ब्रह्म मुहूर्त में स्नानकर गरीबों को किया दान, मंदिर में दर्शन-पूजन कर लिया आशीर्वाद
ब्रह्म मुहूर्त में स्नानकर गरीबों को किया दान, मंदिर में दर्शन-पूजन कर लिया आशीर्वाद

ब्रह्म मुहूर्त में स्नानकर गरीबों को किया दान, मंदिर में दर्शन-पूजन कर लिया आशीर्वाद

मीरजापुर, 25 नवम्बर (हि.स.)। भारतीय संस्कृति में देवोत्थानी एकादशी का विशेष महत्व है। इसदिन चतुर्मास का समापन होता है। मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है। तुलसी-शालीग्राम विवाह के साथ ही गंगा स्नान-दान कर पुण्य अर्जित करने का विधान है। आदि अनादि काल से चली आ रही परंपरा का अनुगमन करते हुए श्रद्धालुओं एकादशी को ब्रम्हमुहूर्त में गंगा स्नान किया। गंगा घाटों पर शहर से लेकर गांव तक आस्थावानों की भीड़ लगी रही। नगर के कचहरी घाट,सिपाही घाट, बरियाघाट, बदलीघाट,पक्काघाट,नारघाट समेत विंध्याचल के घाटों पर भोर से ही गंगा में स्नान करने का सिलसिला शुरू हो गया। जो दिनभर चलता रहा। गंगा स्नान करने के लिए दूर-दराज के गांवों से महिलायें,युवतियां अपने-अपने साधन से स्नान करने के लिए पहुंचीं। पवित्र गंगा में गोता लगाकर पुण्य अर्जित किया। स्नान करने के बाद मंदिरों में भगवान का दर्शन-पूजर कर अन्न व द्रव्य दान किया। इसके चलते गंगाघाटों पर दिनभर घाटों पर भीड़ रही। दिनभर एकदशी का व्रत रह कर भगवान विष्णु का पूजन अर्चन किया।इसी प्रकार चुनार के बालू गंगा घाट व नरायनपुर में रैपुरिया के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों गंगा स्नान करने वालों का मेला लगा रहा। ट्रैक्टर आदि वाहनों के आने से दिनभर जाम की स्थिति बनी रही। जुठमन एकादशी पर गन्ने की रही पूछ हरिप्रबोधनी एकादशी को कई नामों से जाना जाता है। इनमें एक नाम जुठमन एकादशी भी है। किसान अपने नये गन्ने की फसल का उपभोग प्रारंभ करते हैं। गन्ना हरि को अर्पित करने के बाद चूसते हैं। मान्यता है कि जुठमन एकादशी को ईख चूसने से भगवानन विष्णु प्रसन्न होते हैं। भगवान विष्णु को गन्ने का रस पंसद है। मंदिरों में भगवान को प्रसाद के रूप में गन्ने का भोग लगाया जाता है। धूम-धाम से किया तुलसी-शालिग्राम विवाह,गूंजे सुरीले मांगलिक गीत देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर तुलसी-शालिग्राम विवाह की धूम रही। कन्यायें हरिप्रबोधनी एकादशी को लेकर खासी श्रद्धावनत रहीं। भोर में गंगा स्नान किया। और पूरे दिन व्रत रहकर शाम को धूम-धाम से तुलसी-शालिग्राम,गुड्डा-गुड़िया का विधि विधान से विवाह रचाया। मान्यता के कुआंरी कन्याओं के तुलसी-शालिग्राम विवाह का आयोजन करने पर वैवाहिक जीवन का सुख मिलता है। लिहाजा दोपहर से ही आंगन के तुलसी माता के पौध चूना-पेंट,गेरूआ से आकर्षक सजाया। रंगोली बनाई। विवाह मंडप बनाया। शाम को वैदिक संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार तुलसी-शालिग्राम का विवाह रचाया। तुलसी माता के पौध को सुहाग और सौभाग्य के प्रतीक सुर्ख लाल चुनरी ओढ़ाया गया। शालिग्राम को सिंहासन में आसीन करा कर बाकायदे सात फे रे लगाये। सिंदूरदान के बाद युवतियों ने ढोल और मजीरे की थाप पर मांगलिक गीत गाये। गायन-वादन के बाद बाकायदे लोगों को पूड़ी-सब्जी,चटनी, मिष्ठान का भोजन कराया गया। नगर महुअरिया स्थित शायर माता मंदिर तुलसी विवाह धूम-धाम से किया गया। मंदिर को आकर्षक तरीके सजाया गया। पूजन आरती करने के बाद प्रसाद वितरित किया गया। वृंदा ने दिया भगवान विष्णु को शाप तुलसी-शालिग्राम विवाह की कथा भी रोचक है होने के साथ ही सीख भी देती है। शास्त्रों के अनुसार राक्षस कुल की वृंदा भगवान विष्णु का अनन्य भक्त थी। भगवान विष्णु ने अपनी ही भक्त वृंदा के पति जलंधर का वध कर दिया। इससे कुपित हो वृंदा ने भगवान विष्णु का शाप दे दिया। वृंदा के शाप से भगवान विष्णु पत्थर के हो गए। साथ ही चार महीने के लिए योग निद्रा में भी चले गए। जिस दिन अषाढ़ मास को भगवान विष्णु योगनिद्रा में गए उस दिन को हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस चतुर्मास भी कहा जाता है। योगनिद्रा से देवोत्थानी एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं। और तुलसी/वृंदा से शालिग्राम के रूप में स्वयंग हरि विवाह करते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/ गिरजा शंकर-hindusthansamachar.in

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