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संडे टाइम्स में प्रकाशित लेख जीनोसाइड ने इंदिरा गांधी को आहत किया था और बंगलादेश का इतिहास बदल दिया

दिल्ली, 13 दिसम्बर (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ब्रिटेन के समाचार पत्र सनडे टाइम्स में प्रकाशित लेख जीनोसाइड से इतनी आहत हुई थी कि बाद में उन्होंने इसके संपादक हेरॉल्ड इवांस से मुलाकात की थी। इसके बाद उन्होंने यूरोपीय देशों की राजधानियों और मॉस्को के लिए व्यक्तिगत कूटनीतिक अभियान शुरू कर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में भारत के सशस्त्र हस्तक्षेप के लिए माहौल तैयार किया था। यह लेख नौ हजार से अधिक शब्दों का था और यह 13 जून 1971 को सनडे टाइम्स में प्रकोशित हुआ था तथा इसे एंथनी मास्करेनहास ने लिखा था। वह पाकिस्तानी पत्रकार थे और उनका जन्म मौजूदा कर्नाटक के बेलगाम में गोवा के एक कैथोलिक परिवार में हुआ था। इस लेख ने उस समय पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति बाहिनी के आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना की हैवानियत को उजागर किया था। बीबीसी न्यूज के पत्रकार मार्क डयूमेट के एक लेख के अनुसार हालांकि उन्होंने वह लेख लिखा जरूर था लेकिन इससे पहले अपने परिवार को पाकिस्तान से बाहर निकाल दिया था। इस विस्तृत लेख को भारत के सामने पाकिस्तानी सेनाओं के हथियार डालने की 40 वीं वर्षगांठ के मौके पर 16 दिसंबर 2011 को प्रकाशित किया गया था। मास्करेनहास ने पहली बार विश्व के सामने पाकिस्तानी सेना की इस बर्बरता को उजागर किया था जो उसने 1971 में तत्कालीन पूर्वी प्रांत में आंदोलन को दबाने में की थी। यह लेख दक्षिण एशियाई पत्रकारिता का एक ऐसा अनूठा नमूना है जो पिछले पचास वर्षों में नहीं लिखा गया है। इस लेख के प्रकाशित होने के बाद पूरी दुनिया का नजरिया पाकिस्तान के प्रति बदल गया था और इसने भारत को एक निर्णायक भूमिका अदा करने के लिए प्रोत्साहित किया था। मास्करेनहास भी ऐसा नहीं करना चाहते थे और इस बात को याद करते हुए इवांस ने भी कहा था वह एक बहुत अच्छा रिपोर्टर था जो अपना काम बहुत ही ईमानदारी से कर रहा था। बीबीसी के अनुसार वह बहुत ही बहादुर थे और उस समय पाकिस्तान पर सेना का शासन था और वह यह भी जानते थे कि इस लेख को प्रकाशित करने से पहले उन्हें तथा उनके पूरे परिवार को पाकिस्तान से बाहर निकलना होगा। उस समय सेना के शासन में इस तरह की सामग्री को प्रकाशित करना आसान काम नहीं था। जिस समय पूर्वी पाकिस्तान में मार्च 1971 में युद्ध की शुरूआत हुई थी , मास्करेनहास कराची में एक सम्मानजनक पत्रकार के तौर पर शुमार किए जाते थे और वह कराची के समाचार पत्र मॉर्निग न्यूज में असिस्टेंट एडीटर के पद पर थे तथा इस्लामाबाद के सैन्य शासकों के साथ उनके अच्छे संबंध थे। वह कराची के गोवा कैथोलिक समुदाय के सदस्य थे और उनके परिवार में पत्नी यूवोन्नी तथा चार बेटे और एक बेटी थी। पाकिस्तान में इस विवाद की शुरूआत चुनावों से हुई थी और उसमें पूर्वी पाकिस्तानी पार्टी, द अवामी लीग को जोरदार जीत मिली थी और इस पार्टी के नेता शेख मुजीबुर रहमान थे जो इस क्षेत्र को और अधिक स्वायत्तता दिए जाने की मांग कर रहे थे। पाकिस्तानी सेना इस तरह के विद्रोही तेवरों वाले नेताओं का खूब दमन कर रही थी और उसने अपने आपको ज्यादा बड़ा साबित करने के लिए वहां पत्रकारों के दल को ले जाकर यह दिखाने का प्रयास किया कि हम इस तरह के आंदोलनकारियों के किस प्रकार निपटना जानते हैं। पत्रकारों के उस दल में मास्करेनहास के अलावा सात अन्य लोग भी थे और सेना उन्हें उस क्षेत्र में दस दिनों के दौरे पर ले गई थी। जब यह दल वापिस लौटा तो सात पत्रकारों ने वही लिखा जो सेना चाहती थी लेकिन मास्करेनहास ने ऐसा लिखने से मना कर दिया। यह शायद इसलिए भी संभव नहीं था क्योकि उस समय अखबारों के सभी लेखों को अंतिम रूप से प्रकाशित किए जाने से पहले सेना चेक किया करती थी और मास्करेनहास ने अपनी पत्नी को बता दिया था कि अगर यहां रहते हुए उन्होंने सच्चाई को सामने लाने की कोशिश की तो पूरे परिवार को सेना गोली मार देगी। उन्होंने अपने परिवार को इस बहाने के आधार पर वहां से बाहर निकाला कि वह अपनी बीमार बहन को देखने लंदन जा रहे हैं। इसके बाद वह पेशावर से होते हुए पैदल ही काबुल गए और यहां से लंदन जाने वाले विमान में उड़ान भरी तथा सीधे सनडे टाइम्स और संपादक के कार्यालय में पहुंचे। वह मार्च में बंगाली समुदाय पर हुए अत्याचारों से बहुत ही आहत थे और यह भी कहा था कि वहां सेना जो भी कर रही है वह कुल मिलाकर बहुत की बर्बर और भयानक है। इवांस को इस मामले में अपनी यादें ताजा करनी थी क्योंकि उनका भाई इस्लामाबाद में ब्रिटिश दूतावास में तैनात था और उन्हें इस बात को तो जानकारी मिलती रही थी कि उस प्रांत में जो भी हो रहा है वह अच्छा नहीं है और उन्होंने मास्करेनहास की बातों पर यकीन कर लिया था। मास्करेनहास ने उन्हें बताया कि वह उन सभी बर्बर घटनाओं का प्रत्यक्ष गवाह है कि किस तरह वहां लोगों को चरणबद्ध तरीके से मारा जा रहा है और उसने सेना के अधिकारियों को यह कहते सुना है कि लोगों को इस तरह ठिकाने लगाना ही एक मात्र अंतिम समाधान है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि उनका परिवार अभी भी कराची में ही था और उनकी प्राथमिकता उन्हें वहां से निकालने की थी। दोनों में इस लेख को प्रकाशित करने की सहमति बन गई कि इस लेख को छापने की प्रकिया तभी शुरू की जाएगी जब मास्क रेनहास की तरफ यह टेलीग्राम मिलेगा एनी का आपेरशन सफल रहा। इसके बाद किसी भी तरह के शक को दूर करने के लिए मास्करेनहास पाकिस्तान लौट गए और अपने परिवार को विमान में बिठा दिया। लेकिन उस समय पाकिस्तानी सेना साल में सिर्फ एक ही विदेशी उड़ान को अनुमति देती थी तो मास्करेनहास को वहां से जमीन के रास्ते अफगानिस्तान जाना पड़ा और वहां से फिर वह लंदन जाने वाले विमान में सवार हुए। लंदन में जिस दिन वह अपने नए घर में परिवार से मिले उसी दिन सनडे टाइम्स ने दो बडे पेजों पर वह लेख सिर्फ एक शब्द की हेडलाइन जीनोसाइड के नाम से प्रकाशित किया था। पाकिस्तान के नजरिए से मास्करेनहास का वह लेख विश्वासघात भरा कदम था और एक बार तो उन पर शत्रु देश का एजेंट होने का आरोप भी लगाया गया था। इस लेख के प्रकाशित होने के बाद पूरे विश्व में पाकिस्तान की जो किरकिरी हुई उसका उसने खंडन किया और मास्करेनहास के विस्तृत विवरण को झूठा करार देते हुए यहां तक कह दिया कि यह सब भारत की तरफ से दुष्प्रचार का हिस्सा है। बंगलादेश में मास्करेनहास को बहुत ही सम्मान के साथ याद किया जाता है और उनके उस लेख को अभी भी ढाका के लिबरेशन वार म्यूजियम में प्रदर्शित किया गया है। --आईएएनएस जेके

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