उप्र में श्रद्धा व सादगी से मना गुरु पूर्णिमा का पर्व, भक्तों ने की ऑनलाइन पूजा
उप्र में श्रद्धा व सादगी से मना गुरु पूर्णिमा का पर्व, भक्तों ने की ऑनलाइन पूजा

उप्र में श्रद्धा व सादगी से मना गुरु पूर्णिमा का पर्व, भक्तों ने की ऑनलाइन पूजा

-मुख्यमंत्री योगी ने गोरक्षपीठ में गुरु पूजन कर की लोकमंगल की प्रार्थना -आरएसएस की कुटुम्ब शाखाओं में गुरु स्वरुप पूजे गये भगवा ध्वज - कोरोना के चलते मठों व आश्रमों में पसरा रहा सन्नाटा लखनऊ, 05 जुलाई (हि.स.)। गुरु के प्रति आस्था, भक्ति और समर्पण प्रकट करने का पर्व गुरु पूर्णिमा रविवार को पूरे उत्तर प्रदेश में बड़ी ही श्रद्धा और सादगी के साथ मनाया गया। कोरोना संकट के चलते भक्तों ने ऑनलाइन गुरुओं की पूजा की और उनका आशीर्वाद लिया। आश्रमों और मठों में आज श्रद्धालुओं की भीड़ नजर नहीं आई। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी शारीरिक दूरी के प्रोटोकाल का पालन करते हुए गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ में अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज का पूजन कर लोकमंगल के लिए प्रार्थना की। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि हमारी संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान बताया गया है। उन्होंने कहा कि हमें गुरु पूजन पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ करना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आज चंद्रग्रहण का भी योग रहा। ऐसे में श्रद्धालुओं ने आज गंगा-यमुना समेत प्रदेश की अन्य पवित्र नदियों में स्नान भी किया। प्रयागराज में संगम और काशी में गंगा तट पर स्नानार्थियों की अच्छी भीड़ रही। अयोध्या में भक्तों ने सरयू में आस्था की डुबकी लगाई। मठों आश्रमों में पसरा रहा सन्नाटा गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आश्रमों और मठों में भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है। लेकिन, इस बार प्रदेश के लगभग सभी मठों और आश्रमों में सुबह से ही सन्नाटा नजर आया। भक्तों ने अपने पूज्य गुरुओं का सोशल मीडिया के माध्यम से डिजिटल पूजन किया। प्रयागराज स्थित शंकराचार्य आश्रम में गुरु पूजन बड़ी ही सादगी के साथ मनाया गया। ज्योर्तिपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती का आश्रम में उपस्थित शिष्यों ने शारीरिक दूरी बनाकर चरण पादुका का पूजन कर आशीष प्राप्त किया। प्रयाग में ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के आश्रम बाघम्बरी मठ में भी इस बार कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ। मठ में उपस्थित शिष्यों ने सीमित संख्या में चरण पादुका का पूजन किया। मथुरा के गोर्वधन स्थित आद्य शंकराचार्य में पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य अधोक्षजानंद देवतीर्थ का श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन पूजन किया। शंकराचार्य ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से ही श्रद्धालुओं को आशीर्वचन और संदेश दिया। वाराणसी में भी गुरु पूर्णिमा के पावन मौके पर मठों और आश्रमों में सन्नाटा दिखा। काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने अपने भक्तों को ऑनलाइन आशीर्वाद दिया। श्रद्धालुओं ने भी उनका दर्शन पूजन भी ऑनलाइन किया। इसी तरह प्रदेश के अन्य नगरों में भी गुरु पर्व सादगी के साथ मनाया गया। राम नगरी अयोध्या में तो कोरोना के कारण जिला प्रशासन ने ही बाहरी लोगों के आने पर पाबंदी लगा दी है। ऐसे में वहां के मठ मंदिरों में भी गुरु पूर्णिमा का पर्व डिजिटल रुप से मनाया गया। आरएसएस की कुटुम्ब शाखाओं में पूजे गये भगवा ध्वज गुरु पूर्णिमा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का प्रमुख पर्व है। संघ के स्वयंसेवक परम पवित्र भगवा ध्वज को ही अपना गुरू मानकर उसकी पूजा करते हैं। कोरोना के चलते इस समय संघ की शाखाएं ‘कुटुम्ब शाखा’ के रुप में परिवारों में लग रही हैं। ऐसे में गुरु पर्व के अवसर पर आज प्रदेश भर की कुटुम्ब शाखाओं में भगवा ध्वज को गुरु के स्थान पर विराजित करके मातृभूमि को नमन किया गया। गुरु पूर्णिमा के दिन भगवा ध्वज को गुरु मानकर स्वयंसेवक गुरु दक्षिणा पुष्प अर्पित करते हैं। इसी समर्पित राशि से संगठन की विविध गतिविधियों का संचालन होता है। गुरु पूर्णिमा पर चन्द्रग्रहण का योग आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर गुरु पर्व का आयोजन होता है। इस बार लगातार तीसरे साल गुरु पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रग्रहण का योग रहा। यह चंद्र ग्रहण सुबह 08 बजकर 38 मिनट पर प्रारंभ होकर पूर्वाह्न 11 बजकर 21 मिनट पर समाप्त हो गया। हालांकि, यह चंद्रग्रहण भारत के संदर्भ में बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं रहा। ज्योतिषाचार्य डा0 ओमप्रकाशाचार्य ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि यह एक उपच्छाया चंद्रग्रहण रहा, जो भारत में दिखाई भी नहीं दिया। संन्यासियों का शुरु हुआ चार्तुमास गुरु पूर्णिमा के दिन से ही संन्यासियों ने चार्तुमास व्रत प्रारम्भ कर दिया। वैसे चार्तुमास का प्रारम्भ देवशयनी एकादशी के साथ पहली जुलाई को ही हो गया था। लेकिन, संन्यासियों में चार्तुमास का अनुष्ठान गुरु पूर्णिमा से शुरु करने की परंपरा है। सनातन मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु शयन में चले जाते हैं। इस कारण इन चार महीनों जगत की सत्ता भगवान शंकर के हाथ रहती है। इस साल अधिमास के कारण चातुर्मास की अवधि पांच माह रहेगी। इस दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं होंगे। देवोत्थान एकादशी के दिन 25 नवम्बर को भगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होगी। चार्तुमास अवधि तक साधु-संन्यासी एक ही स्थान पर रहकर तपस्या और अन्य अनुष्ठान करेंगे। हिन्दुस्थान समाचार/ पीएन द्विवेदी/राजेश-hindusthansamachar.in

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