दीपावली पर उल्लू की बलि शास्त्रोक्त नहींः प्रतीक मिश्रपुरी
दीपावली पर उल्लू की बलि शास्त्रोक्त नहींः प्रतीक मिश्रपुरी

दीपावली पर उल्लू की बलि शास्त्रोक्त नहींः प्रतीक मिश्रपुरी

हरिद्वार, 10 नवम्बर (हि.स.)। रोशनी के पर्व दीवाली पर कुछ लोग मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उल्लू की बलि देते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि यह शास्त्र सम्मत नहीं है। ऐसा ज्योतिषाचार्य पंडित प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है। उल्लेखनीय है कि भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची-एक के तहत उल्लू संरक्षित प्राणी है। इसे विलुप्तप्राय प्राणी की श्रेणी में रखा गया है। यही नहीं इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है। इनके पालने और शिकार पर भी प्रतिबंध है। कहा जाता है कि अधिकांश तांत्रिक दीपावली पर जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और साधना के लिए उल्लू की बलि देकर रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करते हैं। राजाजी रिजर्व पार्क ने तो उल्लू की तस्करी करने वालों पर लगाम कसने के लिए जंगल में गश्त बढ़ा दी है। दीवाली तक सभी कर्मियों की छुट्टी को निरस्त कर दिया गया है।ज्योतिषाचार्य पं. प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि शास्त्रों में कहीं भी उल्लू की बलि का विधान नहीं है। वह कहते हैं कि गौतम ऋषि ने उलूक तंत्र की रचना की है। उलूक तंत्र के मुताबिक जो भी दीवाली पर उल्लू की पूजा करेगा वह धनवान हो जाएगा। उन्होंने बताया कि दीवाली से एक दिन पूर्व उल्लू का पकड़कर दीवाली वाले दिन उसकी पूजा करने का शास्त्रोक्त विधान है। दीवाली पूजन के बाद गोवर्धन पूजा करने के बाद उल्लू को छोड़ दिया जाता है। गौतम ऋषि के वंशज आज भी उल्लू की दीवाली पर पूजा करते हैं। विलुप्त प्रजाति की सूची में शामिल होने के कारण उल्लू का पूजन के लिए मिल पाना कठिन हो गया है। इस कारण काठ का उल्लू बनाकर उसकी पूजा की जाती है। उन्होंने बताया कि जो लोग उल्लू की बलि देने की बात करते है, वह शास्त्रोक्त नहीं है। वैसे भी किसी निरीह प्राणी की हत्या करना उचित नहीं है। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत/मुकुंद-hindusthansamachar.in

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