जब गुरु कुंभ राशि में आते हैं तो हरिद्वार कुंभ का प्रारंभ माना जाता है: प्रतीक मिश्रपुरी

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- 5 अप्रैल से गुरु कुंभ राशि में करेंगे प्रवेश, तभी से होगा शास्त्रोक्त कुंभ का आगाज हरिद्वार, 01 अप्रैल (हि.स.)। भारतीय प्राच्य विद्या सोसाइटी कनखल के संस्थापक प्रतीक मिश्रपुरी ने कहा कि प्रशासन ने गुरुवार को कुंभ मेले की अधिसूचना जारी कर दी है, जो की 30 अप्रैल तक रहेगी। शास्त्रों के हिसाब से भी 5 अप्रैल की रात्रि 12:23 पर देव गुरु बृहस्पति कुंभ राशि में आएंगे। तब से कुंभ मेले का आगाज होगा। ये गुरु 11 वर्ष 3 माह 16 दिनों के बाद कुंभ राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। गुरु 12 वर्षों का समय कुंभ राशि से कुंभ राशि में वापिस आने में लेता है, परन्तु गुरु की गति के कारण प्रत्येक सातवां कुंभ एक वर्ष पहले ही आ जाता है। जब गुरु कुंभ राशि में आते हैं तो हरिद्वार कुंभ का प्रारंभ माना जाता है। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर आकाश, जल, वायु में गंधर्व नृत्य करते हैं। हर तरफ संतों के दर्शन होते हैं। संतों की अमृत वाणी सुनाई पड़ने लगती है। सारी वनस्पति एक नई अंगड़ाई लेने लगती हैं। हरिद्वार का कजरी वन फूलों से महक जाता है। ये ही है कुंभ राशि में आने वाले गुरु का दर्शन। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व के हरिद्वार कुंभ मेलों में जब भी गुरु ने कुंभ राशि में प्रवेश किया यही दृश्य देखने को मिला। 2010 के कुंभ में गुरु 20 दिसंबर 2009 को ही आ गए थे इसलिए मकर संक्रति का स्नान भी हुआ था। 1998 के कुंभ में गुरु 8 जनवरी 1998 को आ गए थे। इसलिए मकर संक्रांति का स्नान हुआ था। 1986 के कुंभ में 27 जून 1986 को आ गए थे तो तभी से कुंभ प्रारंभ हुआ था। 1974 के कुंभ में 13 फरवरी 1974 को गुरु कुंभ में आ गए थे। तब से कुंभ के स्नान प्रारंभ हुए थे। 1962 के कुंभ में 25 फरवरी को गुरु ने कुंभ राशि में प्रवेश किया था और तभी से मेला प्रारंभ हुआ था। 1950 के कुंभ का आगाज 14 मार्च 1950 को हो गया था। उसी दिन गुरु ने कुंभ राशि में प्रवेश किया था। 1938 में 31 मार्च 1938 के दिन गुरु कुंभ राशि पर आसीन हुए थे उसी दिन से कुंभ प्रारंभ हुआ था। शास्त्रों के हिसाब से कुंभ का आगाज 5 अप्रैल से होगा। परंतु अमृत कलश से जो बूंदे गिरी थी वह स्नान जिसका इंतजार 12 वर्षों तक संत, देव, किन्नर करते हैं वह 14 अप्रैल से 14 मई के मध्य में होगा। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत

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