corona-elderly-father-forced-to-stay-in-senior-citizen-home-after-son39s-death
corona-elderly-father-forced-to-stay-in-senior-citizen-home-after-son39s-death

कोरोना: बेटे की मौत के बाद सीनियर सिटीजन होम में ठहरने को मजबूर बुजुर्ग पिता

नई दिल्ली, 23 मई (आईएएनएस। कोरोना महामारी के कहर ने लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया है। दूसरी लहर में कई लोगों ने अपनों को खोया है और उनकी जिंदगी प्रभावित हुई है। कुछ घटनाएं तो मानवीय संवोदनाओं को तोड़कर रख देने वाली हैं। कुछ बुजुर्ग तो ऐसे हैं जिनके परिवार में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं बचा और उनको सीनियर सिटीजन सेंटर में ठहरना पड़ रहा है। कनेडा के टोरंटो में रह रहे मनोज शर्मा (बदला हुआ नाम) के भाई (55 वर्षीय) की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गई। दिल्ली में उनके पिता (88 वर्षीय) अपने दूसरे बेटे के साथ रहते थे। अचानक दिल का दौरा पड़ने से साथ रहने वाले दूसरे बेटे की जान भी चली गई। बेटे के चले जाने के बाद पिता की देखरेख करने वाला कोई नहीं था। हालांकि कुछ परिजन दिल्ली एनसीआर में थे, लेकिन कोरोना के डर के कारण उन्हें उनके घर भेजा नहीं जा सका। जिसके बाद उनकी सुरक्षा और देखरेख के लिए उन्हें दिल्ली के पंचवटी सीनियर सिटीजन सेंटर में भेजना पड़ा। दरअसल पंचवटी सीनियर सिटीजन सेंटर एक ट्रस्ट द्वारा चलाया जा रहा वृद्ध आश्रम है। जहां बुजर्गों को ठहरने के लिए जगह दी जाती है हालांकि उन्हें इसके लिए पैसे चुकाने पड़ते हैं। मनोज शर्मा ने आईएएनएस को बताया कि, कोरोना काल मे स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई। मेरे भाई की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई। हालांकि मेरे भाई को कोरोना नहीं था और न ही मेरे पिता को था। भाई के चले जाने के बाद हमने अपने पिता को एक सीनियर सिटीजन होम में भेज दिया हैं, जहां उनकी देख रेख की जा रही है। हमारे कुछ परिजन दिल्ली नोएडा में हं,ै लेकिन कोरोना काल में लगी पाबंदियों के चलते कोई आ-जा नहीं सकता था। हमने कई पहलुओं पर विचार किया, हमने अपने पिता की देख रेख के लिए घर पर ही एजेंसी से भी बात की, लेकिन पिता की कोरोना जांच नहीं हुई थी। हमें फिर एक जगह से सहयोग मिला तो हमने पिता को सीनियर सिटीजन होम में शिफ्ट कर दिया। क्योंकि किसी परिजन को कोरोना काल में परेशान नहीं करना था। फिलहाल वहाँ वो ठीक है और हालात सामान्य होने पर पिता फैसला करेंगे कि आगे क्या करना है? दिल्ली में लोगों का नि:शुल्क अंतिम संस्कार करा रही शहीद भगत सिंह सेवा दल की तारीफ करते हुए मनोज ने कहा कि, जिस वक्त मेरे भाई को दिल का दौरा पड़ा उस वक्त मेरे पिता एम्बुलेंस बुला रहे थे लेकिन कोई नहीं पहुंच सका। जिसके बाद हम लोगों ने सेवा दल को कॉल किया । उन्होंने मेरे भाई का अंतिम संस्कार किया और वो बेहद अच्छा काम कर रहें हैं। हालांकि कोरोना काल न जाने इस तरह की कितनी कहानियां मौजूद है जहां अपनो के चले जाने के बाद लोग अकेले पड़ गए हैं। दिल्ली निवासी लवीना सिंह का अब इस दुनिया मे कोई नहीं। पिता पहले से ही नहीं थे और उनकी माँ की मृत्यु बीते वर्ष कोरोना से हो गई थी। जिसके बाद से ही वह अनाथ हो गई। माँ की मृत्यु होने के बाद ही परिजनों ने भी साथ छोड़ दिया। फिलहाल वह अब अकेली रह रहीं है। लवीना सिंह ने आईएएनएस को बताया कि, बीते वर्ष 6 दिसंबर को मेरी माँ की कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु पर कोई नहीं आया, मुझे अकेले ही भाग दौड़ करनी पड़ी। हालांकि मैं जिस मकान में रह रहीं हूं। उन्होंने मेरे कठिन समय में बहुत मदद की है। मुझे गत 7 वर्ष से यहां रह रहीं हूं, मैं एक डेंटल क्लीनिक में काम कर रही थी। जिधर मुझे 6 हजार रुपये मिलते थे। लेकिन कोरोना काल मे उन्होंने आने के लिए मना कर दिया है। मेरी माँ और मैं दोंनो ही कमाती थी लेकिन अब वो इस दुनिया मे नहीं रहीं और मेरा भी काम बंद पड़ा हुआ है। मकान का किराया, बिजली का बिल और मेरे अन्य खर्चे भीं हैं। हालांकि मेरी मकान मालिक ने लॉकडाउन में मुझसे किराया नहीं लिया है। लेकिन वो भी कब तक मेरा सहयोग देंगे। लॉकडाउन खुलते ही फिर से कहीं और नौकरी ढूंढनी पड़ेगी। मेरे परिजन दिल्ली में हीं रहते है लेकिन न वो मेरी माँ की मृत्यु के वक्त आए और न उसके बाद मुझसे कोई संपर्क रखा। --आईएएनएस एमएसके/आरजेएस

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in