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पर्यावरण के प्रति लोक चेतना जागृत करना आवश्यक : प्रो दीक्षित

- क्रान्तिकारियों व बलिदानियों की स्मृति में लगायें पेड़ : डॉ विद्या विन्दु सिंह लखनऊ, 04 जून (हि.स.)। वर्तमान समय में वनाच्छादन के साथ पशु-पक्षियों को भी बचाने की आवश्यकता है। प्रकृति से जीवों का अनुपात कम होगा तो प्रलय की स्थिति बन सकती है। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हुए बिना जीवन को बचा पाना बड़ा मुश्किल होगा। ये बातें शुक्रवार को वरिष्ठ साहित्यकार एवं लखनऊ विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के अवकाश प्राप्त अध्यक्ष प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कही। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति लोक चेतना जागृत करना आवश्यक है। वे लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर लोक प्रकृति संचेतना अभियान के तहत आयोजित कोरोना महामारी के नियंत्रण में पर्यावरण चेतना की भूमिका विषयक वेब संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रकृति के अंधाधुध दोहन और उससे खिलवाड़ के चलते प्रत्येक 100 वर्ष में एक वैश्विक महामारी देखने को मिल रही है। 15वीं शताब्दी में हैजा, सोलहवीं में प्लेग, सत्रहवीं में तपेदिक, अट्ठारहवीं में एड्स, उन्नीसवीं में फ्लू और अब कोरोना के मूल में प्राकृतिक उपादानों से छेड़छाड़ ही प्रमुख कारण रहे हैं। प्रो. दीक्षित ने कहा कि आज से अस्सी वर्ष पूर्व जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में प्रकृति को दुर्जेय बताया है। इस पर विजय पाने की कामना पूरी तरह सफल नहीं हो सकती। पर्यावरण के प्रति लोक चेतना जागृत करने के लिए कार्यशाला व गोष्ठियां, कथा, कहानी, लेख, सूक्तियां, नारे लिखे जाने, विषय को पाठ्यक्रम से जोड़ने, नुक्कड़ नाटक, कठपुतली, रेडियो, टीवी, फिल्म, सोशल मीडिया, कवि सम्मेलन, मुशायरे आदि के माध्यम से इस कार्य को युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विद्या विन्दु सिंह ने बागों के शहर के रूप में विख्यात लखनऊ को हरा भरा बनाने की अपील करते हुए लोगों से क्रान्तिकारियों व बलिदानियों की स्मृति में पौधा रोपने का आह्वान किया। पौधों को अपनी बेटी मानने वाले पर्यावरणविद् आचार्य चन्द्रभूषण तिवारी ने पर्यावरण से सम्बंधित गीत पेड़वा चिरैया बसेर सुनाया। ग्यारह लाख पौधा रोपन का संकल्प लेने वाले आचार्य तिवारी ने बताया कि वे अब तक साढ़े सात लाख पौधे लगा चुके हैं। लोकगायिका कुसुम वर्मा ने प्रकृति से जुड़ी बातें साझा करते हुए बाबा निमिया के पेड़ जिन काटो सुनाया। दाना-पानी के संस्थापक गौरव मिश्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में व्यवस्थाओं को उत्सव का रूप मिला है। पर्यावरण के लिए भी उत्सवधर्मिता को बढ़ावा देने तथा बच्चों को इस बारे में बताने की आवश्यकता है। उन्होंने दाना-पानी पहल और नन्हें किसान कार्यक्रम से जुड़ी बातें भी बतायीं। संस्कृतिकर्मी डाॅ एसके. गोपाल ने गुरु पूर्णिमा से रक्षा बन्धन तक पौधारोपण का सतत अनुष्ठान चलाने, गिलोय आदि औषधीय बेलों तथा सहजन आदि पौधों से सम्बन्धित जानकारी दी। संगोष्ठी के दौरान बाल कलाकार स्वरा त्रिपाठी ने पर्यावरण पर स्वरचित कविता सुनाकर वाहवाही बटोरी। लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने आभार ज्ञापित किया। हिन्दुस्थान समाचार/राजेश

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