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काशी में गंगा का अर्ध चंद्राकार रूप रेत में बदलने का खतरा—राजेन्द्र सिंह

वाराणसी,24 जून (हि.स.)। जलपुरुष पद्मश्री डॉक्टर राजेन्द्र सिंह ने काशी में चल रही गंगा परियोजनाओं को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि इससे काशी में गंगा का स्वरूप भी प्रयाग और कानपुर जैसा ही होकर रह जायेगा । उत्तर वाहिनी अर्ध चन्द्राकर गंगा का अलौकिक सौन्दर्य विलुप्त हो जायेगा। घाट रेत में बदल जायेंगे। ऐसी स्थिति में गंगा के उस पार बन रहा नहर भी नहीं टिकेगा। डॉ.राजेन्द्र सिंह पराड़कर स्मृति भवन के सभागार में काशी विचार मंच की ओर से आयोजित 'गंगा के सवाल' विषयक गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने गंगा में चल रही परियोजनाओं को अवैज्ञानिक एवं अप्राकृतिक बताया। गंगा में ललिता घाट पर बन रहे प्लेटफार्म को समाप्त करने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि इस बात पर मंथन की जरूरत है कि कैसे गंगा की धारा को मोड़ने से रोका जाए। संगोष्ठी में संकट मोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र ने कहा कि ऐसी योजनाओं की पहल व्यापक विशेषज्ञ बहस एवं विचार मंथन के आधार पर ही होनी चाहिये। काशी में इन दिनों गंगा में काई के साथ रंग परिवर्तन चिन्ता का विषय है। गंगा में ललिता घाट के सामने सौ मीटर अंदर तक बने चबूतरे को एकमात्र उत्तरदायी कारण बताते हुये उन्होंने कहा कि जल प्रवाह का अवरोध ही हमेशा काई का कारक होता है। नहर की वजह से असि और तुलसीघाट पर रेत ज्यादा एकत्रित होगी। गंगा का कटान बढ़ेगा। गंगा घाटों को छोड़ देगी । गोष्ठी में इतिहासविद् डॉ.मोहम्मदआरिफ ने गंगा को सभी धर्मावलंबियों की आस्था और गहरी सांस्कृतिक निष्ठा का प्रवाह बताया। उन्होंने कहा कि गंगा का पूरा किनारा विभिन्न संस्कृतियों व तहजीब का पोषक है। गंगा इसलिए साफ हैं कि हर धर्म के व्यक्ति का जुड़ाव गंगा से है। गंगा के लिए अब जन आंदोलन चलाना पड़ेगा। गोष्ठी की अध्यक्षता कबीर मठ मूल गादी के महंत विवेक दास और संचालन व्योमेश शुक्ल ने किया। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर / प्रभात ओझा

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