Lok Sabha Election: यूपी की इस सीट पर CPI(M) का रहा सालों तक कब्जा, क्या BJP फिर खिला पाएगी कमल?

Uttar Pradesh News: कांग्रेस को बांदा चित्रकूट लोकसभा क्षेत्र से खदड़ने वाले दादा राम सजीवन सिंह पटेल ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना विशेष छाप छोड़ा है।
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बांदा, हि.स.। बुंदेलखंड में कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के नेता दुर्जन भाई और जागेश्वर यादव के बाद दादा राम सजीवन सिंह पटेल का नाम लिया जाता है। जिन्होंने चाहे बांदा चित्रकूट लोकसभा क्षेत्र का चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव हो, कांग्रेस को उबरने नहीं दिया। ज्यादातर चुनाव में कम्युनिस्ट ने कांग्रेस को मात दी थी।

4 विधायक और 3 बार बने सांसद

राम सजीवन चित्रकूट विधानसभा से चार बार विधायक बने और इसी पार्टी से एक बार सांसद बने थे। बाद में बसपा का दामन थाम कर बसपा से भी दो बार सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। तीन बार सांसद और चार बार विधायक रहे इस राजनीति के पुरोधा का अब तक कोई सूरमा रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाया। चित्रकूट के छोटे से गांव सोनेपुर में किसान चुन्नीलाल पटेल के घर में 1929 में जन्म लेने वाले राम सजीवन ने 1962 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। कम्युनिस्ट पार्टी में रहते हुए वे 1969 से लेकर 1989 तक चित्रकूट विधानसभा से चार बार जीत हासिल करके विधायक चुने गए। इसके बाद 1989 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट से बांदा चित्रकूट लोकसभा से चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा के सदस्य बने। इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीति राम सजीवन के इर्द-गिर्द घूमती रही।

जब लाल परचम पड़ा फीका

उनके बाद चित्रकूट विधानसभा में राम प्रसाद सिंह कम्युनिस्ट का परचम लहराते रहे। वही नरैनी की विधानसभा सीट पर सुरेंद्र पाल बर्मा कम्युनिस्ट पार्टी का लाल परचम फहराकर विधायक बनते रहे। बुंदेलखंड से कम्युनिस्ट पार्टी के इकलौते सांसद बनने के कारण राम सजीवन का पार्टी में महत्व बढ़ता जा रहा था। लेकिन इस बीच बसपा का उदय होने से पार्टी के कुछ साथी पाला बदलकर बसपा में शामिल हो गए। जिससे धीरे-धीरे कम्युनिस्ट के लाल परचम की चमक फीकी पड़ने लगी।

इस सीट पर आज कम्युनिस्ट का खाता खुलना मुश्किल

पार्टी के साथियों के एक-एक करके बसपा में शामिल होने से राम सजीवन भी अपने आप को रोक नहीं पाए और 1996 में का कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया। इस तरह जिले में कम्युनिस्ट पार्टी नेतृत्वहीन हो गई। बसपा ने इन्हें 1996 में बांदा चित्रकूट लोकसभा सीट पर चुनाव मैदान में उतारा। बसपा के टिकट पर भी राम सजीवन सिंह जीत हासिल करने में कामयाब रहे। इसके बाद 1999 में तीसरी बार इस लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। इस बीच बसपा का जनाधार बढ़ता गया और कम्युनिस्ट पार्टी का जनाधार घटता चला गया। उनके कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ने से आज तक लोकसभा में कम्युनिस्ट का खाता नहीं खुला, अब चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो जाती है।

जेल से रहकर लड़ा चुनाव

राम सजीवन की लोकप्रियता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। इसके बाद उपजे हालात पर उन्हें भी गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने जेल से रहकर चुनाव लड़ा और करीब 12000 रिकार्ड मतों से जीत हासिल करके यह साबित कर दिया था कि उन पर चाहे जितनी बंदिशें लगाई जाएं वह हर हालत में चुनाव जीत सकते हैं। इस बीच उनका 16 जुलाई 2008 को बीमारी के चलते निधन हो गया। इसके बाद उनके परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं हुआ।

वर्तमान में BJP का कब्जा इस सीट पर

इस लोकसभा में अब तक 17 बार हुए चुनाव में आरके सिंह पटेल को छोड़कर कोई दूसरा व्यक्ति दूसरी बार सांसद नहीं बन पाया। यही वजह है कि अब तक राम सजीवन सिंह का कोई रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाया। आरके सिंह पटेल दो बार विधायक और सांसद बन चुके हैं। तीसरी बार भाजपा ने उन्हें फिर लोकसभा चुनाव मैदान में उतारा है। अगर इस बार चुनाव में आरके सिंह पटेल सांसद बनते हैं तो वह उनके रिकॉर्ड की बराबरी करेंगे। लेकिन इस बार उनका रिकॉर्ड टूट पाता है कि नहीं यह इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद साफ हो जाएगा।

इस सीट पर कुर्मी और ब्राह्मणों के बीच होती है लड़ाई

राजनीतिक विश्लेषक पत्रकार सुधीर निगम का कहना है कि राम सजीवन सिंह कुर्मी बिरादरी के सशक्त नेता थे। जिसके कारण राजनीति में उनका बोलबाला था। उनके बाद आरके सिंह पटेल बसपा से होते हुए सपा और अब भाजपा की राजनीति कर रहे हैं। वह भी कुर्मी बिरादरी से आते हैं। इस सीट पर कुर्मी और ब्राह्मणों के बीच लड़ाई होती है। कभी ब्राह्मण को सफलता मिलती है, तो कभी कुर्मी प्रत्याशी जीत दर्ज करता है।

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