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भारतीय मूल्यों के आधार पर समझना होगा स्त्री विमर्श : ममता यादव

- पश्चिम में स्त्री को दोयम दर्जा, सेकेंड सिटीजन के रूप में है स्त्री रामाशीष लखनऊ, 13 मार्च (हि.स.)। भारत की जीवन दृष्टि समग्र व एकात्म है। भारतीय मूल्यों के आधार पर स्त्री विमर्श को समझना होगा। वेद-पुराण में लैंगिक समानता के संदर्भ में स्पष्ट उल्लेख है। अथवर्वेद में पुरुष को ओजस्वान कहा तो स्त्री के लिए ओजस्विनी कहा गया है। भारतीय ग्रंथों में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां लैंगिक समानता देखने को मिलता है। यह बातें शनिवार को राजधानी लखनऊ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की दो दिवसीय अखिल भारतीय छात्रा कार्यशाला व बैठक में 'महिला विमर्श की भारतीय दृष्टि' विषयक सत्र को संबोधित करते हुए अभाविप की अखिल भारतीय छात्रा प्रमुख ममता यादव ने कही। उन्होंने कहा कि स्त्री के नेतृत्व को भारत ने स्वीकार किया है। भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में नारियों का अतुलनीय योगदान है। यहां महिला सेनाएं थीं। भारत में नारी नेतृत्व का इतिहास है। वहीं, पश्चिम में स्त्री को दोयम दर्जे का माना गया। वहां स्त्री सेकेंड सिटीजन के रूप में है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की समस्याओं के जड़ों तक जाना होगा। श्रीमती ममता ने कहा कि स्त्री मुक्ति के आंदोलन ने पुरुष सत्ता, परिवार आदि का विरोध किया। फेमिनिज्म के मूल में अहंकार है। विवेकानंद को उद्धृत करते हुए कहा कि स्त्री व पुरुष परस्परावलंबी हैं। दोनों एक रथ के दो पहिये हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय दृष्टि में नारी मुक्ति की बात नहीं, समर्थ नारी की बात कही गई है। पश्चिम का अंधानुकरण नहीं होना चाहिए। ममता ने कहा कि एकात्मता में आत्मीयता होती है। हम स्त्री स्वतंत्रता की बात नहीं करते। हक की लड़ाई से विनाश होता है। उन्होंने कहा कि कैम्पसों में अपने विचारों पर विमर्श करने होंगे। छोटी-छोटी पुस्तकों का प्रकाशन करना होगा। हिन्दुस्थान समाचार/

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