छत्तीसगढ़ में प्रसंस्करण स्थलों में बदलते गौठान

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रायपुर, 8 अप्रैल (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ में गोबर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव का बड़ा माध्यम बन रहा है। इसके साथ गौठान लोगों को रोजगार देने में सफल हुए हैं तो अब गौठानों को प्रसंस्करण स्थल बनाने का अभियान गति पकड़ रहा है। अब तक सौ गौठानों में तेल मिल और दाल मिल की इकाइयां स्थापित की जा चुकी है। देश में छत्तीसगढ़ पहला ऐसा राज्य है जहां सड़क पर विचरण करने वाले आवारा मवेशियों पर नियंत्रण पाने के साथ पशुपालकों की आय बढ़ाने के लिए गोबर की दो रुपए प्रति किलो की दर से खरीदी की जा रही है, साथ ही मवेशियों के लिए डे केयर होम के तौर पर गौठान बनाए गए हैं। गौठानों को ग्रामीणों की आजीविका के केन्द्र के रूप में विकसित करने को लेकर वहां कई तरह की आयमूलक गतिविधियों को विस्तार किया जा रहा है। बताया गया है कि गौठानों में अब स्थानीय कृषि एवं वनोत्पाद के प्रसंस्करण के लिए इकाईयों की स्थापना तेजी से की जा रही है, ताकि इसके जरिए उत्पादक किसानों को बेहतर मूल्य तथा स्थानीय मांग की पूर्ति के साथ-साथ रोजगार के अवसर सुलभ हो सके। आधिकारिक तौर पर मिली जानकारी के अनुसार, सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में अब तक स्थापित आठ हजार 366 गौठानों में से लगभग 350 गौठानों में तेल मिल एवं दाल मिल की इकाईयां स्थापित किए जाने की कार्ययोजना को मूर्तरूप दिया जा रहा है। अब तक 37 गौठानों ने तेल मिल एवं 65 गौठानों में दाल मिल की इकाईयां स्थापित हो चुकी है। शेष प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना तेजी से कराई जा रही है। उल्लेखनीय है कि गौठानों से 11 हजार 693 महिला स्व-सहायता समूह जुड़े हैं, जिनकी सदस्य संख्या 78 हजार 298 है। इसमें से पांच हजार से अधिक समूह वर्मी खाद का उत्पादन, 1700 से अधिक समूह सामुदायिक सब्जी-बाड़ी, 400 से अधिक समूह मशरूम उत्पादन, 651 समूह मछली पालन, 476 समूह बकरी पालन, 527 समूह मुर्गी पालन, 85 समूह पशु पालन, 325 समूह हर्बल उत्पाद तथा 2100 से अधिक समूह अन्य गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। इसी के साथ महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा गौठानों में तेल और दाल मिल का संचालन भी शुरू किया गया है। गौठानों से जुड़े महिला समूह अपनी आयमूलक गतिविधियों के माध्यम से 58 करोड़ 44 लाख रूपए की आय कर चुके हैं, जिसमें सर्वाधिक 32 करोड़ 63 लाख रूपए की आय वर्मी खाद उत्पादन से हुई है। आईएएनएस एसएनपी/एसकेपी

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