सोलह घाटी होती है जब-जब भगवान सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं - प्रो. गिरजा शंकर
वाराणसी,15 जनवरी (हि.स.)। वेदों, स्मृतियों एवं महाभारत काल में संक्रान्ति चार प्रकार की बताई गई है। जब भगवान सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं। तो सोलह घाटी होती है। महर्षि गर्ग ने गर्ग संहिता में कर्क संक्रांति से 30 घंटे पूर्व ही पुण्य का काल बताया है। जब उत्तरायण भगवान सूर्य होते हैं तो अत्यन्त पुण्य का काल होता है। इसमें सूर्य का प्रकाश अधिक देर तक रहता है। अतः दिन अधिक होने के कारण इसे पुण्य का काल माना जाता है। ये उदगार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रोफेसर गिरजा शंकर शास्त्री के है। प्रो. शास्त्री शुक्रवार को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान के तैंतीसवें सोपान को वर्चुअल सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने संक्रान्ति विमर्श विषय पर अपना व्याख्यान देते हुये संक्रान्ति की सात संज्ञा बताई। जिसमें उन्होंने प्रत्येक दिन के अनुसार सात संक्रान्ति और प्राप्त होने वाले फल भी बताया। उन्होंने बताया कि रविवार को जो संक्रांति होती है, उसे होरा संक्रान्ति कहते हैं। सोमवार को होने वाले सक्रान्ति को ध्वान्दि संक्रान्ति कहते हैं। मंगलवार को होने वाली संक्रान्ति को महोधरी संक्रान्ति कहते हैं। बुधवार को होने वाली संक्रांति को मंदाकिनी संक्रान्ति कहते हैं। बृहस्पतिवार को होने वाले संक्रांति को मंदा संक्रांति कहते हैं। शुक्रवार को होने वाले संक्रांति को मिश्रा संक्रांति कहते हैं और शनिवार को होने वाली संक्रांति को राक्षसी संक्रांति कहते हैं। उन्होंने बताया कि कुल 9 ग्रहों से सौरमण्डल बना हुआ है। इस मण्डल में सूर्य ही प्रमुख है। जिसकी चर्चा महाकवि कालिदास ने रघुवंश में एवं महाकवि माघ ने शिशुपाल वध में अत्यंत रोचकता के साथ किया है। उन्होंने बताया कि अगस्त की दिशा दक्षिण मानी जाती है। पश्चिम में केतु माल, दक्षिण में लंका और भगवान सूर्य मध्य में स्थित हैं। ध्रुव से नक्षत्र बधे हैं और नक्षत्र से ग्रह बधे होते हैं। भगवान सूर्य की संक्रान्ति का जो स्पर्श काल होता है। वह महर्षि गर्ग के अनुसार तत्पर का 100 वां भाग और त्रुटि का 1000 वां भाग है। वहीं राशि परिवर्तन है। श्रेष्ठ मुनियों ने 6 घंटा 24 मिनट को स्थूल काल कहा है। उन्होंने कहा कि उत्तरायण के सूर्य की बड़ी प्रशंसा है जिसमें शुक्ल पक्ष में प्रकाश की अधिकता और कृष्ण पक्ष में प्रकाश की न्यूनता होती है। इसका कारण है कि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में प्रकाश बढ़ता जाता है और कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में प्रकाश घटता जाता तथा अंधकार बढ़ता जाता है। अतः उत्तरायण में भी प्रकाश अधिक होता है। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल और संयोजन केन्द्र के निदेशक प्रो. महेन्द्र पाण्डेय ने किया। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर-hindusthansamachar.in