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चीन के इंटेलिजेंस प्रमुख ने अफगानिस्तान से उइगर आतंकियों के प्रत्यर्पण के लिए सिराजुद्दीन हक्कानी पर डाला दबाव

नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री (गृह मंत्री) और खूंखार आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी चीन के इंटेलिजेंस प्रमुख चेन वेनकिंग से अक्सर मिलते रहे हैं। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, सिराजुद्दीन और वेनकिंग की आखिरी मुलाकात मंगलवार को हुई थी। यह बैठक चीनी दूतावास के बजाय सिराजुद्दीन के अज्ञात स्थान पर हुई थी। ऐसा माना जा रहा है कि चेन ने सिराजुद्दीन को चीन की हताशा से अवगत कराया है, क्योंकि नई तालिबान सरकार ने अपने वादे के अनुसार पूर्वी तु*++++++++++++++++++++++++++++र्*स्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) के साथ अपने संबंध नहीं तोड़े हैं। चीन ने मांग की थी कि तालिबान सभी आतंकवादी समूहों से संबंध तोड़ ले और ईटीआईएम के खिलाफ ठोस कार्रवाई करे। लेकिन तालिबान ने अब तक अपने वादों को पूरा नहीं किया है। अफगान सूत्रों के अनुसार, चीनी इंटेलिजेंस प्रमुख ने सिराजुद्दीन हक्कानी से आतंकवादी संगठन ईटीआईएम के प्रमुख सदस्यों के प्रत्यर्पण के लिए कहा है। हालांकि तालिबान ने मीडिया को बार-बार बताया है कि उन्होंने ईटीआईएम के लड़ाकों को अफगानिस्तान छोड़ने के लिए कहा है, लेकिन विभिन्न खुफिया रिपोर्टें कुछ और ही बताती हैं। अफगानिस्तान में चीनी राजदूत ने तालिबान नेताओं से इसके बारे में ब्योरा भी मांगा है। उन्होंने पूछा है, ईटीआईएम के सदस्य अफगानिस्तान छोड़कर कहां चले गए हैं? उनमें से कितने देश में रह रहे हैं? चीनी सुरक्षा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि उनमें से बहुत कम संख्या अभी भी चीन की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करेगी। ईटीआईएम के आतंकवादी मुख्य रूप से अफगानिस्तान के बदख्शां, कुंदुज और तखर प्रांतों में सक्रिय हैं। चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञ ली वेई ने ग्लोबल टाइम्स को बताया, समूह के लगभग 500 लड़ाके अफगानिस्तान के उत्तर और उत्तर-पूर्व में काम करते हैं, मुख्य रूप से रघिस्तान में वित्त पोषण के साथ वह रघिस्तान और वर्दुज जिलों, बदख्शां में स्थित हैं। चीनी विशेषज्ञ इस बात से आशंकित हैं कि ईटीआईएम सदस्यों के प्रत्यर्पण की चीनी मांग न केवल तालिबान की लगातार अस्वीकृति के कारण चुनौतीपूर्ण होगी, बल्कि उन आतंकवादियों के निष्कासन के अनुरोध के संदर्भ में भी यह प्रक्रिया मुश्किल होने वाली है, क्योंकि उन्होंने उनकी लड़ाई में मदद की है। तालिबान ने दो दशक पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि उन्होंने 9/11 के मद्देनजर अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण के जोखिम को स्वीकार कर लिया था और अल-कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को सौंपने के लिए कई बार इनकार कर दिया था। तालिबान 2.0 में ऐसी बहुत कम चीजें हैं, जो बताती हैं कि वह अब बदल गया है। चीन ने बुधवार को यूएन में भी ईटीआईएम का मुद्दा उठाया था। पिछले साल अक्टूबर में ईटीआईएम को अपनी आतंकवादी बहिष्करण सूची से हटाने के अमेरिकी फैसले का जिक्र करते हुए, संयुक्त राष्ट्र में चीनी राजदूत गेंग शुआंग ने अमेरिका पर उस समूह की निंदा करने और उसे बचाने का आरोप लगाया, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी संगठन है। चाइना डेली ने अपनी एक रिपोर्ट में गेंग शुआंग के हवाले से कहा, हम ईटीआईएम और अन्य आतंकवादी ताकतों को अफगानिस्तान में पनपने से रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की एकता और सहयोग का आह्वान करते हैं और देश को फिर से आतंकवादी गतिविधियों का अड्डा और स्रोत बनने से रोकने के लिए कहते हैं। चीन उन चंद देशों में शामिल है, जिन्होंने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के दौरान अपना दूतावास खुला रखा था और इसके नेतृत्व के साथ नियमित रूप से संपर्क में रहा है। ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, चीनी पहले ही चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के विस्तार की योजना बना चुके हैं। लेकिन पाकिस्तान में सीपीईसी परियोजनाओं को पहले से ही तालिबान के सहयोगी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) द्वारा हमलों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे देरी हो रही है। यही नहीं, चीन अफगानिस्तान में भी अपने निवेश को लेकर चिंतित है। अब सवाल यह है कि क्या अफगानिस्तान के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, जो खुद एक करोड़ डॉलर के इनाम के साथ एक नामित आतंकवादी हैं, ईटीआईएम सदस्यों को बीजिंग प्रत्यर्पित करने की चीनी मांग पर ध्यान देंगे। कई विशेषज्ञ ऐसा नहीं सोचते हैं। एक अफगान पत्रकार का भी यही मानना है और उनक कहना है कि जो खुद ही ऐसे कृत्यों के लिए वांछित है, वह चीनी मांग पर भला क्यों ध्यान देगा। (यह आलेख इंडिया नैरेटिव डॉट कॉम के साथ एक व्यवस्था के तहत लिया गया है) --इंडिया नैरेटिव एकेके/एएनएम

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