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झारखंड में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच मतभेद, राज्यपाल ने कहा-टीएसी की नई नियमावली संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत

रांची, 7 फरवरी (आईएएनएस)। झारखंड में जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली पर मतभेद और गहरा गया है। राज्यपाल रमेश बैस नेराज्य सरकार की ओर से जून 2021 में बनाई गई नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताया है। उन्होंने टीएसी की नियमावली और इसके गठन से संबिधत फाइल राज्य सरकार को वापस करते हुए इसमें बदलाव करने को कहा है। इसके पहले केंद्र सरकार ने भी टीएसी नियमावली पर राज्य सरकार को संवैधानिक मूल्यों का पालन करने की नसीहत दी थी। केंद्र ने राज्य सरकार को कहा था कि राज्य में ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल का गठन राज्यपाल के माध्यम से समुचित तरीके से किया जाये। बता दें कि झारखंड सरकार द्वारा 4 जून 2021 को बनायी गयी नई नियमावली के तहत टीएसी के गठन में राज्यपाल की भूमिका समाप्त कर दी गयी थी। राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार से कहा है कि टीएसी की नई नियमावली में राज्यपाल से परामर्श नहीं लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण और संविधान की मूल भावना के विपरीत है। टीएसी के कम से कम दो सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार राज्यपाल के पास होना चाहिए। उन्होंने विधि विशेषज्ञों की राय का हवाला देते हुए फाइल पर यह टिप्पणी की है कि पांचवीं अनुसूची के मामले में कैबिनेट की सलाह मानने के लिए राज्यपाल बाध्य नहीं हैं। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार टीएसी के प्रत्येक फैसले को अनुमोदन के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाना चाहिए। राज्यपाल अगर टीएसी को लेकर कोई सुझाव या सलाह देते हैं तो उसपर गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए। सनद रहे भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश के अनुसार झारखंड सहित देश के 10 राज्यों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। इन राज्यों में एक जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) का गठन किया जाता है, जो अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देती है। इस संवैधानिक निकाय का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि इसे आदिवासियों की मिनी असेंबली के रूप में जाना जाता है। जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन में राज्यपाल की अहम भूमिका होती है। झारखंड सरकार नेवर्ष 2021 मेंटीएसी को लेकर नई नियमावली बनायी, जिसमें राज्यपाल के बजाय मुख्यमंत्री का भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो गयी है। राज्य सरकार ने इस नई नियमावली के तहत मुख्यमंत्री के अनुमोदन के आधार परटीएसी के सदस्यों की नियुक्ति की तो इसपर विवाद खड़ा हो गया। राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी सहित कई जनप्रतिनिधियों ने नई नियमावली को असंवैधानिक बताया। बीते दिसंबर में भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे ने भी लोकसभा में भी इसपर सवाल उठाया था। सांसद का कहना था कि झारखंड सरकार ने जनजातीय सलाहकार परिषद के गठन में अवैधानिक निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल को परिषद के अध्यक्ष पद से हटाकर इसकी जिम्मेदारी खुद ले ली है। उन्होंने लोकसभा में केंद्र सरकार से पूछा था कि टीएसी में राज्यपाल की भूमिका को समाप्त किये जाने पर सदन की क्या राय है? इस सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा थाकि कानून मंत्रालय की राय के अनुसार झारखंड सरकार ने टीएसी के गठन में राज्यपाल के अधिकारों को नजरअंदाज किया है। राज्य सरकार को राज्यपाल के माध्यम से सही तरीके से इसका गठन करना चाहिए। कानून मंत्रालय के अनुसार टीएसी के सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल की स्वीकृति के बिना नहीं की जा सकती है। केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने सदन को बताया था कि इस मामले में राज्य सरकार को सूचित किया जा रहा है कि राज्यपाल के माध्यम से सही तरीके से टीएसी का गठन किया जाये। बहरहाल, अब जबकि राज्यपाल ने टीएसी की फाइल झारखंड सरकार को लौटा दी है, तब इसपर सबकी निगाहें टिकी हैं। जानकारों का कहना है कि सरकार ने अगर राज्यपाल की राय नहीं मानी तो राज्य में संवैधानिक गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। --आईएएनएस एसएनसी/एएनएम

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