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यूपी चुनाव में भाजपा को मिला सभी जातियों का बढ़ा समर्थन

लखनऊ, 15 मार्च (आईएएनएस)। उच्च जातियों के भाजपा से नाराज होने की चुनाव पूर्व नैरेटिव के बावजूद, चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि ऊंची जातियों के सबसे ज्यादा विधायक भाजपा गठबंधन से हैं। गठबंधन के पास ऐसे 117 विधायक हैं जबकि सपा गठबंधन के पास केवल 11 विधायक हैं। बसपा, कांग्रेस और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के पास सवर्ण वर्ग से एक-एक विधायक हैं। सभी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विधायक केवल आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में जीते हैं, जिसमें भाजपा गठबंधन की संख्या सबसे अधिक (65) है, उसके बाद सपा गठबंधन (20) और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) (1) है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जाति और धर्म प्रमुख कारक रहे हैं, लेकिन लगता है कि मोदी और योगी के करिश्मे ने सभी गुस्से को शांत कर दिया है, और पार्टी को अपार हिंदू समर्थन मिला है - जिसमें जाट भी शामिल हैं। माना जा रहा था कि इस बार जाट वोटर भाजपा के साथ नहीं है। भाजपा ने मतदाताओं को सोशल इंजीनियरिंग और विकास के मुद्दे के साथ लामबंद किया, जिसका भरपूर लाभ मिला। आंकड़ों से पता चलता है कि सबसे अधिक विधायक ब्राह्मण समुदाय (52) से चुने गए हैं, इसके बाद राजपूत (49), कुर्मी/सैंथवार (40), मुस्लिम (34), जाटव/चमार (29), पासी (27), यादव (27), बनिया/खत्री (21) इत्यादि हैं मुसलमानों, यादवों और राजभरों को छोड़कर, भाजपा गठबंधन के पास हर जाति में सबसे ज्यादा विधायक हैं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, पार्टी को 2017 में 83 फीसदी की तुलना में करीब 89 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले हैं। 2017 में 70 प्रतिशत की तुलना में लगभग 87 प्रतिशत ठाकुरों ने भाजपा को वोट दिया है। यह उल्लेखनीय है कि 2017 में, योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं किया गया था, जोकि खुद ठाकुर समुदाय से आते हैं। बीजेपी को हिंदू पिछड़ी जातियों का भी काफी समर्थन मिला है, जो इन जाति समूहों के विधायकों की बढ़ती संख्या से पता चलता है। 18वीं उत्तर प्रदेश विधानसभा में हिंदू पिछड़ी जातियों के सबसे अधिक विधायक होंगे, इसके बाद सवर्ण, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुस्लिम और सिख होंगे। पिछड़ी जाति के विधायकों के भीतर, भाजपा गठबंधन के पास 90 विधायक हैं जबकि सपा गठबंधन के पास 60 और कांग्रेस के पास एक है। यह आंकड़े दर्शाते है कि निर्वाचित 151 (38 प्रतिशत) विधायक हिंदू पिछड़ी जातियों से हैं, उसके बाद सवर्ण (131, 33 प्रतिशत) और एससी/एसटी (86, 21 प्रतिशत) हैं। कुल 86 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं, और इन समुदायों के उम्मीदवार केवल इन आरक्षित सीटों पर ही जीत हासिल कर पाए हैं। सभी प्रमुख दलों - भाजपा, बसपा, कांग्रेस और सपा ने आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के बाहर बहुत कम एससी / एसटी उम्मीदवारों को नामित किया। इस बार, राज्य की आबादी का लगभग 19 प्रतिशत होने के बावजूद, 34 विधायक (8 प्रतिशत) मुस्लिम समुदाय से चुने गए हैं। सभी 34 मुस्लिम विधायक सपा के हैं, जिसे 2017 में 46 फीसदी की तुलना में 79 फीसदी मुस्लिम वोट मिले हैं। सिख समुदाय के केवल एक उम्मीदवार ने चुनाव जीता है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा जाटव मतदाताओं का दिल जीतने में कामयाब रही है, जो कभी बहुजन समाज पार्टी के पीछे थे। जाहिर तौर पर भाजपा ने अपने ही मैदान पर सामाजिक न्याय और कल्याण की अग्रदूत होने का दावा करते हुए प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के खेल को उलट दिया है। --आईएएनएस आरएचए/आरजेएस

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