नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। लोकसभा चुनाव की तारीख जल्द ही चुनाव आयोग ऐलान करने वाला है। वाराणसी सीट से तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। वाराणसी सीट पर हमेशा से ही राजनीतिक इतिहास बना हुआ है। अब से 3 दशक पहले इस सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। उसके बाद से यहां पर BJP ने भगवा फहराया है।
सपा-बसपा वाराणसी से आउट
वाराणसी का इतिहास देखें तो इससे पता चलता है कि इस हॉट सीट ने सभी को नेता बनने का मौका दिया। कांग्रेस से लेकर BJP, जनता दल, CPI(M) तक लेकिन सपा और बसपा को हमेशा हार का मुंख देखना पड़ा। पश्चिम और मध्य उत्तर प्रदेश में दोनों दलों ने जो परचम लहराया, वाराणसी में वो बात नहीं दिखी। और तो और अब संभावना ऐसी है कि वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद तीसरी बार जीत का पताका लहराने वाले हैं। ऐसे में सपा-बसपा या कोई भी अन्य विपक्षी दल के लिए यह टेड़ी खीर से कम नहीं है।
बीते 10 सालों में मोदी सरकार ने वाराणसी की जनता के लिए विकास योजनाओं की बौछार ला दी। इसमें कोई दो राय नहीं कि BJP हिंदुओं की राजनीति नहीं करती। BJP की इसी राजनीति की वजह से वाराणसी में टूरिजम को बढ़ावा मिला। लोगों को आर्थिक स्थिति में सुधार आया। काशी विश्वनाथ कॉरीडोर इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। वाराणसी की जनता इसलिए आज हर हर मोदी का गुणगान कर रही है।
कभी कांग्रेस तो कभी CPI को मिली कुर्सी
आजादी के बाद देश में जब पहली बार 1951 में लोकसभा चुनाव हुए तब वाराणसी की सीट कांग्रेस के खाते में गई। कांग्रेस नेता रघुनाथ सिंह ने यहां जीत दर्ज की। वाराणसी के वह पहले सासंद बने। उन्होंने लगातार तीन बार जीत का खिताब अपने नाम किया। इसके बाद CPI के एसएन सिंह ने भी यहां से जीत दर्ज की। सन 1971 में कांग्रेस ने वाराणसी में अपना प्रत्याशी बदलकर काशी विद्यापीठ के तत्कालीन कुलपति प्रो. राजाराम शास्त्री को मैदान में उतारा। प्रो. शास्त्री ने भारतीय जनसंघ के कमला प्रसाद सिंह को हराया।
इंदिरा गांधी को हराने वाले राजनारायण ने भी लड़ा वाराणसी से चुनाव
इंदिरा गांधी और जेपी लहर में लोकसभा चुनाव 1977 में भारतीय लोकदल के चंद्रशेखर सिंह ने कांग्रेस के प्रो. शास्त्री से सीट छीन ली। यह मुकाबला और रोमांचक हुआ जब 1980 के चुनाव में ने अपने प्रमुख नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी को मैदान में उतारा। उस समय उनके सामने थे इंदिरा गांधी को हराने वाले राजनारायण जिन्होंने 1977 में रायबरेली में उन्हें हराया था।
लालबहादुर शास्त्री के बेटे भी दर्ज कर चुके जीत
1980 के दशक में वाराणसी सीट की किस्मत के द्वार ने करवट मारना शुरु की। रायबरेली से इंदिरा गांधी को हराने वाले राजनारायण को अंतिम दिनों में बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के कारण हार का सामना करना पड़ा। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस नेता श्यामलाल यादव ने वाराणसी की कमान संभाली। इस दौर में केंद्र सरकार की राजनीति में उलटफेर के बाद वीपी सिंह ने जब कमान संभाली, जनता दल से 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने मैदान में उतरकर कांग्रेस से वाराणसी की सीट छींन ली।
राम मंदिर आंदोलन के बाद लहराया भगवा
वीपी सिंह की सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल पाई। वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद उनकी सरकार बुरी तरह से गिर गई। वही समय था जब BJP ने राम मंदिर आंदोलन यात्रा का प्रारंभ किया था। भगवान राम की लहर ऐसी चली कि काशी विश्वनाथ के स्वामी भगवान शिव से भी रहा नहीं गया और तब से BJP का वाराणसी में सूर्यदय हुआ। BJP ने इस सीट से लगातार जीत पे जीत दर्ज की। श्रीराम मंदिर के आंदोलन के अगुवा पूर्व पुलिस अधिकारी श्रीशचंद दीक्षित ने पहली बार BJP की टिकट से वाराणसी में भगवा लहराया। उसके बाद 1996 में BJP से शंकर प्रसाद जायसवाल का टिकट कटा। उन्होंने लगातार 3 बार जीत दर्ज की। कांग्रेस ने अपनी पुरानी सीट के पाने के लिए फिर से हुंकार भरी और लोकसभा चुनाव 2004 में कांग्रेस के डा. राजेश मिश्र ने BJP के हाथ से सीट छींन ली।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती BJP ने 2009 में पार्टी का राष्ट्रीय चेहरा डा. मुरली मनोहर जोशी को मैदान में उतारा। उन्हें टक्कर देने के लिए बसपा ने माफिया मुख्तार अंसारी को मैदान में उतारा। BJP और बसपा में कड़ी टक्कर देखने को मिली माफिया मुख्तार अंसारी की दादागिरी वाराणसी में नहीं चली आखिरकार BJP ने बसपा को मात देकर जीत हासिल की।
क्यों है लोकसभा चुनाव 2024 इतना महत्वपूर्ण?
वाराणसी सीट में ट्विस्ट तब आया जब गुजरात के मुख्यमंत्री ने दिल्ली आने के लिए अपनी पेटी बांधी, पार्टी ने उन्हें वाराणसी का टिकट थमाया और नरेंद्र मोदी पहली बार वाराणसी से लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली में केंद्र सरकार बनाई। यही वो समय था जब भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहास रचा।
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