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चैत्र नवरात्र : चौथे दिन कुष्मांडा और श्रृंगार गौरी के दरबार में भक्तों ने लगाई हाजिरी

- शिवसैनिकों ने माता श्रृंगार गौरी का किया दर्शन, कोविड महामारी से मुक्ति की गुहार वाराणसी,16 अप्रैल (हि.स.)। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के विकराल रूप लेने के बीच चैत्र नवरात्र के चौथे दिन शुक्रवार को भी लोग पूरे उत्साह के साथ आदिशक्ति के आराधना में लीन रहे। चौथे दिन परम्परागत तरीके से श्रद्धालुओं ने कोरोना प्रोटोकाल का पालन कर आदिशक्ति के स्वरूप दुर्गाकुंड स्थित कुष्मांडा दरबार और ज्ञानवापी परिक्षेत्र स्थित जगदम्बा के गौरी स्वरूप स्वयंभू विग्रह श्रृंगार गौरी का दर्शन पूजन किया। कोरोना संकट काल में रात्रि प्रतिबंध के चलते सुबह सात बजे के बाद लोग दोनों मदिरों में दर्शन पूजन के लिए पहुंचने लगें। यह क्रम पूरे दिन जारी रहा। कोरोना संकट के चलते पूर्व की भांति मंदिरों में लोगों की भीड़ नहीं देखी गईं। ज्यादातर महिलाओं और बुजुर्गों ने मंदिर जाने से परहेज कर घर में ही माता रानी का ध्यान लगाया। मंदिर में कतार में दो गज की दूरी के नियमों का पालन कर श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन किया। इस दौरान भक्त सच्चे दरबार की जय, मां शेरा वाली के जयकारे भी लगाते रहे। चौथे दिन वर्ष भर में एक दिन के लिए खुलने वाले श्रृंगार गौरी के दरबार में दर्शन पूजन के लिए आम श्रद्धालुओं के साथ शिवसेना के कार्यकर्ता भी पहुंचे। चौक चित्रा सिनेमा के समीप जुटे शिवसैनिक अरुण चौबे के नेतृत्व में माता रानी के दरबार में जयकारा लगाते हुए पहुंचे। कड़ी सुरक्षा के बीच बिना किसी नोक-झोंक के शांति पूर्वक शिवसैनिकों ने दर्शन पूजन किया। महिलाओं ने भी कोरोना प्रोटोकाल का पालन कर सुख-समृद्धि व सौभाग्य की प्रदात्री श्रृंगार गौरी का दर्शन पूजन किया। गुलशन कपूर के नेतृत्व में भी कई शिवसैनिकोें और नागरिकों ने दरबार में हाजिरी लगाई। बताते चले कि, ज्ञानवापी परिक्षेत्र के अति संवेदनशील क्षेत्र में स्थित मां श्रृंगार गौरी का मंदिर वर्ष में एक दिन चैत्र नवरात्र के चौथे दिन ही खुलता है। ज्ञानवापी परिसर में मस्जिद के पीछे माता रानी का विग्रह हैं। काशी में मान्यता है कि माता रानी के स्वयंभू विग्रह के दर्शन से महिलाओं का श्रृंगार वर्ष भर बना रहता है। आम तौर पर सामान्य दिनों में श्रृंगार गौरी को लाल वस्त्र से ढककर रखा जाता है, लेकिन चैत्र नवरात्र में चौथे दिन एक दिन के लिए उन्हें मुखौटा व लाल चुनरी से सुशोभित किया जाता है। नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाकुंड स्थित कुष्मांडा स्वरूप का दर्शन पूजन होता है। जगदम्बा के इस रूप के दर्शन-पूजन से सारी बाधा, विध्न और दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है। मां की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। मां कुष्मांडा` विश्व की पालनकर्ता के रूप में भी जानी जाती हैं। माता रानी के इस स्वरूप के बादे में मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चहुंओर अंधकार व्याप्त था उसी समय माता ने अपने ‘ईषत’ हस्त से सृष्टि की रचना की थी। देश के प्राचीनतम देवी मंदिरों में से एक इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि दुर्गम दानव शुम्भ-निशुंभ का वध करने के बाद थकी आदि शक्ति ने यहां विश्राम किया था। तब काशी का यह इलाका दुर्गम और वनाच्छादित था। इस मंदिर का जिक्र 'काशी खंड' में भी है। नागर शैली में निर्मित गाढ़े लाल रंग के इस आध्यात्मिक शक्तिपीठ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी श्रद्धाभाव से मत्था टेक चुके है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर

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