नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में सभी का सहयोग अपेक्षित : संजय सिन्हा
प्रयागराज, 30 अक्टूबर (हि.स.)। राज्य शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीमैट) प्रयागराज में ‘‘नो योर चाइल्ड इन द लाइट ऑफ नेप’’ विषय पर तीन दिवसीय वेबिनार के दूसरे दिन निदेशक सीमैट संजय सिन्हा ने कार्यक्रम का शुभारम्भ करते एवं सभी विशेषज्ञ वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि भविष्य में नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में आप सब के सहयोग की महती आवश्यकता होगी। प्रथम सत्र में पूर्व कुलपति इविवि डॉ. के.एस मिश्रा ने बच्चों के विकास पर कहा कि सिखाने का उद्देश्य याद करना, समझना, प्रयोग करना, विश्लेषण करना, मूल्यांकन तथा सृजन होता है। ऐसे में शिक्षा को याद करने तक सीमित नहीं रखा जा सकता है। हमें सृजन के साथ-साथ, व्यवहारिक परिवर्तन मूल्य एवं भावनात्मक सन्तुलन की दिशा में बढ़ना होगा। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की प्रो. अंजली बाजपेई ने शिक्षक के क्षमता विकास पर कहा बदलती परिस्थितियों में अध्यापक की क्षमता में न केवल अच्छा वक्ता हो, मानसिक-शारीरिक रूप से मजबूत हो बल्कि तकनीक से भी अभ्यस्त हो। वह बच्चों के सीखने में मददगार हो तथा स्वयं का विकास कर सके। सीबीएसई के पूर्व परीक्षा नियन्त्रक पवनेश कुमार ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि बच्चे आजकल उतना ही सीखते हैं, जितना परीक्षा में पूछा जाना है। नयी शिक्षा नीति का लक्ष्य कैसे सीखना है और सीखने के कौशल पर है। जिससे बच्चों में आधुनिक आवश्यकतानुसार सुधार किया जा सके। हमें कागज कलम की परीक्षा से अभिवृत्ति, सामाजिक तथा मानसिक कौशल विकास सम्बन्धित परीक्षा की ओर जाना है। बच्चों में जुझारू कौशल का विकास करना होगा : प्रो स्मृति द्वितीय सत्र में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पी.सी. शुक्ला ने कहा बच्चों के सीखने में न केवल विद्यालय बल्कि अभिभावकों के भी सहयोग की आवश्यकता है। कई बार हम विद्यालय में अधिगम का वातावरण तो बना पाते हैं परन्तु घर पर भी ऐसा वातावरण बने इसके लिये अभिभावकों को जागरूक करने की आवश्यकता है। शिक्षित बच्चा न केवल परिवार के लिये, बल्कि देश और समाज के लिये भी उपयोगी होता है। एनसीईआरटी की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. भारती कौशिक ने कहा कि अधिगम आवश्यकता में सम्प्रेषण सम्बन्धी, शिक्षा सम्बन्धी तथा अभिप्रेरणा, सामाजिक, अन्तरवयैक्तिक आवश्यकता सम्मिलित है। किशोर बच्चों की आवश्यकता के विषय में अध्यापकों का परामर्श बहुत सहायक होता है। निःशक्तजनों की शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिये शिक्षको को भी इन विषयों में सामान्य प्रशिक्षण देना चाहिये। रिटायर्ड प्रोफेसर एस.एन.डी.टी मुम्बई डॉ. स्मृति स्वरूप ने कहा नई शिक्षा नीति बच्चे के सम्पूर्ण विकास पर केन्द्रित है। बच्चों में जुझारू कौशल का विकास करना होगा। शिक्षकों को निःशक्तजन के साथ-साथ सभी बच्चों के प्रति सकारात्मक व्यवहार करना चाहिये। वेबिनार में लगभग 600 श्रोता सम्मिलित हुये। हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/दीपक-hindusthansamachar.in