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पीएसयू का व्यवहार अच्छा नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अटॉर्नी जनरल (एजी) के. के. वेणुगोपाल से कहा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) का व्यवहार अच्छा नहीं है। ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉपोर्रेशन (ओएनजीसी) और एफकॉन्स के बीच मध्यस्थ के शुल्क विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का व्यवहार अच्छा नहीं है। न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और हिमा कोहली के साथ ही प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने एजी से कहा, बेहतर है कि हम देश में आर्ब्रिटेशन (मध्यस्थता) को बंद ही कर दें। मध्यस्थों के अत्यधिक शुल्क की ओर इशारा करते हुए, जिसमें ज्यादातर सेवानिवृत्त न्यायाधीश शामिल हैं, प्रति सत्र 2.5 लाख रुपये और एक दिन में तीन सत्र आयोजित करने की बात कहते हुए, ओएनजीसी का प्रतिनिधित्व कर रहे एजी ने पीठ से कहा, आपको करना पड़ सकता है। प्रधान न्यायाधीश ने एजी से पूछा, तो फिर, हमें मध्यस्थों को बिना पारिश्रमिक के काम करने के लिए कहना चाहिए? ठीक है हम उनसे पूछेंगे। एजी ने जवाब दिया कि मध्यस्थों के शुल्क में कुछ एकरूपता होनी चाहिए और कहा कि मध्यस्थता के दौरान, मध्यस्थों ने प्रत्येक बैठक के लिए 1.5 लाख रुपये का आदेश पारित किया और एक दिन में उनकी दो सीटिंग या बैठकों की राशि 3 लाख रुपये थी। वेणुगोपाल ने कहा कि 54 सीटिंग पहले ही समाप्त हो चुकी हैं और इस बात पर जोर दिया कि शुल्क एकतरफा तय नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह कदाचार के समान है। चीफ जस्टिस ने एजी से पूछा, अगर वे फीस से सहमत नहीं हैं तो क्या मध्यस्थ पक्षपाती हैं? एजी ने कहा, इसमें एकरूपता की जरूरत है..सार्वजनिक क्षेत्र (कंपनियां) भी जवाबदेह हैं। वेणुगोपाल ने कहा कि चौथी अनुसूची के तहत मध्यस्थों के पारिश्रमिक पर सहमति हुई थी, हालांकि, बाद में वे कॉन्फ्रेंस फीस और रीडिंग फीस आदि पर भिन्न थे। एफकॉन्स का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने चौथी अनुसूची में शुल्क की सीमा की ओर इशारा किया। उन्होंने सवाल किया, अगर यह 30 सीटिंग्स हैं, तो क्या आप चाहते हैं कि मध्यस्थ जो सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, वे प्रति सीटिंग 30,000 रुपये के हिसाब से पेश हों? सिंघवी ने पीठ के समक्ष कहा कि उसे ओएनजीसी से कहना चाहिए कि वे अपने वकीलों को कितना भुगतान कर रहे हैं। एजी ने जवाब दिया कि चौथी अनुसूची की व्याख्या शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लंबित है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक पीठ का गठन करेंगे। पीठ ने मामले में नोटिस जारी किया और आगे की सुनवाई 23 मार्च को निर्धारित की। सुनवाई का समापन करते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने एजी से कहा, पीएसयू जिस तरह से व्यवहार कर रहे हैं वह अच्छा नहीं है और प्रशंसनीय नहीं है.. पीठ ने कहा कि मध्यस्थों की नियुक्ति के समय, सरकार को कहना चाहिए कि क्षमा करें, हम फीस को लेकर सहमत नहीं हैं। पिछले साल 1 दिसंबर को, शीर्ष अदालत ने ओएनजीसी को अवमानना की चेतावनी दी। इसने मध्यस्थों, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को शुल्क का भुगतान करने से इनकार करने के लिए ओएनजीसी को चेताया था, जो शालम्बर एशिया सर्विसेज लिमिटेड के साथ उसके विवाद की मध्यस्थता कर रही थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास इतना पैसा है कि वे तुच्छ कार्यवाही करते रहते हैं। पीठ ने कहा, फिर आपको मध्यस्थों को भुगतान करने में कोई समस्या है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, आप अपने बारे में क्या सोचते हैं? हम अवमानना नोटिस जारी करेंगे। पीठ ने आगे कहा, आप न्यायाधीशों का अपमान कर रहे हैं। क्यों? क्योंकि आपके पास बहुत पैसा है। पीठ ने कहा कि वह एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा अदालत को लिखे अपने पत्र में उठाई गई चिंताओं को पढ़कर खुश नहीं है। ओएनजीसी के आचरण पर नाराजगी व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा, ओएनजीसी के अहंकार को देखो। मुझे लगता है कि उनके पास बहुत पैसा है, इसलिए उन्हें लगता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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