बैकुुंठ धाम में भी मोक्ष की राह मुश्किल
वजूद खोते जा रहे अंत्येष्टि स्थल, शवदाह गृहों पर सुविधाओं का टोटा मीरजापुर, 24 मई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश सरकार शवदाह गृहों के रख-रखाव के लिए भारी बजट खर्च कर रही है। लेकिन जिले में ऐसे कई स्थल जिनमें कहीं बदहाली तो कहीं बुनियादी सुविधाओं की कमी है। सच तो यह है कि मृतकों को मोक्ष प्राप्ति भी सही ढंग से नहीं हो पाती। वैसे तो सरकार शवदाह गृह निर्माण और इनके जीर्णोद्धार के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को कितना मिल रहा है, इसकी एक बानगी विंध्याचल के शिवपुर स्थित रामगया घाट पर देखने को मिली। रामगया घाट पर शवदाह के लिए बैकुंठ धाम बना है, लेकिन यहां शव जलता नहीं है। जब बाढ़ आता है तब यहां शव जलाया जाता है। ऊंचाई पर होने के नाते बाढ़ आने पर यह शवदाह गृह सुरक्षित रहता है। एक संस्था की ओर से शिवपुर स्थित रामगया घाट पर लगभग दो करोड़ की लागत से बैकुंठ धाम का निर्माण व सुंदरीकरण कराया गया था। बैकुंठ धाम का शिलान्यास सात जनवरी 2014 को किया गया था। शिवपुर निवासी एक बुजुर्ग को शवदाह गृह की देखरेख के लिए रखा गया है। इसके एवज में उन्हें संस्था की तरफ से रुपये भी दिया जाता है। हालांकि, सफाई व देखरेख के लिए शवदाह गृह को नगर पालिका परिषद को हैंडओवर कर दिया गया है। लेकिन हर तरफ गंदगी ही गंदगी है। बैकुंठ धाम पर चार शव एक साथ जल सकता है, बाथरूम एवं पेयजल की भी व्यवस्था है। बैठने के लिए भी बेहतर इंतजाम है, लेकिन देखरेख न होने से सारी सुविधाएं धरी की धरी हैं। यहां भगवान राम ने भी किया था अपने पित्रों का तर्पण प्रसिद्ध विंध्याचल धाम सिद्धपीठ के लिए जाना जाता है। वहीं शिवपुर घाट पर पितृ पक्ष में पिंडदान कर पूर्वजों का तर्पण करने का भी बड़ा केंद्र है और इसे छोटा गया के नाम से भी जाना जाता है। पितृपक्ष शुरू होने के साथ विंध्याचल के शिवपुर स्थित रामगया घाट का नजारा बदल जाता है। दूर-दूर से लोग तर्पण के लिए यहां भारी संख्या में जुटते हैं। काशी प्रयाग के मध्य विंध्य क्षेत्र सिद्ध पीठ के साथ पित्रों के मोक्ष की कामना स्थली भी है। वैसे रामगया घाट कई रहस्यों के बीच स्थित है। यह घाट मोक्षदायिनी गंगा एवं विंध्य पर्वत का संधि स्थल भी है। यहां गंगा विंध्य पर्वत को सतत् स्पर्श करती है। मान्यता है कि भगवान राम ने खुद मां सीता के साथ अपने पितृदेवों के लिए विंध्य क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी के चरणों में स्थित शिवपुर घाट पर तर्पण किया था। अति प्राचीन परम्परा पितृपक्ष में रामगया घाट पर पिंडदान करने की परम्परा अति प्राचीन है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ के आदेश पर अपने पिता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए अयोध्या से प्रस्थान किया तो पहला पिंडदान सरयू, दूसरा प्रयागराज के भारद्वाज आश्रम, तीसरा विंध्यधाम स्थित रामगया घाट, चौथा पिंडदान काशी के पिशाचमोचन पर करने के पश्चात गया पहुंचे। श्रीराम गमन को बयॉ करती है शिला विंध्य क्षेत्र भगवान श्रीराम के चरणरज से धन्य हो चुका है। विंध्याचल स्थित रामगया घाट पर आज भी इसके प्रमाण मौजूद हैं। जो भगवान श्रीराम के गमन को खुद बयॉ करते हैं। विंध्याचल-शिवपुर के रामगया घाट पर गंगा के बीच उभरी शिलाओं के बीच स्थित तराशी हुई शिला, चरणों के चिह्न आदि इसके प्रमाण हैं। इस जगह का नाम भी उनके यहां से गमन की गवाही देता है। हिन्दुस्थान समाचार/गिरजा शंकर/विद्या कान्त