यमुना नदी के तट पर बना ये मंदिर है डेढ़ हजार साल पुराना, गाय माता रोजाना आकर शिवलिंग पर चढ़ाती हैं दूध

Hamirpur: हमीरपुर से करीब पांच किमी दूर मेरापुर गांव के पास यमुना नदी किनारे सिद्ध स्थान होने के कारण संगमेश्वर मंदिर स्थित है जो आज भी अपने अतीत के पुरा वैभव को संजोये है।
यमुना नदी के तट पर बना ये मंदिर है डेढ़ हजार साल पुराना,
यमुना नदी के तट पर बना ये मंदिर है डेढ़ हजार साल पुराना,

हमीरपुर, हि.स.। हमीरपुर में यमुना नदी के तट पर स्थित मराठाकालीन संगमेश्वर मंदिर का इतिहास कम से कम डेढ़ हजार साल पुराना है, जहां स्थापित शिव और पार्वती की दुर्लभ मूर्तियां गुप्तकाल की है। इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर कुमार गुप्त के शासन काल में बना था।

यह मंदिर अपनी भव्यता के लिये सर्वत्र विख्यात भारत के चारों धामों में एक

हमीरपुर से करीब पांच किमी दूर मेरापुर गांव के पास यमुना नदी किनारे सिद्ध स्थान होने के कारण संगमेश्वर मंदिर स्थित है जो आज भी अपने अतीत के पुरा वैभव को संजोये है। यह मंदिर अपनी भव्यता के लिये सर्वत्र विख्यात भारत के चारों धामों में एक है, जिसमें एक ही अर्धे में शिव पार्वती की मूर्तियां एक साथ स्थापित है। इसीलिये इस मंदिर को संगमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यमुना नदी पार से एक गाय रोजाना इस मंदिर में आकर शिव लिंग पर अपना दूध चढ़ा जाती है। हालांकि इसे आज तक कोई देख नहीं पाया है। लेकिन अगले दिन सुबह शिव लिंग के आसपास दूध भरा देखा जाता है।

गुप्तकालीन वास्तुकला की सर्वाेत्तम उपलब्धि, मंदिर स्थापत्य करने की

साहित्यकार डा.भवानीदीन प्रजापति ने बताया कि पूरे भारत में उस जमाने में अभूतपूर्व कलात्मक क्रियाशीलता की स्थापना हुई थी। गुप्तकाल में मूर्ति कला, चित्रकला के विभिन्न पक्षों में परिपक्वता, संतुलन एवं अभिव्यक्ति की नैसर्गिकता देखते ही बनती थी। बताया कि गुप्तकालीन वास्तुकला की सर्वाेत्तम उपलब्धि, मंदिर स्थापत्य करने की ही थी। मंदिरों की कुछ प्रमुख विशेषतायें भी थी कि मंदिरों को हमेशा ऊंचे चबूतरों पर बनाया जाता था। चबूतरे के चारों ओर सीढ़ियां व मंदिर के भीतर गर्भगृह में देव मूर्तियां स्थापित होती थी। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ होता था।

हमीरपुर में संगमेश्वर सहित अन्य धरोहरें अभी पुरातत्व के आधीन नहीं

इसी के साथ स्तम्भों पर बेलबूटे, उत्कीर्ण होते थे। गुप्तकाल की मंदिर स्थापत्य कला की परम्परा में यहां का संगमेश्वर मंदिर एकदम खरा उतरता है। तत्कालीन क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी झांसी डा.एसके दुबे ने बताया कि हमीरपुर में संगमेश्वर सहित अन्य धरोहरें अभी पुरातत्व के आधीन नहीं है। सिर्फ खंडेह और करियारी व कालिंजर मंदिर भी पुरातत्व के दायरे में है।

सूखा पड़ने पर जलाभिषेक करने से हुई थी बारिश

हमीरपुर के भाजपा नेता राजीव शुक्ला व बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि वर्ष 1964 व 1966 में हमीरपुर और आसपास के इलाकों में भयंकर सूखा पड़ा था। चारो ओर हाहाकार मच गया था। तब कई गांवों के लोगों ने एकत्र होकर पहले तो नये मटके लाये फिर यमुना नदी का जल भरकर इस मंदिर के शिव लिंग का सामूहिक कूप से जलाभिषेक किया गया। कई दिनों तक जलाभिषेक करने पर शिवलिंग पानी में पूरी तरह से डूब गया लेकिन छोटा शिवलिंग जलाभिषेक के दौरान पानी में नहीं डूबा था। हजारों मटकों पानी पड़ने से नगर और आसपास के क्षेत्र में जमकर बरसात हुयी।

यमुना के उफनाने से मंदिर में आई थी दरारें

स्थानीय लोगों ने बताया कि वर्ष 1970 में यमुना और बेतवा नदियां उफना गयी थी। खतरे के बिंदु से कई मीटर दोनों नदियों का जलस्तर बढ़ जाने के कारण संगमेश्वर मंदिर फट गया था। मंदिर में गहरी दरारें भी आयी थी। अर्घा छोड़ मंदिर की दुर्लभ मूर्तियां नीचे बहकर यमुना नदी में समा गयी थी। बाढ़ के बाद दरारों में सोने का पानी चढ़ी दो दर्जन मिट्टी की उत्कृष्ट कलात्मक मूर्तियां लोगों को मिली थी। बाढ़ के दौरान निरीक्षण में गये तत्कालीन जिलाधिकारी बीवी कुमार जोशी ने राम लक्ष्मण की भव्य मूर्तियां वहां से उठवाकर मंदिर में ही कांच की अलमारी में सुरक्षित रखवा गई थी।

413 से 455 ई. के मध्य बना था मंदिर

संगमेश्वर का मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। साहित्यकार डा.भवानीदीन प्रजापति ने बताया कि चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद उसी का पुत्र कुमार गुप्त ने राज्य की सत्ता संभाली थी। उनका शासन सन 413 ई.से 455 ई. तक रहा। इसी अवधि में संगमेश्वर मंदिर का निर्माण कराया गया था। इस मंदिर के ठीक उत्तर दिशा में कोई 25 मील दूर स्थित भीतर गांव कानपुर नगर में भी एक गुप्तकालीन मंदिर है, जहां हर साल अनेक शोधार्थी खोज करने पहुंचते हैं। भीतर गांव के इस गुप्तकालीन मंदिर में कोई मूर्तियां भी नहीं है, इसके बावजूद गुप्तकालीन की वास्तुकला को देखने और समझने हर साल लोग जाते हैं।

सावन मास भर मंदिर में चलेगा जलाभिषेक

इस प्राचीन मंदिर के सुन्दरीकरण के लिये प्रदेश सरकार ने पांच लाख रुपये का अनुदान दिया था, जिससे देवस्थल का सुन्दरीकरण कराया गया। समाजसेवी ज्ञानेन्द्र अवस्थी ने बताया कि मंदिर को विकसित कर सांस्कृतिक पर्यटन के रूप में भी तब्दील करने से पर्यटन संभावना को विशेष महत्व भी मिल सकता है। जिला मुख्यालय से मंदिर तक पहुंच मार्ग तो बना है, लेकिन बारिश से यह मार्ग दलदल में तब्दील है। जिससे दोपहिया वाहन से जाने वाले श्रद्धालु आये दिन फिसलते है। इस मंदिर में महीने भर तक सावन की धूम मचेगी। मंदिर भी इन दिनों सजाया गया है।

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