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कोरोनाः आशा की किरणें

डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत जबसे आजाद हुआ है, कोरोना-जैसा संकट उस पर कभी नहीं आया। इस संकट ने राजा-रंक, करोड़पति-कौड़ीपति, औरत-मर्द, शहरी-ग्रामीण, डाॅक्टर-मरीज़- किसी को नहीं छोड़ा। सबको यह निगल गया। श्मशानों और कब्रिस्तानों में लाशों के इतने ढेर देश में पहले किसी ने नहीं देखे। भारत में यों तो बीमारियों, दुर्घटनाओं और वृद्धावस्था के कारण मरनेवालों की संख्या 25 हजार रोज़ की है। उसमें यदि चार-पांच हजार ज्यादा जुड़ जाएं तो यह दुखद तो है लेकिन कोई भूकंप-जैसी बात नहीं है लेकिन सरकारी आंकड़ों पर हर प्रांत में सवाल उठ रहे हैं। देश में ऐसे लोग अब मिलना मुश्किल है, जिनका कोई न कोई रिश्तेदार या मित्र कोरोना का शिकार न हुआ हो। यों तो भारत के दो प्रतिशत लोगों को यह बीमारी हुई है लेकिन सौ प्रतिशत लोग इससे डर गए हैं। इस डर ने भी कोरोना को बढ़ा दिया है। मृतकों की संख्या अब भी रोजाना 4 हजार के आस-पास है लेकिन मरीजों की संख्या तेजी से घट रही है। संक्रमण घट रहा है और संक्रमित बड़ी संख्या में ठीक हो रहे हैं। यदि यही रफ्तार अगले एक-दो हफ्ते चलती रही तो आशा है कि हालात काबू में आ जाएंगे। 15-20 दिन पहले जब कोरोना का दूसरा हमला शुरू हुआ था तो आक्सीजन, इंजेक्शन और पलंगों की कमी ने देश में कोहराम मचा दिया था। कई नर-पिशाच कालाबाजारी पर उतर आए थे। निजी अस्पताल और डाॅक्टरों को लूट-पाट का अपूर्व अवसर मिल गया था लेकिन सरकारों की मुस्तैदी, लोकसेवी संस्थाओं की उदारता और विदेशी सहायता के कारण अब सारा देश थोड़ी ठंडक महसूस कर रहा है। लेकिन चिंता अभी कम नहीं हुई है। राज्य-सरकारें कोरोना के तीसरे हमले के मुकाबले के लिए कमर कस रही हैं। केंद्र और राज्यों ने पहले हमले के समय की गई लापरवाही से कुछ सबक सीखा है। लेकिन हमारे राजनीतिक दलों के नेतागण अभी भी एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। वे यह नहीं सोचते कि वे अपने विरोधी की जगह होते तो क्या करते ? यदि केंद्र में भाजपा की सरकार है तो लगभग दर्जन भर राज्यों में विरोधियों की सरकारें हैं। कोरोना के पहले दौर के बाद क्या उन्होंने कम लापरवाही दिखाई ? अब यदि उनके नेता कहते हैं कि कोरोना का यह दूसरा हमला 'मोदी हमला' है तो ऐसा कहकर वे अपना ही मज़ाक उड़ा रहे हैं। भाजपा के प्रवक्ता भी विरोधी नेताओं के मुँह लगकर अपना समय खराब कर रहे हैं। यह समय युद्ध-काल है। इस समय हमारा शत्रु सिर्फ कोरोना है। उसके खिलाफ पूरे देश को एकजुट होकर लड़ना है। देश के लगभग 15 करोड़ राजनीतिक कार्यकर्त्ता, 60 लाख स्वास्थ्यकर्मी और 20 लाख फौजी जवान एक साथ जुट जाएं तो कोरोना की कमर तोड़ना आसान होगा। डर के बादल छंटे तो आशा की किरण उभरे। (लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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