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सल्ट उपचुनावः इधर तीरथ-कौशिक तो उधर हरदा की प्रतिष्ठा दांव पर

-2022 के मुख्य चुनाव से पहले यह उपचुनाव सेमीफाइनल की तरह -भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों ने लगा दिया है ऐडी चोटी का जोर देहरादून, 12 अप्रैल (हि.स.)। अल्मोड़ा की सल्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव के चलते 17 अप्रैल को मतदान होना है। भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों ने 2022 के मुख्य चुनाव से पहले हो रहे इस उपचुनाव के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। यह उपचुनाव दोनों ही दल सेमीफाइनल की तरह ले रहे हैं। जाहिर तौर पर जीत-हार मनोवैज्ञानिक दबाव और मनोबल को तय करेगी। सरकार और संगठन के मुखिया में परिवर्तन के बाद भाजपा के लिए इस उपचुनाव में अलग तरह की चुनौती सामने है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की जोड़ी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वहीं, कांग्रेस में यदि किसी एक नेता की प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा दांव पर दिखती है, तो वह राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ही हैं। भले ही प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डाॅ. इंदिरा ह्दयेश के लिए भी यह उपचुनाव बेहद अहम हैं। सल्ट विधानसभा सीट सुरेंद्र सिंह जीना के निधन से खाली हुई है, जिस पर उपचुनाव में भाजपा ने उनके भाई महेश जीना को टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस की गंगा पंचोली एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं, जिन्हें हरीश रावत कैंप का माना जाता है। गंगा के लिए हरीश रावत हाईकमान पर दबाव बनाकर टिकट लाने में कामयाब हुए हैं, जबकि प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव से लेकर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डाॅ इंदिरा ह्दयेश की मानी जाती, तो पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत या फिर उनके पुत्र के हाथ में उपचुनाव की कमान होती। रणजीत सिंह रावत एक जमाने में हरीश रावत के जितने खास थे, आज की तारीख में उनके ही धुर विरोधी माने जाते हैं। उपचुनाव के टिकट के बहाने कांगे्रेस के क्षत्रपों में खूब जोर-आजमाइश हुई है। ऐसे में टिकट अपनी कैंप की गंगा पंचोली को दिलाने में कामयाब हरीश रावत के सिर के ऊपर अब उन्हें जितवाने की जिम्मेदारी भी है। जिम्मेदारी का यह बोझ ही हरीश रावत को इस कदर बयान जारी करने के लिए मजबूर कर रहा है कि यदि सल्ट वालों ने साथ नहीं दिया, तो यह उनके लिए मौत जैसा अनुभव होगा। भाजपा की बात करें, तो यह मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के लिए अपनी नई जिम्मेदारी को संभालने के बाद पहली चुनावी चुनौती है। विधानसभा में एक सीट कम-ज्यादा होने का भाजपा के लिए कोई महत्व नहीं है, लेकिन हार-जीत का मनौवैज्ञानिक दबाव और मनोबल के लिहाज से पार्टी इस सीट को हर हाल में जीतना ही चाहेगी। पहली बार भाजपा हाईकमान ने किसी मैदानी मूल के नेता को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का निर्णय किया है। पर्वतीय क्षेत्र सल्ट में इस निर्णय पर भी वोटरों की मुहर लगेगी कि भाजपा हाईकमान ने उनके हिसाब से सही किया है या गलत। हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां सल्ट में अपनी जीत का दावा कर रही हैं, लेकिन अपने-अपने अंतर्विरोधों से दोनों ही पार्टियां जूझ रही हैं जो भी पार्टी अपने अंतर्विरोधों को न्यूनतम करने में सफल होगी, सल्ट में उसके लिए जीत का रास्ता साफ होगा। हिन्दुस्थान समाचार/विपिन बनियाल

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