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हमारा सबसे बड़ा ग्रन्थ हमारा संविधान: प्रो. त्रिपाठी

-“आधुनिक भारत का निर्माण और युवा“ पर सेमिनार - संविधान अधिकारों का ही नहीं बल्कि उत्तरदायित्व का भी विधान: प्रो. सुरेश प्रयागराज, 18 जून (हि.स.)। हमारा सबसे बड़ा ग्रंथ हमारा संविधान है और इसी संविधान के आलोक में देश के जन-जन को समरस, अहंकार मुक्त, श्रम की महत्ता वाले समाज और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के विकास वाले समाज का निर्माण करना होगा। यह बातें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश के कुलपति प्रो. प्रकाश मणि त्रिपाठी ने शुक्रवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा आयोजित “आधुनिक भारत का निर्माण और युवा“ विषयक सेमिनार में कही। उन्होंने जन-जन में भारतीयता का भाव भरने की आवश्यकता पर बल दिया। कहा कि स्वस्थ भारत हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है। आरोग्य होगा तो उत्साह होगा, विद्या अर्थकरी होगी तो उत्साह होगा और अगर हमें इस प्रकार का राष्ट्र निर्माण करना है तो व्यक्तित्व निर्माण भी करना होगा। उन्होंने कहा कि जोश और जज्बा लगातार बनाए रखना होगा। हमारा समाज संगम संस्कृति का समाज है, इसलिए इस समाज में लैंगिक समानता होनी होगी। प्रकृति वंदन होना होगा, कौशल विकास होना होगा, उत्पादन और वितरण में संतुलन होना होगा। हमारा लक्ष्य भयमुक्त, अभावमुक्त, खाद्य सुरक्षा युक्त और सरिताओं की चिंता करने वाले समाज का निर्माण होना होगा। अब हमें बार-बार यह गीत दोहराना होगा कि “हम रहेंगे कामयाब प्रतिदिन“। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.जी सुरेश ने प्रतिभागियों से आह्वान किया कि केवल सोशल मीडिया पर सक्रियता से समाज निर्माण का सपना नहीं पूरा होगा। समाज में उतर कर काम करने की आवश्यकता है। वनवासी क्षेत्रों में गुमनाम काम करने वाले, राशन बांटने वाले, दवा और काढ़ा पिलाने वाले लोग भी हमारे ध्यान में होने चाहिए। संविधान केवल अधिकारों का विधान नहीं है, बल्कि यह हमारे उत्तरदायित्व का भी विधान है। आपस की छोटी-छोटी लड़ाइयों से हम पहले भी गुलामी का दंश भोग चुके हैं। हमें भविष्य में इसके लिए भी रणनीति बनानी होगी। उन्होंने संक्रमण काल में समाज का हिस्सा होने की आवश्यकता पर बल दिया। कार्यक्रम के आयोजक एवं राष्ट्रीय सेवा योजना इविवि के समन्वयक डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने वैज्ञानिक प्रवृत्ति के विकास, श्रम की महत्ता और अहंकार विहीन व्यक्तित्व के निर्माण पर बल दिया। कहा कि राष्ट्र निर्माण और व्यक्तित्व निर्माण की अनिवार्य सीढ़ी दायित्व निर्वहन है। जब तक हम अपने अधिकार बोध के साथ दायित्व निर्वहन करना नहीं सीख जाएंगे, हम श्रेष्ठ राष्ट्र, कौशल विकास वाले राष्ट्र, लैंगिक समानता वाले राष्ट्र का सपना पूरा करने में कठिनाइयां अनुभव करेंगे। उन्होंने कहा कि दुनिया में श्रेष्ठ बनने के लिए हमारे नवयुवकों को अनुसंधान की वृत्ति को भी केंद्र में रखना होगा तभी अभाव मुक्त भारत बन पाएगा। कार्यक्रम का संचालन इविवि की सहायक प्रो.डॉ रुचि दुबे एवं धन्यवाद ज्ञापन ईश्वर शरण महाविद्यालय की सहायक प्रो.डॉ. अंजना श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में प्रतिभाग के लिए 25 राज्यों से 1509 लोगों ने नामांकन किया था। इसके अलावा दो केंद्रशासित क्षेत्रों और दो देशों ओमान और श्रीलंका से भी प्रतिभागिता के लिए नामांकन प्राप्त हुए थे। हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त

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