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बिहार: नौकरी के लिए ठोकरें खाई जैनब अब मशरूम के जरिए पढ़ा रही सशक्तिकरण का पाठ

मोतिहारी, 27 मार्च (आईएएनएस)। अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा दिल में हो तो कम संसाधनों और कम पूंजी में भी कामयाबी पाई जा सकती है। यह कर दिखाया है बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के बढहरवा की रहने वाली जैनब बेगम ने। जैनब आज न केवल मशरूम के जरिए खुद को सबल कर खुद स्वावलंबी बन गई हैं बल्कि अन्य महिलाओं को भी सशक्तिकरण का पाठ पढ़ाकर उन्हें प्रशिक्षित कर रही है। जैनब कम संसाधनों के जरिए ही यूट्यूब की मदद से पहले मशरूम की खेती प्रारंभ की और आज उसी के जरिए चॉकलेट, पापड़, अचार तक बनाकर बेच रही हैं। ऐसा नहीं कि 25 वर्षीय जैनब के लिए सबकुछ करना इतना आसान था। जैनब चार साल पहले अपने गांव से निकलकर कुछ करने की तमन्ना लिए राज्य की राजधानी पटना पहुंची थी। स्नातकोत्तर तक की शिक्षा ग्रहण कर चुकी जैनब को कठिन परिश्रम के बाद एजुकेशनल कंस्ल्टेंसी कंपनी में नौकरी लग गई। कुछ दिनों तक तो सबकुछ सामान्य रहा। जैनब के पति गांव में रहकर सबकुछ देख रहे थे जबकि जैनब के पिता मुबंई में अपना व्यवसाय कर रहे थे। इस दौरान कोरोना को लेकर लगा लॉकडाउन के कारण जैनब की नौकरी छूट गई और यह वापस अपने गांव घर लौट गई। काफी कोशिशों के बावजूद भी इस दौरान काम नहीं मिल रहा था। आईएएनएस से जैनब अपने उन दिनों की चर्चा करते हुए भावुक होकर कहती हैं कि छोटी बच्ची को गोद में लिए कोरोना काल में काम की तलाश में कभी पटना तो कभी मुजफ्फरपुर गई, लेकिन कहीं काम नहीं मिला। इसी दौरान कुछ मित्रों ने मशरूम की खेती करने की सलाह दी। जैनब को मशरूम की कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन यूट्यूब के जरिए इसके विषय में जानकारी हासिल की। इस क्रम में उसने समस्तीपुर कृषि विश्वविद्यालय और बागवानी मिशन के जरिए भी मशरूम की खेती के टिप्स लिए। इसके बाद जैनब ने मशरूम की खेती करने का मन बना लिया। इस बीच उसने पटना से 2 किलोग्राम मिल्की मशरूम का बीज खरीदा। फिर 10 बैग से मशरूम का काम शुरू किया। धीरे-धीरे काम बढ़ता गया और आज उसके वो 1000 बैग से अधिक मशरूम लगा रही है। इसकी मार्केटिंग भी खुद से कर रही है। मशरूम के बढ़ते उत्पाद को देख व्यापारी खुद संपर्क कर रहे हैं। चार बहनों में सबसे बड़ी जैनब कहती हैं कि ऐसे कामों में कई परेशनियां भी आती हैं। घर के लोग भी बहुत ज्यादा बाहर नहीं जाने देते, हालांकि जैनब इस सफलता से अब खुश हैं। जैनब बताती हैं कि ठंडे के मौसम में तो वह कई लोगों को काम देती हैं। इसके अलावे वे अब कई महिलाओं और युवकों को प्रशिक्षण देती हैं। उन्होंने कहा कि वह मशरुम की खेती के अलावा उसका कई उत्पाद बनाती है। वह मशरुम का चॉकलेट, अचार और अदौरी के अलावा कई चीजों को बनाती है, जिसका बाजार में काफी डिमांड है। उन्होंने कहा कि फिलहाल वे घर के संसाधनों से ही ऐसी चीजें तैयार करती है, क्योंकि मशीनों को खरीदने में बड़ी पूंजी लगती है। बागवानी मिशन के तहत जिला और राज्य स्तर पर कई पुरस्कार जीत चुकी जैनब अब इस काम को बढ़ाना चाहती है, जिससे अधिक लोगों को वह रोजगार दे सके। फिलहाल वह बैंक से ऋण लेने के लिए योजना बनाई है। जैनब कहती हैं कि उसके द्वारा बनाए गए चॉकलेट की मांग काफी है। वह 10 हजार से ज्यादा चॉकलेट बेच चुकी हैं लेकिन अभी ब्रांडिंग और पैकेजिंग नहीं की है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र की कई लड़कियां भी इस काम में अब जुड़ना चाह रही हैं। गांव वाले भी जैनब के इस परिश्रम और कामयाबी से खुश हैं। जैनब फक्र से कहती हैं कि उन्होंने इस काम को 400 रुपये से प्रारंभ किया था लेकिन आज करीब दो साल में तीन लाख रुपये पूंजी हो गई। --आईएएनएस एमएनपी/आरएचए

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