नई दिल्ला, रफ्तार डेस्क। पंजाब और हरियाणा के किसान पीछले चार दिनों से दिल्ली के अलग- अलग बॉर्डर पर अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहें है। किसानों के दिल्ली कूच या 'दिल्ली चलो' मार्च को पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर रोक लिया गया है। दिल्ली की सीमाओं पर किसान और पुलिसकर्मियों के बीच लगातार झड़प देखने को मिल रही है। ऐसे में इस हलात को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में छह महीने के लिए हड़ताल पर पाबंदी लगा दी है। सरकार का कहना है कि यह नियम राज्य सरकार के अधीन सरकारी विभागों, निगम और प्राधिकरण पर लागू रहेगा।
अपर मुख्य सचिव कार्मिश डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने जारी किया नोटिफिकेशन
अपर मुख्य सचिव कार्मिश डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया है। अपर मुख्य सचिव कार्मिश डॉ. देवेश चतुर्वेदी द्वारा जारी इस नोटिफिकेशन में कहा गया है कि पूरे राज्य में एस्मा एक्ट लगा दिया गया है। अगर कोई भी कर्मचारी इसके बाद भी हड़ताल या प्रदर्शन करते पाया जाता है, तो हड़ताल करने वालों को एक्ट उल्लंघन के आरोप में बिना वारंट के गिरफ्तार किया जाएगा। बता दें कि यूपी सरकार पहले भी इसी तरह का फैसला दे चुकी है। राज्य सरकार ने 2023 में भी छह महीने के लिए हड़ताल पर बैन लगा दिया था। उस समय बिजली विभाग के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे, जिस वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छह महीने तक हड़ताल पर प्रतिबंध लगा दिया था।
क्या होता एस्मा एक्ट?
एस्मा यानी एसेंशियल सर्विसेज मैनेजमेंट एक्ट (Essential Services Management Act) कानून का इस्तेमाल उस समय किया जाता है, जब कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं। इस कानून को हड़ताल को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। खास बात यह है कि यह कानून अधिकतम छह महीने के लिए लगाया जा सकता है।
दिल्ली में दिख रहा किसान आंदोलन का असर
अपको बता दें राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन का असर देखने को मिल रहा है। मनोहर लाल खट्टर सरकार के आदेश पर किसानों को हरियाणा के अंबाला सिटी के पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर रोक लिया गया है। किसान आंदोलन के चलते दिल्ली में सड़कों पर लंबा जाम लगा है। लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर पड़ रहा है। सरकार ने दिल्ली में एक महीने के लिए धारा 144 लागू कर दिया है। किसान आंदोनल किसी भी समय दिल्ली तक पहुंच सकता है, ऐसे में राजधानी दिल्ली में कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था का इंतजाम किया गया है। फिलहाल, किसान नेता राकेश टिकैत ने इस बार आंदोलन से दूरी बनाई है। उन्होंने मीडिया से कहा कि 'उनका इस आंदोलन से कोई संबंध नहीं है, वह किसानों के साथ हैं मगर इस बार वह आंदोलन का हिस्सा नहीं बनेंगे।' लेकिन इसके साथ ही उन्होंने भी 16 फरवरी को किसानों से खेतों में काम नहीं करने का आह्वान किया है। इसके अगले दिन यानी 17 फरवरी (शनिवार) को मुजफ्फरनगर के ग्राम सिसौली में पंचायत बुलाई गई है।
क्या हैं किसानों की मांगें?
1. सभी फसलों की खरीद के लिए MSP गारंटी कानून बनाने की मांग।
2. डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से फसलों की कीमत तय करने की मांग।
3. किसान और खेत में काम करने वाले मजदूरों का कर्जा माफ करने की मांग।
4. 60 साल से ज्यादा उम्र के किसानों को 10 हजार रुपये पेंशन देने की मांग।
5. भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 दोबारा लागू करने की मांग।
6. लखीमपुर खीरी कांड में दोषियों के लिए सजा की मांग।
7. मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाने की मांग।
8. विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करने की मांग।
9. मनरेगा में हर साल 200 दिन का काम और 700 रुपये मजदूरी देने की मांग।
10. किसान आंदोलन में मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की मांग।
11. घायलों को 10 लाख रुपये का मुआवजा और दिल्ली मोर्चा सहित देशभर में सभी आंदोलनों के दौरान दर्ज सभी मुकदमे रद्द करने की मांग।
12. नकली बीज, कीटनाशक दवाइयां और खाद वाली कंपनियों पर कड़ा कानून बनाने और फसल बीमा सरकार को खुद कराने की मांग।
13. मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन करने की मांग।
14. संविधान की 5वीं सूची को लागू कर आदिवासियों के जमीन की लूट बंद करने की मांग।
15. किसानों को प्रदूषण कानून से बाहर रखने की मांग।
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