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नये कृषि कानून को लेकर किसानों को भ्रमित किया जा रहा है, सही जानकारी देने की जरूरत : डॉ. एडी पाठक

-बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विवि में चल रहे नेशनल कांफ्रेंस आन एग्रीकल्चरल मार्केटिंग का हुआ समापन लखनऊ, 18 मार्च (हि.स.)। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग और इंडियन सोसाइटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल मार्केटिंग (आईएसएएम) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय "नेशनल कांफ्रेंस ऑन एग्रीकल्चरल मार्केटिंग" का समापन गुरुवार को हो गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एडी पाठक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शुगरकेन, लखनऊ ने कृषि से जुड़े कई मुद्दों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि कोई भी नई पॉलिसी लागू करने से पहले उसका मूल्यांकन आवश्यक है। हाल ही में बदले कृषि कानूनों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट के बारे में भ्रमित किया जा रहा है। उन्हें कानूनों की सही और पर्याप्त जानकारी देना आवश्यक है। उन्होंने गन्ने की खेती और उससे जुड़ी व्यावसायिक संभावनाओं के बारे में भी जानकारी दी और बताया कि प्रोडक्ट डायवर्सिफिकेशन टेक्नीक से भी हम कृषि उत्पादों की बिक्री में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। इंडियन सोसाइटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल मार्केटिंग के प्रेसिडेंट प्रोफेसर राधाकृष्णा ने ट्राइबल कम्युनिटीज़ द्वारा तैयार उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मुख्य बाज़ारों से दूरी और ट्रांसपोर्ट की समस्या की वजह से जनजातियों द्वारा तैयार उत्पाद बिचौलियों द्वारा कौड़ियों के भाव खरीदा जाता है और फिर वही उत्पाद महंगे दामों में बिकता है। इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है। सोसाइटी के सेक्रेटरी डॉ. टी सत्यनारायण ने कहा कि कोई भी नई पॉलिसी या नया मॉडल लागू करने से पहले उस क्षेत्र से जुड़े शिक्षाविदों और विशेषज्ञों तथा संबंधित लोगों से चर्चा बेहद आवश्यक है ताकि उस नीति के हर पहलू को बारीकी से परखा जा सके। कोई भी नीति पहले परीक्षण के आधार पर लागू की जाए और कुछ समय बाद उसके मूल्यांकन के आधार पर ही उसे पूर्ण रूप से लागू किया जाए, यह प्रक्रिया किसी भी नीति के सफल होने की संभावना को बढ़ाएगी। विवि के कुलसचिव प्रो. एस विक्टर बाबू ने कहा कि किसानों के निचले आय के स्तर की वजह से वे आर्थिक समस्याओं से घिरे रहते हैं जो आत्महत्या की प्रवृत्ति को प्रबल करता है। हमें इस क्षेत्र में बड़े बदलावों की आवश्यकता है। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई उपयोगी सुझाव मिले हैं, यदि इन सुझावों पर गंभीरता से कार्य किया जाए और इन्हें लागू किया जाए तो समाधान अवश्य मिलेगा। डीन, स्कूल ऑफ अम्बेडकर स्टडीज़ प्रो0 बीबी मलिक ने कहा कि जनजातियों की जीवनशैली और परिस्थितियां अलग है, उनकी समस्याएं और प्राथमिकताएं भी अलग है इसलिए हमें उनके लिए अलग कानून बनाने की आवश्यकता है जो उनकी परिस्थितियों के अनुरूप हो, तभी हमें उनके जीवन स्तर को सुधारने में सफलता हासिल होगी। प्रो0 सनातन नायक, विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग, ने वर्ष 1960 के बाद देश मे कृषि की स्थिति और वर्ष 1991 के उदारीकरण के बाद कृषि के जीडीपी में योगदान की तुलना की। हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/दीपक

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