सरौती बनाने की हस्तकला को लगा उपेक्षा का ग्रहण

सरौती बनाने की हस्तकला को लगा उपेक्षा का ग्रहण
सरौती बनाने की हस्तकला को लगा उपेक्षा का ग्रहण

बांदा, 12 जून (हि.स.)। शादी हो या विवाह या दोस्तों की महफिल, पान सुपारी खाने के शौकीन जब अपनी मखमली थैली निकाल कर पैलानी में बनी सरौती से सुपारी काटकर पान बनाकर दोस्तों को खिलाते थे, तो दोस्तों में एक दूसरे के प्रति अपार स्नेह उमड़ पड़ता था। लेकिन जब से गुटखा और पान मसाला की लोगों को लत लगी तो लोग सुपारी खाना भूल गए, जिससे धीरे-धीरे पैलानी की सरौती अपनी पहचान खोती ही चली गई। किसी जमाने में बांदा के छोटे से कस्बे पैलानी में हाथों से बनी लोहा, पीतल और जस्ते की सरौती देश के अलावा विदेशों मे हाथों—हाथ बिकती थी लेकिन आज गुटखा और पान के प्रचलन से सरौती बनाने की कला दम तोड़ रही है। इस हस्तकला की ओर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न कभी उद्योग विभाग ने सुध ली बिना किसी मशीन के सहारे के रेती और धार बनाने वाले चक्के के सहारे तीन धातुओं को मिलाकर पैलानी में सरौती तैयार की जाती है। जो बाजार में सरौती मिलती है। वह पैलानी की सरौती के आगे कुछ भी नहीं है। वहां की बनी सरौती में जहां बेहतरीन डिजाइन होती है वही बिना किसी दिक्कत के सुपारी काटने में सहायक होती है। पैलानी की सरौती जिसकी देश-विदेश में मांग है। ढाई सौ साल पुरानी है यह हस्तकला बुंदेलखंड में पान सुपारी का विशेष महत्व है इसलिए यहां पैलानी में बनने वाली सरौती बेहद मशहूर है।पीतल लोहा और तांबा से मिलाकर बनने वाली सरौती किसी जमाने में मात्र एक रुपए 20 पैसे में मिलती थी। जिसकी आज कीमत 300 रुपये है। पैलानी में सरौती बनाने वाला एक ही परिवार है इस परिवार में 25-30 लोग हैं जो अलग-अलग सरौती बनाने का काम करते हैं। आज भी इस काम को करने वाले कारीगरों का कहना है कि वह प्रतिदिन 500 से लेकर एक हजार रुपये तक कमा लेते हैं। बिना किसी मशीन से बनने वाली है सरौती हस्तकला से तैयार की जाती हैं। इस संबंध में मशहूर कारीगर गंगाराम ने बताया कि सरौती का उद्योग यहां पर ढाई सौ साल पहले हमारे पूर्वज मनु बाबा ने शुरू किया था। तब से यह हस्तकला आज भी जीवित है। इधर, कुछ वर्षों से पान मसाला के प्रचलन से हमारे सरौती के उद्योग पर भी असर पड़ा है। लेकिन आज भी हमारी सरौतियां टीकमगढ़, मऊरानीपुर, मैहर सतना, कटनी, जबलपुर वह आस-पास के जिलों में बिकती हैं। सरौती के शौकीन पैलानी से सरौती खरीद कर ले जाते हैं। देश-विदेश में मांग उसने यह भी बताया कि इन सरौतियों की मांग विदेशों में भी है। यहां की सरौती आगरा के संग्रहालय में भी रखी है और आयात निर्यात विभाग में भी सरौती का एक नमूना रखा हुआ है। वर्षों पहले हमसे 50 सरौती मांगी गई थी, जिन्हें बाद में अरब देश में भेजा गया था गंगाराम ने बताया कि अगर सरकारी मदद मिलती तो इस धंधे को पुनर्जीवित किया जा सकता है। उद्योग विभाग में प्रयास किया गया लेकिन उद्योग विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, जिससे यह धंधा जहां-तहां पड़ा है। गंगाराम का मानना है कि अगर सरकारी सहायता मिले तो इस उद्योग से तमाम युवाओं को रोजगार मिल सकता है। हिन्दुस्थान समाचार/अनिल-hindusthansamachar.in

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