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वाराणसी: सुहागिन महिलाओं ने पति के दीर्घ जीवन के लिए किया वट सावित्री पूजन

- पेड़ की परिक्रमा कर अटल सौभाग्य का वरदान मांगा - धर्मकूप स्थित वट सावित्री माता के दरबार में भी हाजिरी लगाई वाराणसी, 10 जून (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में पति के दीर्घ जीवन के लिए महिलाओं ने गुरूवार को व्रत रखकर वट सावित्री की पूजा की और बरगद (वट), पीपल पेड़ की परिक्रमा कर अटल सौभाग्य का वरदान मांगा। ज्येष्ठ माह के कृष्णा पक्ष की अमावस्या पर वट सावित्री पूजन के लिए सुबह से ही बरगद और पीपल के पेड़ के नीचे सुहागिन महिलाएं परिजनों के साथ जुटने लगी। नव विवाहित सुहागिनों में व्रत को लेकर उत्साह दिखा। व्रती महिलाओं ने उपवास रखकर विधि विधान पूर्वक बरगद वृक्ष का पूजन किया। पतियों की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने सूत से तने को लपेट 108 बार परिक्रमा लगाई। इसके बाद हलवा, पूड़ी, आटा के बने बरगद व खरबूजा चढ़ाकर चढ़ाकर सुहागिनों ने पूजन कर पति की लंबी उम्र की कामना की। मीरघाट, धर्मकूप स्थित वट सावित्री माता के पूजन के लिए भी महिलाओं की भीड़ जुटी रही। इस दौरान पति की दीर्घायु के लिए व्रती सुहागिनों ने माता को सोलहों श्रृंगार की वस्तुएं, फल और प्रसाद चढ़ाकर वट वृक्ष पर मौली लपेटी और फेरी लेकर अखंड सौभाग्य का वरदान मांगा पूरे जिले में वटसावित्री पूजन श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। वट सावित्री पूजन के लिए पौराणिक मान्यता है कि भद्र देश के राजा की पुत्री सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए वटवृक्ष के नीचे ही पति का शव रख वटवृक्ष पूजन किया। और उसके बाद पति के प्राण लेकर यमराज जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चल दी। सावित्री के पतिव्रता धर्म के आगे बेबस यमराज ने उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने यमराज से कहा पहला वरादान सास-ससुर को नेत्रज्योति देने और दूसरा वरदान पुत्रवती होने का मांगा। यमराज तथास्तु कह सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे-पीछे जल दी यमराज ने मुड़कर देखा वरदान देने के बाद भी सावित्री पीछे आ रही है तो उन्होंने पुन: पूछा अब क्या तो सावित्री ने पति को आप ले जा रहे हैं तो मै पुत्रवती कैसे होऊंगी। यह सुन यमराज को गलती का एहसास हुआ और उन्होंने सत्यावान के प्राण वापस कर दिए। ऐसी मान्यता है कि सावित्री ने वटवृक्ष के नीचे ही पति का शव रख पूजन कर उनके प्राणों को वापस पाया था। इसी मान्यता के तहत वटसावित्री पूजन किया जाता है। ज्योतिषविद मनोज पाठक बताते है कि सनातन धर्म में बरगद को देव वृक्ष माना गया है। इसके मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्र भाग में भगवान शिव रहते हैं। देवी सावित्री भी वट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं। इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से मृत पति को फिर से जीवित कराया था। तभी से पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है। वट सावित्री व्रत को 'बरगदाही' अमावस्या भी कहते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर

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