Gyan Ganga: माया ब्रह्म को सामने नहीं आने देती, और जो अशाश्वत है उसका विनाश निश्चित है

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सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे ! तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम:॥ प्रभासाक्षी के कथा प्रेमियों ! पिछले अंक में श्री शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को सृष्टि-रचना की कथा विस्तार से सुनाई। आइए ! अब आगे की कथा प्रसंग में चलें— ब्रह्मा जी को चारों ओर जल और वायु के अतिरिक्त क्लिक »-www.prabhasakshi.com

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