istegfar-tauba-and-sadka-do-the-bailout-as-much-as-possible-mufti-abdurrasheed-kasami
istegfar-tauba-and-sadka-do-the-bailout-as-much-as-possible-mufti-abdurrasheed-kasami

इस्तेगफार (तौबा) और सदका, खैरात ज्यादा से ज्यादा करें : मुफ्ती अब्दुर्रशीद कासमी

कानपुर, 03 मई (हि.स.)। वैश्विक महामारी कोरोना पूरी दुनिया में मुसीबत और आफत के रूप में आयी हुई है। महामारी से निजात के लिये रमजान मुबारक के महीने में सावधानियां बरतने के साथ-साथ इस्तेगफार (तौबा) और सदका, खैरात ज़्यादा से ज़्यादा करें। इन विचारों को मुहकमा ए शरिया व दारूल कजा के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती अब्दुर्रशीद कासमी ने कही। उन्होंने बताया कि सदका रब के गजब को बुझा देता है और इस्तेगफार (गुनाहों की तौबा) की अधिकता से अल्लाह को रहम आता है। हमें चाहिये हम खुद भले एक वक्त खाएं। नए कपड़े ना सिलायें, आराम में कमी लायें और जकात के अलावा भी कम से कम सद्क़ा आदि के द्वारा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें तो अल्लाह से उम्मीद है कि यह संक्रामक रोग टलेगा और हम सभी सुरक्षित रहेंगे। मुफ्ती कासमी ने बताया कि आज से आखिरी अशरे का ऐतकाफ शुरू हो रहा है। लेकिन मस्जिदों में 5 लोगों को ही जाने की इजाजत है और ज़्यादा लोगों के ऐतकाफ की मनाही है और पांच में भी इमाम, मोअज्ज़िन और सफाई करने वालों को मिलकार सामान्यतः 5 लोग ऐसे ही हो जाते है, ऐसे हालात में मस्जिदों में ज़्यादा लोग ऐतकाफ ना करें। ज़िम्मेदारों से पूछ करके एक या दो लोग बैठ जायें ताकि सुन्नते किफाया अदा हो जाये।अलबत्ता घरों में महिलायें ऐतिकाफ कर सकती हैं। ऐसे में हमें चाहिये कि हम कुरआन की हिदायतों पर अमल करते हुए हालात को सही रास्ते पर लाने के उद्देश्य से हम बगैर किसी निजी स्वार्थ के लोगों को रब की इबादत के लिए लोगो को मुतावज्जे करे। अपने कर्माें में सुधार करें ताकि लोग हमारे कामों से प्रभावित हों, और हमारे कामों से पता चले कि हम मुसलमान हैं। अगर उपरोक्त हिदायतों पर अमल करेंगे तो उसकी बरकतों के परिणाम हम खुद देखेंगे और आने वाली नस्लों पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा। कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी कानपुर की अल-शरिया हेल्पलाइन से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रश्न:- जकात की रकम निकाल कर अलग रखी थी लेकिन पात्र तक नहीं पहुंचा पाये, अब इस निकाले हुए जकात की रकम पर साल गुजर गया तो क्या अब दोबार उस पैसे की भी जकात देनी होगीे ? उत्तर:- हां ! जकात की नियत से निकाली गयी इस रकम की फिर से जकात देनी होगी। प्रश्न:- रोजे की हालत में मुझे बहुत देर तक हिचकियां आ रही थीं, उसे रोकने के लिये पानी पी लिया तो अब रोजे का क्या हुक्म है? उत्तर:- हिचकी ऐसा ठोस कारण नहीं है जिसकी वजह से रोजा तोड़ा जाये, इसलिये अगर आपने हिचकी आने की वजह से पानी पी लिया तो आपका रोजा टूट गया और आपको कजा और कफ्फारा दोनों अदा करना चाहिए। प्रश्न :- इंतेकाल के बाद जब जनाज़ा उठाया जाता है तो क्या शरीअत के अनुसार ऐसा कोई नियम है कि जनाजे का बेटा या बाप ही पहले किसी पाये को उठाये, इसी तरह दफन करते वक्त भी मृतक का सगा सम्बन्धी की मिट्टी देने में पहल करे? उत्तर:- जनाजे को कोई भी आदमी उठा सकता है, इसी तरह मृतक को कब्र में उतारने के बाद दफन करते वक्त कोई भी आदमी मिट्टी देने में पहल कर सकता है, मृतक का सगा सम्बन्धी ही हर चीज की शुरूआत करे ऐसा कोई जरूरी नहीं है। प्रश्न:- मैंने अपने पसन्द के कपड़े से एक जोड़ी लिबास सिलवाया, लेकिन सिलाई में कमी और फिटिंग सही ना होने की वजह से बाद में पसन्द नहीं आ रहा और इस लिबास को हटाना चाहता हूं, चूंकि कपड़ा महंगा है, तो क्या उसको जकात के रूप में निकाल दें और जितनी कीमत का कपड़ा है, उस कीमत को जकात में शामिल कर दें? उत्तर:- हां ! उस कपड़े को ज़कात में निकाल सकते हैं लेकिन उसकी कीमत वह नहीं हागी जिस कीमत पर खरीदा और सिलाई दी है, बल्कि वह कीमत जोड़ेंगे जिस कीमत पर अब यह कपड़ा फरोख्त होगा। हिन्दुस्थान समाचार / महमूद

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in