
ऊपर वाले ने सबकी जिंदगी लिख रखी है। किसको कितने दिन जीना है, किसको कब अलविदा कहना है सबकुछ। हम इंसान भी न मरने वालों के बस नाम याद रखते हैं , कुछ काम याद रखते हैं , बहुत कम लोग हैं जिन्हे हम मरने के बाद भी याद रखते हैं। अतीक या अशरफ की मौत एक मौत नहीं थी। अगर अतीक की मौत हत्या है तो उमेश पाल, राजू पाल, गनर संदीप और न जाने उन 108 मुकदमों में खत्म हुई जिंदगियों को क्या नाम देंगे ? उस मां के सूनी आँचल के बारे में क्या कहूंगा जिसको इनके गुर्गों ने मारा। उस पत्नी के उजड़े हुए सुहाग को क्या कहूंगा जिसके पति को इन्होंने मारा। उस छोटे बच्चों के सर से बाप का साया छीनने वाले को क्या नाम दूंगा फिर। ऐसी ना जाने कितनी कहानियां है जो चीख-चीख कर अपने खिलाफ जुर्म का हिसाब मांग रही। अतीक और अशरफ का खौफ इतना ज्यादा था कि न्याय के लिए साल दर साल कई जिंदगियां भटकती रहीं।
आज शायद शाइस्ता परवीन को इसका इल्म हुआ होगा जब वो बच्चों को अंतिम समय भी सीने से लगा ना पायी होगी। अपने शौहर को आखिरी मिट्टी भी दे ना पायी। एक बार अतीक ने अपने राजनयिक जीवन में भाषण देते हुए कहा था की अपने बच्चों को एक वक़्त की रोटी कम खिलाना लेकिन तालीम जरूर दिलाना। तालीम से ही इल्म होगा और इल्म से ही उनका जीवन दूसरों से जुदा होगा। काश ये बातें अतीक और शाइस्ता ने अपने होनहारों को बताया होता।
सवाल अब भी वही है - मौत तो हो गयी , सियासत भी गर्म है, लेकिन क्या यही न्यायोचित है ? सोचियेगा जरूर। हर मां के आंचल का जवाब, हर बेवा के सुहाग का जवाब, हर बच्चे के सूने बचपन का जवाब !! इस मौत को क्या नाम दूं।
लेखक- अजय, (मीडिया के विभिन्न संस्थानों में करीब 15 साल से ज्यादा का अनुभव है)