उत्तराखंड कांग्रेस किसान बिल के खिलाफ राज्यभर में चलाएगी व्यापक अभियान
उत्तराखंड कांग्रेस किसान बिल के खिलाफ राज्यभर में चलाएगी व्यापक अभियान

उत्तराखंड कांग्रेस किसान बिल के खिलाफ राज्यभर में चलाएगी व्यापक अभियान

लोकसभा एवं राज्यसभा से पारित बिल किसान विरोधीः प्रीतम सिंह देहरादून, 24 सितम्बर (हि. स.)। उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने लोकसभा एवं राज्यसभा में पारित बिलों को किसान विरोधी बताया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार खेत खलिहान को पूंजीपतियों के हवाले करने का षड्यंत्र कर रही है। कृषि विरोधी तीन काले कानूनों ने केंद्र सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मुखौटे को उतार दिया है। कांग्रेस राज्य में इस काले कानून के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाएगी। पार्टी मुख्यालय राजीव भवन में प्रीतम सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में भाजपा सरकार पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि आत्म निर्भर भारत अभियान की आड़ में भारत की आत्मा को किस तरह मारा जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण है केंद्र सरकार द्वारा लाये गये किसानों के तीन अध्यादेश हैं, जिन्हें संसद के दोनों सदनों से किस तरह अलोकतांत्रिक तरीके से पास कराया गया वो इतिहास के पन्नों में काले अध्याय की तरह लिखा जायेगा। प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि तीनों विधेयक किसान की कमर तोड़ने के लिए काफी हैं। हाल ही में हमारी जी.डी.पी. -23.9 आंकी गई है और यदि कृषि क्षेत्र ने सहारा न दिया होता तो यह और नीचे गिर सकती थी। केंद्र सरकार बहुमत के बलबूते लगातार मनमाने फैसले लेती आई है। इसमें अब किसान भी शामिल हो गए हैं। उत्तराखंड में भी कांग्रेस केंद्र सरकार के किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन को बड़े स्तर पर चलाएगी। उन्होंने कहा कि महामारी में जब देश की अर्थ व्यवस्था पूरी तरह डांवाडोल है और जी.डी.पी. गोते लगा रही है। ऐसे में सरकार को अब किसानों की सुध आई है। उन्होंने कहा, उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) संशोधन अध्यादेश के तहत किसान अपनी उपज मण्डियों के बाहर भी निजी कारोबारियों को बेच सकते हैं। सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिये किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की विक्री एवं खरीद की आजादी होगी तथा दाम भी बेहतर मिलेगा। यह सब सरकारी दलीले हैं परन्तु सडक पर किसान आक्रोशित है। तकरीबन 7000 कृषि उपजमण्डियों की उस व्यवस्था को धीरे-धीरे खत्म करने की साजिश है। उन्होंने कहा कि जहां किसानों की फसलों की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) के आस-पास मिल जाया करती थी लेकिन अब बडे व्यापारी उनसे किसी भी कीमत पर फसल खरीद कर उनका भण्डारण करके देश के किसी भी हिस्से में मनमानी कीमतों पर बेच सकेंगे। देश में 85 प्रतिशत से अधिक छोटे और मंझोले किसान हैं।जिनके पास 5 एकड़ या उससे भी कम कृषि भूमि है। देश में औसत कृषि भूमि 0.6 है.है। इस विधेयक से छोटी जोत के किसानों को नुकसान होगा। सरकार के इन तथाकथित किसान हित वाले फैसलों से किसान बेहद नाराज है। आन्दोलनों को कुचलने में माहिर यह सरकार पहले भी कई बार लाठी के जोर पर किसान आन्दोलनों को दबा चुकी है तथा एक बार फिर वही प्रयास कर रही है। प्रीतम सिंह ने कहा कि किसान ही है जो खरीद और खुदरा में अपने उत्पाद की विक्री थोक के भाव करते हैं। ये सरकार के तीन काले अध्यादेश किसान सान खेतीहर मजदूर पर घातक प्रहार हैं, ताकि उन्हे न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले तथा मजबूरी में किसान अपनी जमीन पूंजीपतियों को बेच दे। कृषि मण्डियां हटी तो देश की खाद्य्य सुरक्षा भी खत्म हो जायेगी। संसद में संसदीय लोकतंत्र का गला घोट रही है तथा किसानों को सड़कों पर पीटा जा रहा है। मोदी सरकार ने कृशि लागत एवं मूल्य आयोग को भी पंगु बना दिया है। प्रेस वार्ता में विधायक विधायक मनोज रावत, प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकान्त धस्माना, प्रदेश महामंत्री ताहिर अली, प्रदेश किसान कांग्रेस अध्यक्ष सुशील राठी एवं निवर्तमान प्रवक्ता गरिमा दसौनी मौजूद थे। हिन्दुस्थान समाााचार /राजेश-hindusthansamachar.in

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