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राम मंदिर के पीछे की प्रेरक शक्ति हिंदू आस्था है: नृपेंद्र मिश्रा

नई दिल्ली, 19 मई आईएएनएस। हिंदू आस्था राम मंदिर के पीछे की प्रेरक शक्ति है। ऐसा नृपेंद्र मिश्रा का मानना है, जो कि श्री राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष हैं। आईएएनएस के प्रधान संपादक के साथ एक साक्षात्कार में मिश्रा ने अपने विचार रखते हुए यह बात कही। मिश्रा ने कहा, इस विश्वास के दो पहलू हैं - मुझे लगता है कि इस देश में हर कोई मानता है कि भगवान राम रघुवंश वंश के हैं, जो अयोध्या में है। दूसरा यह कि धार्मिक आस्था एक महत्वपूर्ण पहलू है, हर हिंदू का मानना है कि भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और वे इस संबंध में विभिन्न परिभाषाओं और स्पष्टीकरणों के बावजूद एक सर्वोच्च शक्ति हैं। इसलिए यह स्वाभाविक है कि भगवान राम के अयोध्या मंदिर को हिंदू आस्था के परम प्रतीक के रूप में देखा जाता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि हम अयोध्या में राम मंदिर की तुलना धार्मिक आस्था के आधार पर बनाए गए किसी अन्य शहर से नहीं करना चाहेंगे। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के तौर पर पद छोड़ने के बाद मिश्रा अब श्री राम मंदिर निर्माण समिति के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। आईएएनएस ने मिश्रा से मंदिर परियोजना में प्रधानमंत्री की भागीदारी के बारे में पूछा, जिस पर उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री की भागीदारी दोनों तरफ से है, मंदिर के पवित्र चरित्र में एक विश्वासी के रूप में तो है ही, साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मंदिर अपनी खोई हुई महिमा को फिर से प्राप्त करे। वह चाहते हैं कि अयोध्या शहर सभी विश्वासियों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण और एकीकरण का केंद्र बने। उनकी ²ष्टि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की रक्षा और संरक्षण करना है, ताकि समाज का प्रत्येक व्यक्ति मंदिर के अपने स्वामित्व में विश्वास करे। मिश्रा, जिनका प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहने के साथ ही सरकार में एक लंबा और प्रतिष्ठित करियर रहा है और वह ट्राई के चेयरमैन की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं, ने कहा, राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति मंदिर ट्रस्ट के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के निर्देश के रूप में एक प्रस्ताव पारित करने के माध्यम से हुई थी, जिसमें इस समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति की परिकल्पना की गई थी। ट्रस्ट ने उक्त निर्णय के अनुपालन में यह संकल्प पारित किया और मैं उसी का एक प्रोडक्ट हूं। मिश्रा से जब यह सवाल पूछा गया कि यह कार्यभार अतीत में मिली जिम्मेदारियों से किस प्रकार भिन्न है, तो इस पर उन्होंने कहा, यह चुनौती अलग है और मैंने इसे दैवीय हस्तक्षेप के रूप में देखा है, क्योंकि यह कार्य चुनौती सेवा में प्राप्त किसी भी अनुभव के करीब नहीं है। ट्रस्टी बड़े निर्णय लेने के लिए हैं और बड़ी जिम्मेदारी को देखते हुए वे भावना से प्रेरित होते हैं। ये भावनाएं धार्मिक आस्था और लाखों लोगों की अपेक्षाएं हैं। उनके द्वारा लिए गए निर्णयों में से एक यह भी है कि मंदिर निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं किया जाएगा। भूमि सौदे पर विवाद के बारे में पूछे जाने पर, मिश्रा ने तुरंत जवाब दिया कि यह उनका विषय नहीं है, बल्कि पुणे के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरि सहित वरिष्ठ और सम्मानित ट्रस्टियों ने समान रूप से इस मुद्दे पर विस्तार से विचार किया है। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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