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स्वास्थ्य मंत्रालय के निदेशक ने आरटीआई जवाब में देरी करने पर सरकारी बाबू को दी चेतावनी, कार्यकर्ताओं ने की सराहना

पुणे, 13 मई (आईएएनएस)। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, नई दिल्ली के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आरटीआई का स्पष्ट या समय पर जवाब नहीं देने पर एक मुख्य जन सूचना अधिकारी की खिंचाई की है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के निदेशक (लोक स्वास्थ्य) और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी गोविंद जायसवाल ने सीपीआईओ डॉ. के. आर. योगेश को चेतावनी जारी की है। योगेश को पुणे के एक व्यवसायी प्रफुल्ल सारदा के कुछ मुद्दों पर आरटीआई प्रश्नों के उत्तर देने में बार-बार देरी करने पर फटकार लगी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के निदेशक के इस कदम की भारत के पहले आरटीआई कार्यकर्ताओं में एक माने जाने वाले शैलेश गांधी ने सराहना की है, जिन्हें केंद्रीय सूचना आयुक्त (2009-2012) भी नियुक्त किया जा चुका है। सारदा ने आईएएनएस को बताया, मैंने 15 मार्च 2022 को एक आरटीआई प्रश्न प्रस्तुत किया था कि क्या पहली-दूसरी लहरों के दौरान कोविड-19 के दौरान फेस-मास्क पहनना अनिवार्य था, क्या पूर्ण टीकाकरण के बाद भी यह अनिवार्य है और क्या कोई सरकारी प्राधिकरण मास्क नहीं पहनने पर जुर्माना लगा सकता है? इसका कोई जवाब नहीं मिला। इसलिए मैंने कम से कम सात रिमाइंडर भेजे और सीपीआईओ के लैंडलाइन नंबर पर 20 बार फोन भी किया, जो कि डेड (निष्क्रिय) था। अंत में जब सारदा का मामला प्रथम अपीलीय अधिकारी जायसवाल (आईएएस) तक पहुंचा, जिन्होंने न केवल इसका त्वरित निस्तारण किया, बल्कि चूक किए जाने पर सीपीआईओ को फटकार भी लगाई। जायसवाल ने सारदा को जवाब में कहा, मैंने सीपीआईओ को चेतावनी दी है कि डीएम (आपदा प्रबंधन) सेल के रिकॉर्ड में उपलब्ध जानकारी के अनुसार समयबद्ध तरीके से प्रतिक्रिया स्पष्ट करें। यह भी बताया गया (डॉ. योगेश को) कि आरटीआई अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत, केवल वही जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है जो सार्वजनिक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है और मौजूदा एवं सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रण में है। जायसवाल के इस कदम का पूरे भारत में सक्रिय आरटीआई कार्यकर्ताओं के समूह ने स्वागत किया है, जो कि विभिन्न स्थानीय, शहर, राज्य, केंद्र सरकारों से विभिन्न मुद्दों पर जानकारी प्राप्त करने के लिए एक्टिव रहते हैं। पूर्व सीआईसी गांधी ने कहा कि जायसवाल का कदम सराहना के योग्य है। उन्होंने ऐसे और आला अधिकारियों से आग्रह किया कि वे ऐसी लापरवाही पर अधिकारियों या पीआईओ को नियमित रूप से फटकार लगाते रहें। गांधी ने कहा, मैं यह नहीं कहूंगा कि यह अद्वितीय या सामान्य है.. अतीत में भी, शायद 2 या 3 प्रतिशत शीर्ष अधिकारी अपने कनिष्ठ पीआईओ को इस तरह की देरी के लिए फटकार लगाते थे। यह सही काम है और अपीलीय अधिकारियों को यह करना भी चाहिए। इसके लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि इससे सूचना आयोगों का बोझ अपेक्षाकृत कम होगा। आरटीआई एक्टिविस्ट्स फोरम के संयोजक विश्वास उत्तागी ने कहा, कई बार, विशेष रूप से पिछले आठ वर्षों में, नौकरशाही आरटीआई के तहत प्रश्नों को रोक देती है। वे देरी करते हैं, या कार्यकर्ताओं को आगे अपील करने के लिए मजबूर करते हैं और उस समय तक वह चीज प्रासंगिकता खो सकती है। उन्होंने सीपीआईओ को फटकार लगाने के जायसवाल के कदम को समय पर और आवश्यक करार दिया और भारत भर के पीआईओ को अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाने के लिए एक ऐसे ही सख्त संदेश की जरूरत को भी रेखांकित किया। गांधी कहते हैं कि अधिकांश अधिकारी अपना काम ईमानदारी से करते हैं, लेकिन उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया जाता है। उन्होंने लोगों से कम से कम एक बार ऐसे अधिकारियों का हौसला बढ़ाने का आह्वान किया। विश्वास ने कहा कि उनकी योजना आरटीआई नियमों को संशोधित करने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखने और यह सुनिश्चित करने की है कि सभी अधिकारियों को 30 दिनों की निर्धारित समय सीमा से पहले अपनी मेज पर सभी आरटीआई प्रश्नों को अनिवार्य रूप से स्पष्ट करना चाहिए, क्योंकि यह लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है और अधिकारी इसे करने के लिए बाध्य है। सारदा ने कहा कि कुछ विभागों के मुट्ठी भर पीआईओ/सीपीआईओ बहुत तत्पर हैं और समय सीमा के भीतर उचित, संतोषजनक जवाब भेजते हैं। मगर अभी भी कई मंत्रालय और विभाग ऐसे हैं, जहां से आरटीआई का जवाब कभी भी समय पर नहीं पहुंच पाता है। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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