सिल्कयारा सुरंग से बाहर आए मजदूर।
सिल्कयारा सुरंग से बाहर आए मजदूर।रफ्तार।

Silkyara: वादे, इरादे और हौसलों से जीतीं 41 जिंदगियां, '17 दिन बाद ताजी हवा की गंध नए जीवन की तरह महसूस हुई'

Uttarkashi Tunnel Rescue: न दिवाली थी-न होली। फिर भी दोनों त्योहार पूरे देश में मंगलवार देर शाम मनाए गए। लाखों लोगों की मन्नत पूरी हुई, जब सिल्कयारा सुरंग से सभी मजदूर सकुशल बाहर निकल आए।

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। न दिवाली थी-न होली। फिर भी दोनों त्योहार पूरे देश में मंगलवार की देर शाम मनाए गए। दर्जनों परिवारों की आंखों में खुशी के आंसु थे। लाखों देशवासियों की मन्नत पूरी हुई, जब मंगलवार की देर शाम उत्तरकाशी स्थित सिल्कयारा सुरंग से सभी 41 मजदूर सकुशल बाहर निकल आए। उत्तरकाशी से लेकर देश के तमाम रेस्तरां, दफ्तरों, दुकानों, चौक-चौराहों पर तालियां बजीं। लोगों ने जमकर जश्न मनाया। दर्जनों परिवारों ने कल शाम दिवाली और होली मनाई। एक-दूसरे को मिठाइयां खिलाई। यह खुशी थी 12 नवंबर की सुबह से सुरंग में फंसे मजदूरों की घर वापसी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी मजदूरों और इस अभियान से जुड़े लोगों को शुभकामनाएं दी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मौके पर पहुंचकर मजदूरों को बधाई दी। यूपी के रहने वाले राम मिलन ने बहन से कहा था-बहना तुम चिंता मत करो। मैं भांजे को कुछ नहीं होने दूंगा। ऐसे ही कई मजदूरों ने अपने भतीजे, भाई, भांजे को लेकर अपने घर वालों से वादा कर रखा था।

17 दिन बाद ताजी हवा की गंध नए जीवन की तरह महसूस हुई

सुरंग से बाहर आए झारखंड की खूंटी निवासी 32 वर्षीय चमरा ओरांव ने बताया कि 17 दिन बाद ताजी हवा की गंध नए जीवन की तरह महसूस हुई। कहा-हम भगवान में विश्वास करते थे, जिससे हमें ताकत मिली। हमें विश्वास था कि 41 लोग फंसे हैं तो कोई-न-कोई बचा लेगा। मैं जल्द पत्नी और बच्चों के पास जाना चाहता हूं। उनसे मिलने के लिए और इंतजार नहीं कर सकता।

उम्मीद नहीं खोई

ओरांव ने बताया-वह 12 नवंबर की सुबह काम कर रहे थे, तभी जोरदार आवाज सुनी और मलबा गिरते देखा। जान बचाने के लिए भागा, लेकिन गलत दिशा में फंस गया। जैसे ही हमें लगा कि अब लंबे समय तक यहां रहना होगा तो उसके बाद हम बेचैन हो गए। हमने मदद के लिए भगवान से प्रार्थना की और कभी उम्मीद नहीं खोई।

लूडो खेला, एक-दूसरे से बातें कर दिन गुजारे

ओरांव के मुताबिक सुरंग में फंसने के 24 घंटे बाद अधिकारियों ने मुरमुरे और इलायची के बीज भेजे। पहला निवाला खाया तो लगा कि कोई ऊपर वाला हमारे पास आया है। हम बहुत खुश थे। हमें आश्वासन मिला था कि हमें बचाया जाएगा, लेकिन समय गुजारने की जरूरत थी, इसलिए हमने खुद को फोन पर लूडो में डुबो दिया। हालांकि नेटवर्क नहीं होने के कारण हम किसी को कॉल नहीं कर सकते थे। आपस में बातें की और एक-दूसरे को जाना।

आज हमने दिवाली मनाई

उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती के रहने वाले मजदूर राम मिलन के बेटे संदीप कुमार ने बताया कि काफी अच्छा लग रहा। सब लोग खुश हैं। मैं केंद्र सरकार और बचाव कर्मियों का धन्यवाद करता हूं। श्रावस्ती के ही संतोष कुमार की मां ने कहा कि हमने संतोष से फोन पर बात की है। वह अस्पताल में है। आज हमने दिवाली मनाई। हम केंद्र सरकार और बचावकर्मी को धन्यवाद देते हैं।

मेरे बेटे को सुरक्षित बचा लिया

उत्तर प्रदेश की लखीमपुर खीरी के रहने वाले मजदूर मंजीत के पिता ने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि बेटे को सुरक्षित बचाया गया। सुरंग में फंसे सभी लोगों को सुरक्षित बचाने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद देता हूं।

देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन

ऑपरेशन सिलक्यारा सुरंग या खदान में फंसे मजदूरों को निकालने वाला देश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन है। इससे पहले 1989 में पश्चिमी बंगाल की रानीगंज कोयला खदान से दो दिन अभियान चलाकर 65 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था। देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने दिन-रात एक कर अभियान को सफल पहुंचाया। 13 नवंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के महाबीर कोल्यारी रानीगंज कोयला खदान जलमग्न हुई थी। इसमें 65 मजदूर फंसे थे। इनको सुरक्षित बाहर निकालने के लिए खनन इंजीनियर जसवंत गिल के नेतृत्व में टीम बनाई गईं। उन्होंने सात फीट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को पानी से भरी खदान में भेजने के लिए नया बोरहॉल बनाने का आइडिया दिया। दो दिन चले ऑपरेशन के बाद मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था। अभियान में गिल लोगों को बचाने के लिए खुद एक स्टील कैप्सूल के माध्यम से खदान के भीतर गए थे।

विशेषज्ञ क्या कह रहे

राहत कार्य में इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन (आइटीयूएसए) के प्रेजिडेंट अर्नाल्ड डिक्स भी मौजूद थे। वह हर दिन सुरंग के अंदर जाकर बचाव कार्य में विशेषज्ञता के जरिए टेक्निकल सहायता करते हैं। अर्नाल्ड डिक्स की राय है कि सुरंग निर्माण के इस स्टेज पर एस्केप पैसेज होना जरूरी नहीं है। अमूमन आप निर्माणाधीन टनल के ढहने की उम्मीद नहीं करते हैं। दुनियाभर में हम अपनी सुरंगें यह सोचकर नहीं बनाते हैं कि वो ऐसे ढह जाएंगी। हमलोग मेन टनल बनाने के अंत में एस्केप टनल बनाते हैं, जिससे कोई घटना होती है तो सुरंग का इस्तेमाल करने वाले उससे निकल सकते हैं। सिक्किम में बनकर लगभग तैयार हो चुकी सुरंग, जिसमें एस्केप टनल भी है उस पर अर्नाल्ड डिक्स ने कहा कि मैंने वो टनल नहीं देखी है, लेकिन हो सकता है कि भारत की काफी जटिल जियोलॉजी के कारण आप एस्केप टनल बनाते हों, लेकिन विदेश में हम ऐसा नहीं करते हैं।

हॉरिजांटल ड्रिलिंग

रेस्क्यू ऑपरेशन के शुरुआती चरण में 14 नवंबर से हॉरिजांटल ड्रिलिंग की शुरुआत की गई। इसके लिए ऑगर मशीन की मदद ली गई, जिसके माध्यम से सुरंग खोद उसमें 800-900 एमएम की स्टील पाइप को फीट करना था। मजदूरों को जिस पाइप के जरिए ऑक्सीजन पहुंचाई जा रही थी। ठीक उसी पाइप के सहारे उन्हें खाना, पानी और दवाएं भी पहुंचाई जाने लगीं।

दिल्ली से अडवांस्ड ड्रिलिंग मशीन मंगवाई गई

रेस्क्यू ऑपरेशन के शुरुआती दिनों में अधिक सफलता नहीं मिल रही थी। ड्रिलिंग मशीन का कुछ खास फायदा होता नहीं दिख रहा था। मजदूरों की हालत को देखते हुए एनएचआईडीसीएल ने दिल्ली से अडवांस्ड ऑगर मशीन मंगाई। समय की किल्लत को देखते हुए इसे एयरलिफ्ट कर पहुंचाया गया। 16 नवंबर को नई ड्रिलिंग मशीन को असेंबल कर इंस्टॉल किया गया, लेकिन रात में जाकर इसके जरिए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ।

मजदूरों के नाम- प्रदेश

अंकित-यूपी। राम मिलन-यूपी, सत्यदेव-यूपी, संतोष-यूपी, जयप्रकाश-यूपी, अखिलेश कुमार-यूपी, मंजीत-यूपी, राम सुंदर-यूपी, पु्ष्कर-उत्तराखंड, गब्बर सिह नेगी-उत्तराखंड, सबाह अहमद-बिहार, सोनू शाह-बिहार, वीरेंद्र किस्कू-बिहार, सुशील कुमार-बिहार, दीपक कुमार-बिहार, विश्वजीत कुमार-झारखंड, सुबोध कुमार-झारखंड, अनिल बेदिया-झारखंड, राजेंद्र बेदिया-झारखंड, सुकराम-झारखंड, टिकू सरदार-झारखंड, गुनोधर-झारखंड, रनजीत-झारखंड, रविंद्र- झारखंड, समीर-झारखंड, महादेव-झारखंड, मुदतू मुर्मू-झारखंड, चमरा उरांव-झारखंड, विजय होरो-झारखंड, गणपति-झारखंड, मनिर तालुकदार-पश्चिम बंगाल, सेविक पखेरा-पश्चिम बंगाल, जयदेव परमानिक-पश्चिम बंगाल, सपन मंडल-ओडिशा, भगवान बत्रा-ओडिशा, विशेषर नायक-ओडिशा, राजू नायक-ओडिशा, धीरेन-ओडिशा, संजय-असम, राम प्रसाद-असम, विजय कुमार-हिमाचल प्रदेश।

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