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कई योजनाओं से बुंदेलखंड में बंधी उजले कल की आस्

भोपाल, 24 अप्रैल (आईएएनएस)। सूखा, पलायन, बेरोजगारी के पर्याय के तौर पर पहचाना जाता है बुंदेलखंड। अब इस इलाके की स्थिति में बदलाव होने की आस जगने लगी है क्योंकि बीते तीन साल में कई बड़ी परियोजनाएं इस इलाके के खाते में आई हैं। तो वहीं लोगों में पिछले कड़वे अनुभव के आधार पर आशंकाएं भी हिलोरे मार रही हैं। वैसे तो बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के सात और उत्तर प्रदेश के सात कुल मिलाकर 14 जिलों को मिलाकर बनता है, मगर हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के हिस्से के बुंदेलखंड के सात जिलों -- सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ निवाड़ी और दतिया की। यह इलाका कभी अपनी खुशहाली, सांस्कृतिक समृद्धि का केंद्र हुआ करता था मगर वक्त बदलने के साथ यह समस्याओं से घिरता चला गया। आज आलम यह है कि पानी संकट के कारण इस इलाके की पहचान दूसरे विदर्भ के तौर पर हो गई है। इस इलाके का दुर्भाग्य रहा है कि जो भी सियासी दल सत्ता में आता है वह वादे भरपूर करता है मगर हालात बदलने की दिशा में योजनाएं तक नहीं बन पाती, उनके जमीन पर उतरने की कल्पना दूर की कौड़ी रहा है। काफी अर्से बाद इस इलाके के खाते में ऐसी योजनाएं आ रही हैं जिससे यह उम्मीद जागने लगी है कि स्याह बुंदेलखंड अब उजले बुंदेलखंड में बदल सकता है। एक बड़ी योजना केन-बेतवा लिंक परियोजना की है जिसका सपना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने देखा थ। वर्तमान की मोदी सरकार ने लगभग 44 हजार करोड़ रूपए की इस परियोजना को मंजूरी दे दी है। इस परियोजना से कुछ नुकसान तो हो सकते हैं मगर खुशहाली लाने में और पानी की समस्या से मुक्ति दिलाने में बड़ी कारगर हो सकती है। इस इलाके में पानी का अभाव तमाम समस्याओं की जड़ है क्योंकि खेती हो नहीं पाती, जानवरों को पीने का पानी मिल नहीं पाता और आम लोगों को भी पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। यही कारण है कि यहां उद्योग धंधे स्थापित नहीं हो पाए और रोजगार की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। नदी जोड़ो योजना सफल होती है तो इन समस्याओं से मुक्ति की उम्मीद तो की ही जा सकती है। इसके अलावा इस इलाके में परिवहन सुविधा की दिशा में भी काम हो रहा है, गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछा है, एक बड़ी परियोजना ग्वालियर से रीवा तक का राष्ट्रीय राजमार्ग 75 है जिसने यहां के आवागमन को सुखद और आरामदायक बना दिया है। वहीं दूसरी ओर यहां का बड़ा हिस्सा रेल मार्ग से भी जुड़ गया है। सिर्फ पन्ना ही इकलौता ऐसा जिला है जहां फिलहाल रेल लाइन या यूं कहें कि रेल यात्रा की सुविधा नहीं है। खजुराहो को दिल्ली से जोड़ने के लिए वंदे भारत एक्सप्रेस चलाए जाने की तैयारी है रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव इसकी घोषणा भी कर चुके हैं। विश्व पर्यटन के नक्शे पर खजुराहो अपनी खास पहचान रखता है। यहां आने वाले पर्यटकों को बेहतर सुविधा मिले और उनका इसके प्रति आकर्षण बढ़े इस दिशा में भी कोशिशें हो रही हैं। यहां के 25 एकड़ में योगा सेंटर बनाया जाने वाला है। इसके साथ ही यहां गोल्फ कोर्स फील्ड भी बनाए जाने की तैयारी है। यहां कन्वेंशन सेंटर बन ही चुका है। यह ऐसा सेंटर है जहां बड़ी बैठकें हो सकेंगी। इस इलाके को लेकर जारी कोशिश मूर्त रूप लेती हैं तो पर्यटकों का रुझान इस इलाके की तरफ और बढ़ेगा। बुंदेलखंड में टेराकोटा कला रोजगार का बड़ा साधन रही है। यह मिट्टी पर उकेरी जाने वाली कला है मगर वक्त के साथ यह गुम होती गई। अब इस कला को पुनर्जीवित करने के साथ लोगों को रोजगार मुहैया कराने के भी प्रयास चल पड़े हैं। सूत्रों का कहना है कि ओरछा को चित्रकूट से जोड़ने के लिए एक ट्रेन चलाए जाने की योजना है, यह धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने वाली होगी। यह गाड़ी ठीक वैसे ही होगी जैसे रामायण ट्रेन चल रही है। बुंदेलखंड की सूखा और समस्या ग्रस्त इलाके के तौर पर बनी पहचान से इस इलाके से नाता रखने वाला हर कोई अपने आप को आहत महसूस करता है। खजुराहो के सांसद और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का कहना है कि लहलहाता बुंदेलखंड और खुशहाल बुंदेलखंड बनाना उनका संकल्प है और किसी को अपना लक्ष्य मानकर काम कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि बुंदेलखंड के हालात बदलने के लिए सरकारों ने योजनाएं न बनाई हो और बजट मंजूर न किया हो, बुंदेलखंड पैकेज इसका बड़ा उदाहरण है। मध्य प्रदेश के सात जिलों पर लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए इस पैकेज के जरिए खर्च किए गए, मगर हालात नहीं बदले क्योंकि उस राशि की बंदरबांट कर ली गई। जल संकट के समाधान के लिए हजारों करोड़ रुपए अब तक खर्च किए जा चुके हैं मगर हालात जस के तस बने हैं। कुछ लोगों ने इस समस्या के निदान के नाम पर जरूर अपने पेट भरे हैं। एक बार फिर उम्मीद जागी है कि बुंदेलखंड की तस्वीर तेजी से बदलेगी, अब देखना होगा की यह कोशिशें पुराने अनुभव को दोहराती हैं या नई इबारत लिखने में सफल होती हैं। --आईएएनएस एसएनपी

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