M.P. Horticulture officials of the ICAR learned the skills of quality production of mango and gooseberry
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म.प्र. के उद्यान अधिकारियों ने आईसीएआर में सीखे आम व आंवला के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के गुर

लखनऊ, 16 जनवरी (हि.स.)। केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ द्वारा “आम, अमरूद एवं आंवला का जीर्णोद्धार एवं रखरखाव” विषय पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के 16 जनपदों के 20 उद्यान प्रसार अधिकारियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान आम, अमरूद एवं आंवला के जीर्णोद्धार और गुणवत्तायुक्त उत्पादन हेतु प्रौद्योगिकी के बारे में संस्थान के वैज्ञानिको द्वारा जानकारी दी गयी। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डा शैलेंद्र राजन ने संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न आम की जीर्णोद्धार तकनीक की विशेष चर्चा की जो कि देश के विभिन्न भागों में फैल चुकी है। उन्होंने संस्थान द्वारा विकसित फलों की विभिन्न क़िस्मों की भी चर्चा की, जिनके प्रसार की मध्य प्रदेश में बहुत अच्छी संभावनाएं हैं। मध्य प्रदेश की बागवानी से जुड़ी समस्याओं और उसके सम्भावित समाधान को भी उन्होंने रेखांकित किया। संस्थान के द्वारा विकसित आम अमरूद एवं आंवला के जीर्णोद्धार एवम उत्पादन तकनीक के बारे में विभिन्न वैज्ञानिकों ने न सिर्फ जानकारी दी, बल्कि प्रक्षेत्र में प्रदर्शन कर व्यावहारिक पक्षों को भी प्रशिक्षुओं के सामने रखा।| केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ द्वारा लगभग दो दशक पूर्व आम के पुराने और अनुत्पादक बागों हेतु जीर्णोद्धार प्रौद्योगिकी विकसित की गयी थी। धीरे-धीरे इस तकनीक का विभिन्न प्रदेशों और आम उत्पादन क्षेत्रों में काफी प्रचार प्रसार हुआ। जीर्णॉद्धार की बारीकियों पर चर्चा कर समस्याओं के समाधान के प्रयास किये गये। कई बार आम के वृक्षों को काटने के बाद तना बेधक कीट के अत्यधिक प्रकोप के कारण 10-40 प्रतिशत तक वृक्ष मर जाते हैं। इस समस्या कि निराकरण हेतु संस्थान द्वारा तकनीक को पुनर्संशोधित किया गया। अब इस परिवर्धित रूप में जीर्णोद्धार की प्रक्रिया में वृक्ष की सारी शाखायें एक साथ न काटकर सर्वप्रथम सीधी जाने वाली शाखा को निकाल कर/विरलन, अंदर की तरफ से प्रतिवर्ष दो–दो शाखायें काटने का प्रावधान किया गया। इस प्रकार दो से तीन वर्ष में जीर्णोद्धार की प्रक्रिया पूरी करने में तना बेधक कीट की समस्या भी नगण्य रही और बाकी बची शाखाओं से प्रतिवर्ष किसान को फलत भी मिलती रही। इस तकनीक के प्रसार हेतु भी प्रशिक्षणार्थियों के साथ विस्तृत चर्चा की गई। कार्यक्रम में विभिन्न प्रतिभागियों ने मध्य प्रदेश की बागवानी सम्बंधी समस्याओं यथा आम, अमरूद में काट छांट एवम छत्र प्रबंधन, आम में गुम्मा व्याधि, आम में अनियमित फलन, आंवले एवम अमरूद में अफलन की समस्या आदि की चर्चा कर समाधान की अपेक्षा की। मध्य प्रदेश में आंवला एवम शरीफा के जंगलों में प्राकृतिक रूप से बहुतायत में उपलब्ध हैं, जो इसकी सफल बागवानी की सम्भावनाओं की तरफ इंगित करते हैं। पाठयक्रम निदेशक डा. सुशील कुमार शुक्ल एवं कार्यक्रम के समन्वयक डा दुष्यंत मिश्र ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रशिक्षणार्थियों को नर्सरी, मैंगो पैक हाउस, जीर्णोद्धारित बागों आदि का भ्रमण भी कराया। कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम समन्वयक डा. दुष्यंत मिश्र ने सभी का आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम में कोविड से सम्बंधित सभी दिशा निर्देशों का पालन किया गया । हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/दीपक-hindusthansamachar.in

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