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चैत्र नवरात्र के पहले दिन बाबा विश्वनाथ की नगरी आदिशक्ति के पूजन अर्चन में लीन

- मां शैलपुत्री और मुख निर्मालिका गौरी से श्रद्धालुओं ने सुख शान्ति के साथ कोरोना से मुक्ति की लगाई गुहार वाराणसी,13 अप्रैल (हि.स.)। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी चैत्र नवरात्र के पहले दिन मंगलवार से आदि शक्ति के गौरी और जगदम्बा स्वरूप के पूजन अर्चन में लीन हो गई है। परम्परानुसार आदि शक्ति के गौरी स्वरूप मुख निर्मालिका गौरी और शक्ति स्वरूपा जगत जननी शैलपुत्री के दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु कोविड काल में रात्रि प्रतिबंध के चलते सुबह 06 बजे के बाद दरबार में दर्शन पूजन के लिए पहुंचते रहे। दरबार में लोगों ने मातारानी से घर परिवार में सुख शान्ति के साथ वैश्विक महामारी कोरोना से मुक्ति दिलाने की गुहार भी लगाई। दोनों देवी मंदिरों में कोविड प्रोटोकाल का पालन कराते हुए जिला प्रशासन के आदेशानुसार एक बार में पांच श्रद्धालुओं को ही दरबार में दर्शन के लिए भेजा जा रहा था। इस दौरान दरबार में बाहर बैरिकेडिंग में कतारबद्ध श्रद्धालु नारियल, अढ़हुल की माला और चुनरी हाथ में लेकर मां का गगनभेदी जयकारा लगाते रहे। नवरात्र के पहले दिन अलसुबह से ही घरों सहित छोटे-बड़े देवी मंदिरों में देवी गीतों, दुर्गा सप्तशदी, चंडीपाठ के स्वर गूंजने लगे। हवन पूजन में इस्तेमाल धूप, कपूर, अगरबत्ती, दशांघ समिधा, सांकला का धुआं माहौल को आध्यात्मिक बनाता रहा। जिन घरों और मंदिरों में पूरे नवरात्र भर पाठ बैठाना था। वहां घट स्थापना सुबह प्रातः 6:53 बजे से पूर्वांह के बीच किया गया। चैत्र नवरात्र में पहले दिन (प्रथमा) को गायघाट स्थित मुख निर्मालिका गौरी के दरबार में मत्था टेकने के लिए सुबह 06 बजे के बाद से ही कतार लगी रही। अलईपुर स्थित भगवती शैलपुत्री का आंगन और उनके दरबार की ओर जाने वाला मार्ग श्रद्धालुओं की भीड़ से पटा रहा। मंदिर में नियमित दर्शन पूजन करने वाले श्रद्धालु शिवाराधना समिति के डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि मंदिर का यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है। मां शैलपुत्री रूप के दर्शन करने से मानव जीवन में सुख-समृद्धि आती है। उन्होंने बताया कि भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्री के रूप में है। हिमालय राज के घर जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा जाता है। भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। इन्हें पार्वती स्वरुप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस स्वरूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी और इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट दूर हो जाते हैं। उधर,चैत्र नवरात्र के पहले दिन ज्यादातर लोग आदि शक्ति के प्रति श्रद्धा जताने के लिए चढ़ती उतरती के क्रम में पहले दिन व्रत रहे। वहीं, लाखों महिलाओं और श्रद्धालुओं ने पूरे नौ दिन व्रत रखने का संकल्प लिया और पहले दिन से पूरे आस्था के साथ इसकी शुरूआत कर दिया। नवरात्र में गुड़हल, गुलाब और गेंदे के फूलों के माला की सबसे ज्यादा मांग रही। गुड़हल का माला 20-30 रुपये प्रति पीस के भाव से बिका। पर्व पर माला फूल और फल दोगुने दाम पर बिक रहे है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/

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