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रंगकर्मी जहूर आलम होली में भरते हैं सर्वधर्म के रंग

नैनीताल, 24 मार्च (हि.स.)। रंगकर्मी जहूर आलम लंबे अरसे से होली में सर्वधर्म समभाव के रंग भर रहे हैं। शहर में 25 वर्ष से हो रहे फागोत्सव और होली महोत्सव की बयार बहते ही वह सुर्खियों में आ जाते हैं । 1976 में इन महोत्सवों की नैनीताल से शुरुआत हुई थी। इसके बाद प्रदेश के अनेक स्थानों पर ऐसे महोत्सव होने लगे। जहूर बताते हैं 70 के दशक में नैनीताल सहित पहाड़ों की होली में मैदानी क्षेत्रों की होली के कपड़े फाड़ने, कीचड़ फेंकने व मुंह पर जले तेल आदि की कालिख पोतने जैसे दुर्गुण आ गए थे। इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए उनकी नाट्य संस्था युगमंच के वरिष्ठ सदस्य स्वर्गीय गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, विश्वंभर नाथ साह ‘सखा’, राजीव लोचन साह, डॉ. विजय कृष्ण आदि के साथ श्रीराम सेवक सभा व शारदा संघ आदि संस्थाओं के लोग जुटे। कुमाऊंनी होली को उसके पारंपरिक स्वरूप में बचाने के लिए 1976 से फागोत्सव-होली महोत्सव की शुरुआत की गई। वह कहते हैं पहली बार गांवों में अपने घरों व पटांगणों तक सीमित महिलाओं व पुरुष होल्यारों की खड़ी व बैठकी होलियां आयोजित हुईं। बाहर से आने वाले होल्यारों के दलों को कलाकारों के रूप में पहली बार न केवल प्रतिष्ठा दी गई, बल्कि पारिश्रमिक भी दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि कुमाऊं विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में कुमाऊंनी होली को विषय में रूप में शामिल किया गया। कुमाऊंनी होली को प्रतिष्ठित करने के लिए दो-तीन वर्ष संगोष्ठियां भी आयोजित हुईं। नई पीढ़ी तक पारंपरिक कुमाऊंनी होली को पहुंचाने के लिए कार्यशाला की शुरुआत की गई। जहूर कहते हैं इस पहल का ही प्रभाव है कि आज यहां पारंपरिक तरीके से ही होली का आयोजन होता है। उसमें मैदानी क्षेत्रों के दुर्गुण नहीं दिखाई देते। हिन्दुस्थान समाचार/डॉ.नवीन जोशी/मुकुंद

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