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लोगों को गुमराह करने के लिए होता रहा धारा-370 का उपयोग, अब विकास की राह पर आगे बढ़ रहा कश्मीर

नई दिल्ली/श्रीनगर, 19 मार्च (आईएएनएस)। जम्मू-कश्मीर में पिछले 70 वर्षों से आधिकारिक और राजनीतिक तकरार में फंसी परियोजनाएं 5 अगस्त, 2019 के बाद आम आदमी के लिए सुलभ हो गई हैं, जब केंद्र ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के अपने फैसले की घोषणा की थी। तेजी से विकास और त्वरित निर्णय लेने की प्रक्रिया ने हिमालयी क्षेत्र को पूरी तरह से एक नई जगह में बदल दिया है। नए कदम केवल एक उद्देश्य के साथ उठाए जा रहे हैं कि अनुच्छेद 370 के कारण पिछले 70 वर्षों के दौरान आम आदमी को जिन कठिनाइयों को सामना करना पड़ा रहा था, उसे दूर करने में मदद की जा सके। पहले जहां नागरिकों को राज्य को मिले तथाकथित विशेषाधिकार के कारण जम्मू-कश्मीर में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था, वह अब धीरे-धीरे कम हो रही हैं। अनुच्छेद 370 ने राजनेताओं को भत्ते और एक विशेष दर्जा प्रदान करने में मदद की थी, जिन्होंने 1947 के बाद से तत्कालीन रियासत पर शासन किया था। वहीं पिछले ढाई वर्षों के दौरान, स्थिति बदली है और अब आम निवासी को सशक्त बनाने के लिए कई ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं। इन पहलों ने एक आम कश्मीरी की आंखें खोल दी हैं, जो लंबे समय से स्वायत्तता, स्व-शासन और आजादी जैसे नारों से तंग आ चुका है। प्रशासनिक परिषद ने रास्ता दिखाया है। हाल ही में, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक परिषद ने केंद्र शासित प्रदेश में चल रहे विकास कार्यों को गति देने के उद्देश्य से कई परियोजनाओं को मंजूरी दी है। मंजूर किए गए प्रस्तावों में जम्मू के कठुआ जिले के हीरानगर में अरुण जेटली मेमोरियल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए युवा सेवा (यूथ सर्विसेज) और खेल विभाग के पक्ष में 144 कनाल 12 मरला की भूमि का हस्तांतरण शामिल है। इस निर्णय से क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, कुश्ती और एथलेटिक्स जैसे खेलों के लिए गुणवत्तापूर्ण खेल बुनियादी ढांचा प्रदान करने में मदद मिलेगी और कठुआ और सांबा जिलों को भारत के खेल मानचित्र पर रखा जाएगा। खेल परिसर की लागत लगभग 58.23 करोड़ रुपये आंकी गई है। प्रशासनिक परिषद ने दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में नए औद्योगिक एस्टेट की स्थापना के लिए उद्योग और वाणिज्य विभाग के पक्ष में 740 से अधिक कनाल भूमि के हस्तांतरण को भी मंजूरी दी है। आगामी औद्योगिक एस्टेट क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने और क्षेत्र के युवाओं को उद्यमशीलता और रोजगार के अवसर प्रदान करने में मदद करेगा। इसी तरह, 750 कनाल की भूमि को एक मेडिसिटी स्थापित करने के लिए स्थानांतरित किया गया है, ताकि क्षेत्र को विश्व स्तरीय स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा और सुविधाएं प्रदान की जा सकें। मेडिसिटी के आने के बाद, यह चिकित्सा और फार्मा पेशेवरों, स्थानीय फार्मासिस्टों, विक्रेताओं और अन्य लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा। प्रशासनिक परिषद ने जम्मू में गुज्जर नगर और डोगरा हॉल में मौजूदा बूचड़खानों के आधुनिकीकरण के लिए 21.88 करोड़ रुपये भी मंजूर किए। सीमांत डोडा जिले के मौजूदा बस स्टैंड पर बहुमंजिला पार्किं ग स्थल के निर्माण के लिए 32.46 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई है, जबकि रामबन जिले में बहुमंजिला बस स्टैंड के निर्माण के लिए 22.44 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) या प्राथमिकता वाले घरेलू (पीएचएच) राशन कार्ड धारकों के परिवारों से संबंधित कानूनी रूप से विवाह योग्य उम्र की किसी भी लड़की को लाभ प्रदान करने के लिए राज्य विवाह सहायता योजना का पुनर्गठन किया है। ये लड़कियां 50,000 रुपये की एकमुश्त वित्तीय सहायता के लिए पात्र होंगी, जो शादी से पहले दी जाएगी। लक्षित आबादी में बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देने के लिए लाभार्थी द्वारा उसकी शादी से पहले प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने की अतिरिक्त पात्रता को शामिल किया गया है। इससे पहले, योजना के तहत लाभ केवल विवाह योग्य उम्र की लड़कियों तक ही सीमित थे। इस दौरान कई बाधाएं हटाने पर जोर दिया गया है। प्रशासनिक परिषद के हालिया फैसले उन कई पहलों में से हैं जो पिछले ढाई साल के दौरान अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद की गई थीं। 5 अगस्त, 2019 के बाद, एक आम आदमी ने महसूस किया है कि भारत के संविधान में शामिल रहा एक अस्थायी प्रावधान अनुच्छेद 370 एक बाधा के अलावा और कुछ नहीं था, जिसने पूर्ववर्ती रियासत को देश के अन्य क्षेत्रों के बराबर नहीं आने दिया और क्षेत्र को विकसित नहीं होने दिया। इस बीच राजनेता भी दो नावों में सवार हुए दिखाई दिए हैं। जम्मू और कश्मीर में निर्णय लेना एक कठिन प्रक्रिया थी, क्योंकि 1947 के बाद हिमालयी क्षेत्र पर शासन करने वाले राजनेता राजनीतिक मजबूरियों के कारण जम्मू, कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ थे। तीनों क्षेत्रों के लोगों ने दो नावों में सवारी करने वाले अपने नेताओं के लिए भारी कीमत चुकाई। एक तरफ, वे जम्मू-कश्मीर के बारे में एक अनसुलझा मुद्दा होने के बारे में बात करते थे, जबकि दूसरी तरफ वे नई दिल्ली द्वारा उन्हें प्रदान किए गए लाभों और विशेषाधिकारों का आनंद लेते थे। राष्ट्रीय राजधानी में वे पाकिस्तान और उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवादियों को सबसे बड़ा दुश्मन बताते थे, लेकिन कश्मीर में वे विरोधी की प्रशंसा करने और आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी करार देने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। कश्मीर के राजनेता उन सभी मुद्दों में व्यस्त रहे, जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते थे। इससे शासन को झटका लगा और जनहितैषी निर्णय ठंडे बस्ते में चले गए। ये नेता अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर के मूल निवासियों के लिए सुरक्षा कवच और हिमालयी क्षेत्र को नई दिल्ली से जोड़ने वाले पुल के रूप में वर्णित करते थे। लेकिन समय ने साबित कर दिया कि यह अनुच्छेद न ढाल थी, न पुल। केंद्र को ब्लैकमेल करके भी कुछ लोगों की खूब राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं। 1990 में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित विद्रोह के फैलने के बाद, राजनेताओं ने अपनी-अपनी कुर्सी की रक्षा के लिए धारा 370 को ढाल के रूप में इस्तेमाल किया। 29 वर्षों तक, उन्होंने यह प्रचार करके केंद्र को ब्लैकमेल किया कि अगर जम्मू-कश्मीर का तथाकथित विशेष दर्जा रद्द कर दिया गया, तो यह क्षेत्र पाकिस्तान की गोद में चला जाएगा। आज की तारीख में उनके द्वारा बनाए गए सभी मिथक चकनाचूर हो गए हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने पिछले दो वर्षों के दौरान बड़े पैमाने पर विकास देखा है। उन्हें सशक्त बनाया गया है और उनके क्षेत्र का विकास हुआ है। सड़क और हवाई संपर्क में सुधार हुआ है और कश्मीर के लिए अब ट्रेन सेवा भी इतनी दूर नहीं है। अब स्थानीय लोगों को रोजगार दिया गया है और बड़े कॉर्पोरेट घराने हजारों करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव लेकर आगे आए हैं। धारा 370 का इस्तेमाल गुमराह करने के तौर पर किया जाता था। जम्मू और कश्मीर में एक आम आदमी धारा 370 के बारे में बात भी नहीं करना चाहता, क्योंकि वह समझ गया है कि कश्मीर के शक्तिशाली राजनीतिक परिवारों द्वारा लोगों को गुमराह करने और उन्हें केंद्र प्रायोजित योजनाओं से वंचित रखने के लिए इसका इस्तेमाल एक प्रलोभन के रूप में किया गया था। लोगों को बेहतर जीवन जीने में मदद करने के प्रलोभन दिए जाते थे। धारा 370 की कसम खाने वाले राजनेता नया जम्मू-कश्मीर में अप्रासंगिक हो गए हैं। उन्होंने घोषणा की है कि वे विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। ऐसा लगता है कि वे इस तथ्य से अवगत हैं कि लोगों द्वारा उन्हें खारिज कर दिया जाएगा। प्रशासनिक परिषद द्वारा हाल ही में लिए गए निर्णयों ने संदेह से परे साबित कर दिया है कि जहां चाह है वहाँ राह है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री इसी तरह के फैसले ले सकते थे, लेकिन उनकी प्राथमिकताएं अलग थीं। अगर उन्होंने जम्मू-कश्मीर को भारत संघ के साथ पूर्ण रूप से एकीकृत करने की दिशा में काम किया होता, तो पाकिस्तान और आतंकवादी अपने नापाक मंसूबों में कभी सफल नहीं होते और जम्मू-कश्मीर हमेशा किसी के भी रहने के लिए एक बेहतर जगह हो सकती थी। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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