंडी अवं डरहम यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम ने की है। आईआईटी मंडी अवं डरहम यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ताओं द्वारा निर्मित यंत्र का निर्माण इस तरीके से किया गया, ताकि वह रेलमार्गों को बिछाने में प्रयोग होने वाली सघन मिट्टी के अंदर सक्शन को नाप सके। इस प्रक्रिया में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि यह कार्य मिट्टी के सैंपल पर प्रयोगशाला में इस्तेमाल होने वाले यंत्र के साथ संपन्न किया जा सके। इस कार्य को अमेरिकन सोसाइटी ऑफ सिविल इंजीनियरिंग द्वारा प्रकाशित एक प्रतिष्ठित पत्रिका जर्नल ऑफ जिओटेक्निकल एंड जिओएन्वॉयर्नमेंटल इंजीनियरिंग में भी प्रकाशित किया जा चुका है। आईआईटी मंडी से डॉ. आशुतोष कुमार ने यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ, यूनाइटेड किंगडम से अस्सिटैंट प्रोफेसर डॉ. अर्श अजीजी एवं डरहम यूनिवर्सिटी यूनाइटेड किंगडम के इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत प्रोफेसर डॉ. डेविड ज्यॉफ्री टोल के साथ मिलकर इस शोध को कार्यान्वित किया। रेलमार्गों की आधारभूत संरचना में ट्रैकबेड को बिछाने के लिए सघन मिट्टी से बनाये गए तटबंध का उपयोग किया जाता है, जिसका काम रेल चालन के दौरान रेल पटरी से आने वाले भार को संभालना होता है। पारम्परिक रूप से अपनायी जाने वाली तटबंध निर्माण प्रक्रिया केवल रेलों के गमन से उžपन हुए भार को संभालने के लिए ही पर्याप्त जानकारी प्रदान करती है। लेकिन बारिश एवं सूखे के बदलावों की वजह से तटबंध की मिट्टी में पानी की मात्रा बदलती रहती है, जिसकी वजह से सक्शन भी बदलता है और मिट्टी की क्षमता पर भी असर पड़ता है। इन सब पहलुओं का पारम्परिक निर्माण प्रक्रिया में ज्यादातर उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन बदलती जलवायु के कारण बारिश और सूखे की प्राकृतिक गतिविधियां और भी ज्यादा गंभीर होती जा रही है जिसके फलस्वरूप यातायात संरचना के सुचारु कार्यान्यवन के सामने नई चुनौतियां उत्पन्न हो गयी है। डॉ. आशुतोष कुमार के मुताबिक जलवायु परिवर्तन एक चुनौती की तरह हमारे सामने खड़ी है जो आजकल भारी बारिश एवं सूखे का प्रमुख कारण भी है। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर, सतत एवं टिकाऊ परिवहन की आधारभूत संरचना प्रणाली विकसित करने के लिए आईआईटी मंडी अवं डरहम यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम मिलकर शोध कार्य में लगे हुए हैं। सघन मिटटी जिसका इस्तेमाल तटबंध बनाने में किया जाता है ज्यादातर असंतृप्त अवस्था में पायी जाती है। वातावरण में होने वाले बदलावों की वजह से इसकी क्षमता कमजोर होती जाती है, ऐसा बारिश के मौसम में पानी के मिट्टी में प्रवेश एवं सूखे के समय में बाहर निकलने की वजह से होता है। बार-बार गुजरने वाले रेल भार असंतृप्त सघन मिटटी की क्षमता को घटाने वाली प्रक्रिया को और भी विकट बना देते है। इन सभी वजहों से रेल पथ का प्रदर्शन प्रभावित होता है और यह सब इसकी पूर्ण असफलता का कारण भी बन सकता है। इस अध्ययन में प्रयोग हुई मिट्टी के सैंपल को 650 किलोमीटर लम्बी रेलवे कोल लाइन से लाया गया जो की लगभग 40 कोयले की खदानों को रिचर्डस बे कोल टर्मिनल, साउथ अफ्रीका से जोड़ती है। अध्ययन कार्य का व्याख्यान करते हुए डॉ. आशुतोष कुमार कहते हैं कि यह शोध अपने आप में अनोखा इसलिए है क्योंकि असंतृप्त सघन मिट्टी जिसका इस्तेमाल रेलवे तटबंध बनाने में किया जाता है उसकी सतत कार्यान्वहं क्षमता पर रेल भारों के साथ-साथ एन्वॉयरन्मेंटल लोडिंग के प्रभाव को भी समझा जा सकता है। इसके लिए जो यंत्र बनाया गया है उसमे एक उच्च क्षमता वाले टेंसिओमेटेर जिसको डरहम यूनिवर्सिटी ने निर्मित किया है, का इस्तामल किया गया है जिसका काम सक्शन को नापना है। विकसित किए गए यंत्र का इस्तेमाल किसी भी तरह के मिट्टी के सैंपल पर शोध करने के लिए किया जा सकता है चाहे वह प्रयोगशाला में हो या फिर वास्तविक प्रयोग में। --आईएएनएस जीसीबी/एएनएम

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