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छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ब्रांड एंबेसेडर की भूमिका में भूपेश बघेल!

रायपुर, 19 मई (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ की संस्कृति को देश और दुनिया में नई पहचान मिले इसके लिए राज्य सरकार के प्रयास जारी है। इन कोशिशों के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ब्रांड एंबेसेडर की भूमिका में नजर आते है। राज्य की परंपराओं और संस्कृति को आधार बना कर विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हरियाली तीज हो या अन्य पर्व, इन मौकों पर छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। मजदूर दिवस पर यहां के खास व्यंजन बोरे-बासी को विशेष स्थान दिया गया। राजधानी से लेकर गांव-चौपालों तक में इस व्यंजन का सेवन करते जनप्रतिनिधि और अफसर नजर आए। इतना ही नहीं इस दिन के होटलों के मेन्यू में भी बोरे-बासी को शामिल किया गया था। बोरे-बासी छत्तीसगढ़ का ऐसा भोजन है जो बचे हुए चावल को पानी में भिगोकर रात भर रख कर बनाया जाता है। फिर सुबह उसमें हल्का नमक डाल कर, भाजी, टमाटर की चटनी, अचार और कच्चे प्याज के साथ खाया जाता है। छत्तीसगढ़ के लोग प्राय: सुबह बासी का ही नाश्ता करते हैं। बोरे बासी खाने से न सिर्फ गर्मी और लू से राहत मिलती है, बल्कि बीपी कंट्रोल रहता है डि-हाइड्रेशन की समस्या नहीं होती है। छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा क्षेत्रों में भेंट-मुलाकात के लिए निकले मुख्यमंत्री बघेल अपनी योजनाओं का फीड-बैक तो ले ही रहे हैं, साथ ही राज्य की संस्कृति को प्रमोट भी कर रहे हैं। इस यात्रा के दौरान वे ऐसे हर उस मौके का इस्तेमाल कर लेते हैं, जिससे छत्तीसगढ़ की संस्कृति, रीति-रिवाज और खान-पान का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार हो सके। भेंट-मुलाकात के दौरान वे ठेठ छत्तीसगढ़ी अंदाज में नजर आते है, गांव वालों से छत्तीसगढ़ी में बतियाते है तो उनकी भोजन की थाली में ठेठ छत्तीसगढ़िया व्यंजन होते है। उनके लंच में कभी बासी होती है तो कभी मड़िया-पेज, वे कभी पेहटा-तिलौरी का स्वाद ले रहे होते हैं तो कभी लकड़ा-चटनी और कोलियारी भाजी का। सरगुजा संभाग में भेंट-मुलाकात का पहला चरण पूरा हो जाने के बाद 18 मई से बस्तर संभाग में दूसरा चरण में बस्तर इलाके में है। उन्होंने पहले चरण की शुरूआत राज्य के बिलकुल उत्तरी छोर पर स्थित बलरामपुर जिले से की थी। अब दूसरे चरण का आगाज उन्होंने बिलकुल दक्षिणी छोर पर स्थित सुकमा जिले के कोंटा विधानसभा क्षेत्र से किया है। जब वे छिंदगढ़ पहुंचे तब दोपहर के भोजन का वक्त हो चुका था। छिंदगढ़ के एक ग्रामीण आयता मंडावी ने बस्तर की परंपरागत शैली में अपने घर की छपरी की छांव में भोजन की व्यवस्था की थी। उन्होंने जमीन पर बैठकर दोने-पत्तल में कोलियारी भाजी, आम की चटनी और दाल-भात का स्वाद लिया। उनके इस लंच में सबसे खास था मड़िया-पेज, जो बस्तर की पहचान भी है। यह एक ऐसा पेय है जिसे पीने के बाद लू का भी मुकाबला किया जा सकता है। आईएएनएस एसएनपी/एमएसए

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