UP की सियासत में इन 10 संतो ने दिखाया दम, करपात्री महाराज से लेकर योगी आदित्यनाथ और आचार्य प्रमोद कृष्णम तक

UP News: उत्तर प्रदेश की सियासत में संत योगी आदित्यनाथ का एक शानदार सफर रहा है। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल्कि धाम मंदिर का शिलान्यास किया।
UP की सियासत में इन 10 संतो ने दिखाया दम, करपात्री महाराज से लेकर योगी आदित्यनाथ और आचार्य प्रमोद कृष्णम तक
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लखनऊ, रफ्तार डेस्क। उत्तर प्रदेश की सियासत में संत योगी आदित्यनाथ का एक शानदार सफर रहा है। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल्कि धाम मंदिर का शिलान्यास किया। इसी बीच कल्कि धाम मंदिर के महंत आचार्य प्रमोद कृष्णम हर जगह चर्चा के विषय बने हुए है।

कल्कि मंदिर निर्माण में प्रमोद कृष्णम का बड़ा हाथ रहा है

कल्कि मंदिर निर्माण में प्रमोद कृष्णम का बड़ा हाथ रहा है। वह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ से कांग्रेस के उम्मीदवार थे। इन्हे कोंग्रस कांग्रेस पार्टी छह साल के लिए निष्कासित कर चुकी है। वर्तमान में यूपी की सियासत में दो संत योगी आदित्यनाथ और प्रमोद कृष्णा काफी चर्चा में हैं। इनका यूपी की राजनीति में योगदान किसी से नहीं छुपा है। लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत में और भी संत रह चुके हैं, जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आइये इनके बारें में जानें।

स्वामी करपात्री जी महाराज

उत्तर प्रदेश में संतो को सियासत में होना चाहिए, इसका आधार रखने वाले और कोई नहीं बल्कि स्वामी करपात्री जी महाराज ही है। इनके वजह से ही उत्तर प्रदेश में संत राजनीति में प्रवेश करने लगे। इन्होने साल 1948 में अपनी राजनीतिक पार्टी बनायीं थी और उसका नाम अखिल भारतीय रामराज्य परिषद रखा था। करपात्री जी महाराज को अपनी पार्टी से 1952 के पहले आम चुनाव में 3 सीटों में जीत मिली थी। वहीं 1962 के लोकसभा में इनकी पार्टी को 2 सीटों में जीत मिली थी।

वर्ष 1952 में ही इनकी पार्टी ने उत्तर प्रदेश और बिहार के विधानसभा चुनाव में 1-1 सीट में जीत दर्ज की। लेकिन इनकी पार्टी ने अपने आगे के भविष्य की नींव रखी थी। जिसके बदौलत इनकी पार्टी ने राजस्थान में 1957 के चुनाव में 17 सीटों में जीत दर्ज की थी। इंदिरा गांधी के समय इन्होने गौ रक्षा को लेकर बड़ा आंदोलन किया था। करपात्री जी अपनी पार्टी के स्टार प्रचारक रहे, लेकिन वह खुद चुनाव मैदान में नहीं उतरे। उनकी पार्टी की रैलियों में करपात्री जी का भाषण को सुनने के लिए भारी मात्रा में भीड़ जुड़ा करती थी। आखिर वर्ष 1971 में उनकी पार्टी अखिल भारतीय रामराज्य परिषद का विलय भारतीय जनसंघ में हो गया था।

स्वामी रामानंद शास्त्री

स्वामी रामानंद शास्त्री कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़कर 1971 में लोकसभा सांसद बने थे। उन्होंने अपनी सांसदी का खाता वर्ष 1957 में ही खोल लिया था। उसके बाद वह 1962 में भी सांसद रहे।

स्वामी ब्रह्मानंद

स्वामी ब्रह्मानंद कांग्रेस पार्टी की हमीरपुर लोकसभा सीट से साल 1971 में चुनाव जीतकर लोकसभा सांसद बने थे। उन्हें साल 1977 में आपातकाल विरोधी लहर के कारण हार का स्वाद भी चखना पड़ा था।

महंत दिग्विजयनाथ

महंत दिग्विजयनाथ गोरक्ष पीठ के महंत थे। इनका भी उन्ही संतो में नाम शामिल है जो आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में एक्टिव रहे। आखिरकार उन्हें साल 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गोरखपुर लोकसभा सीट से जीत मिली और सांसद बन गए थे।

महंत अवैद्यनाथ

महंत अवैद्यनाथ का नाम प्रदेश को एक सबसे शक्तिशाली सीएम देने वाले संत के रूप में भी जाना जाता है। यह वही संत है जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु थे। योगी ने इन्ही से राजनीति के गुर सीखे थे। महंत अवैद्यनाथ गोरक्ष पीठ के महंत थे। वर्ष 1962 में वह पहली बार गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट से विधानसभा का चुनाव जीते थे।

महंत अवैद्यनाथ ने लगातार 1977 तक मानीराम विधानसभा सीट से जीत दर्ज की और बहुत से कार्य जनता के लिए किये। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब 1980 में उन्होंने मीनाक्षीपुरम में हुए धर्म परिवर्तन से विचलित होकर राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया था। आखिर उन्होंने जनता का दर्द समझते हुए फिर से राजनीति में आने का निर्णय लिया और 1989 के आम चुनाव से फिर से अपनी राजनीति की पारी की शुरुआत की और लगातार तीन बार गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद बने। उनके बाद उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ 2014 तक सांसद रहे।

स्वामी चिन्मयानंद

स्वामी चिन्मयानंद भाजपा के टिकट पर साल 1991 के लोकसभा चुनाव में बदायूं सीट से जीत दर्ज करके सांसद बने थे। वह गोंडा से थे, उनका जन्म यही हुआ था। उन्होंने साल 1991 के बाद मछलीशहर और जौनपुर लोकसभा सीट से भी जीत दर्ज की थी और सांसद बने थे। उन्हें अटल बिहारी सरकार में मंत्री भी बनाया गया था।

साक्षी महाराज

साक्षी महाराज वर्तमान में उन्नाव लोकसभा सीट से सांसद हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुआ था। उन्होंने भाजपा के टिकट से 1991 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उसमे जीत दर्ज करके वह सांसद बने थे। वह 1991 में मथुरा से, 1996 और 1998 में यूपी के ही फर्रुखाबाद से लोकसभा सांसद बने। उन्होंने वर्ष 2000 से 2006 तक राजयसभा सांसद का कार्यभार भी संभाला था।

साध्वी निरंजन ज्योति

साध्वी निरंजन ज्योति का जन्म उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में हुआ था। वह वर्तमान में फतेहपुर सीट से सांसद हैं। उन्होंने मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री का सफर भी तय किया है। उन्होंने दुर्गा वाहिनी और विश्व हिंदू परिषद के लिए काम भी काम किया था। साध्वी निरंजन ज्योति वह महिला संत हैं जो मंत्री पद पर रहते हुए किसी अखाड़े की महामंडलेश्वर बनने वाली पहली संत रही। उन्हें प्रयागराज में कुंभ के दौरान निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर बनने का सौभाग्य मिला था।

सावित्री बाई फुले

सावित्री बाई फुले साल 2012 में भाजपा के टिकट से पहली बार विधानसभा का चुनाव बहराइच जिले की बल्हा सीट से जीती थी और विधायक बनी। भाजपा ने उन्हें साल 2014 में बहराइच लोकसभा सीट से टिकट दिया था, जिसमे उन्होंने जीत दर्ज करके संसद का सफर सांसद के रूप में तय किया। भाजपा के टिकट से संसद तक का सफर तय करने वाली सावित्री बाई फुले ने 2018 में पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस में शामिल हो गयी थी। अभी वह 'कांशीराम बहुजन समाज पार्टी' के नाम से अपना सियासी दल बनाकर राजनीति में सक्रीय हैं। उनका जन्म उतर प्रदेश के बहराइच जिले में ही हुआ था।

रामविलास वेदांती

डॉक्टर रामविलास वेदांती का जन्म मध्य प्रदेश के रीवां में हुआ था। वह राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य हैं। वह पहली बार साल 1996 में यूपी के मछलीशहर लोकसभा सीट से लोकसभा सांसद बने थे। साल 1998 में प्रतापगढ़ लोकसभा सीट वह लोकसभा सांसद बने। वर्तमान में उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली है।

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