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गंगा में किसी भी जीव के शव का प्रवाह न करें - नमामि गंगे

वाराणसी, 02 जून (हि.स.) कोरोना संक्रमण काल में इंसानों के साथ विभिन्न पशुओं के भी शव गंगा नदी में बहाने की बढ़ती प्रवृत्ति को देख पर्यावरणविद् चिंतित है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग भी इसको लेकर नाराजगी जता चुका है। ऐसे में लोगों को जागरूक करने के लिए सामाजिक संगठन भी आगे आ रहे है। गंगा निर्मलीकरण अभियान के तहत नमामि गंगे के कार्यकर्ताओं ने बुधवार को गंगा घाटों पर ध्वनि विस्तारक यंत्र से लोगों से अपील किया कि गंगा में किसी भी जीव के शव का प्रवाह न करें । पॉलिथीन मुक्त गंगा का आह्वान कर कार्यकर्ताओं ने कहा कि गंगा से कोई एक समुदाय या संप्रदाय विशेष का जुड़ाव नहीं है, बल्कि समाज के सभी वर्ग के लोग किसी न किसी रूप में गंगा से अपना जुड़ाव देखते हैं। गंगा भारतीय संस्कृति की संवाहिका है। ऐसे में हमें गंगा में शव को प्रवाहित करने से बचना होगा। कार्यक्रम के संयोजक राजेश शुक्ला ने कहा कि गंगा भारतीय संस्कृति की जीवनधारा है। मां गंगा का शुद्ध होना हमारे पर्यावरण की स्वच्छता का महत्वपूर्ण मापदंड है। गंगा, पर्यावरण ओर संस्कृति का संरक्षण और संर्वधन हमारे देश के विकास का मार्ग है। गंगा के साथ हमारा सानिध्य समावेशी संस्कृति का परिचायक हैं। उन्होंने कहा कि गंगा और सहायक नदियों का क्षेत्र देश के 11 राज्यों में है। यहां देश की 43 फीसद आबादी रहती है। इसलिए गंगा की स्वच्छता जरूरी है। इसी में गंगा की स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य भी जुड़ा है। इसके लिए 2015 में नमामि गंगे योजना शुरू की गई। सरकार द्वारा शुरू किए गए कार्य की अच्छे परिणाम भी आए हैं। राजेश शुक्ल ने कहा कि गंगा घाटों की सफाई से न सिर्फ गंगा स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण को बल मिला है, बल्कि स्वच्छ और सुंदर घाट पर्यटकों को भी लुभाएंगे। गंगा को निर्मल, स्वच्छ और अविरल बनाना केवल सरकारों का दायित्व नहीं, बल्कि सभी देशवासियों का है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/विद्या कान्त

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