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प्रतापगढ़ के भयहरण नाथ धाम में अब 'डीजे' नहीं बजेंगे 'वाद्य' यंत्र

दीपेन्द्र तिवारी प्रतापगढ़, 15 मई (हि.स.)। प्रतापगढ़ जिले के प्रसिद्ध पांडव कालीन धाम भयहरण नाथ धाम में अब डीजे नहीं परम्परा से जुड़े वाद्य यंत्र बजेंगे। प्रबंध समिति और स्थानीय प्रबुद्ध समाज के साझा प्रयास से यह संभव हो पाया है। कोरोना काल में धाम परिसर को कान फोड़ू आवाज करने वाले डीजे से निजात मिल गई है। अब यहां फिर प्राचीन देशी वाद्ययंत्रों को बढ़ावा दिया जा रहा है। गौरतलब है कि धाम पर प्रत्येक मंगलवार को लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं व भक्तों की ओर से डीजे बजाने का प्रचलन शुरू हो गया था। जिससे आमजन के साथ भक्तों के मन को शान्ति नहीं अशान्ति मिलती थी। भयहरण नाथ धाम में प्रत्येक मंगलवार मेले में बड़ी संख्या में लोग प्राचीन काल से ध्वज पताका चढ़ाते आ रहे हैं। अब देशी वाद्ययंत्रों को परम्परागत रूप से बजाने वालों में खुशी है। प्रबंध समिति की ओर से जहां उनके हुनर को पुनः प्रतिष्ठित किया जा रहा है, वहीं उनकी रोजी रोटी भी अच्छे से चलने लगी है। प्रबंध समिति के महासचिव शेखर ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि एक डेढ़ दशक पूर्व लोग देशी बाजे गाजे के साथ ध्वज पताका चढ़ाते थे। परन्तु डीजे के धुन ने इस समाज के आम आवाम को भी प्रभावित किया है, जिससे यहां धाम पर लोग डीजे के साथ निशान लाना अपनी शान समझने लगे। बताया कि इसका दुष्प्रभाव यह हुआ की धाम पर स्थायी रुप से रहने वाले लोग बहरा हो गए। डीजे के कारण साधु—संतों, कार्यकर्ताओं और दुकानदारों को सुनाई कम पड़ने लगा था। लोग डीजे के साथ अनावश्यक गाने बजाते थे और आपस में लड़ाई झगडा भी करते थे। इतना ही नहीं लोग नशा करके भी आते थे जिससे अपना नियंत्रण खोये रहते थे। बताया कि सबसे अधिक परेशानी सैकड़ों दुकानदारों को होती थी, जो किसी भी ग्राहक से बात करने में अधिक ऊर्जा व्यय करते थे। बताया कि धार परिसर में डीजे को प्रतिबंधित करना एक बड़ी चुनौती थी। बड़े रसूखदार, गरीब और कम पढ़ा लिखा लोग मानने के लिए तैयार नहीं थे। प्रबंध समिति ने समाज के लोगों से निरन्तर संवाद किया, जिसका नतीजा है कि कोरोना काल में डीजे को प्रतिबंधित करने की पूर्ण सहमति बनी है। अब कोरोना के चलते 'डीजे' धाम परिसर में पूरी तरह से प्रतिबंधित है। समाजसेवी समाज शेखर ने बताया कि डीजे की तेज आवाज से भक्तों और श्रद्धालुओं को मंदिर में ध्वनि प्रदूषण झेलना पड़ता था, जिससे अब निजात मिल गयी है और कई लोगों को रोजगार का अवसर मिल रहा है। बताया कि वाद्ययन्त्र की एक टीम में पांच से सात लोग रहते हैं, जो पुरानी परंपरा के अनुसार भक्तिमय प्रस्तुति करते हैं। इसमें डीजे से बहुत कम खर्च पर लोगों का काम हो जाता है। परम्परागत वाद्ययंत्र से जुड़े धीरज कुमार ने बताया कि वाद्ययन्त्र से नया रोजगार सृजित हुआ है। पुरानी परम्परा जो खत्म हो रही थी, इसके जरिये उसे जीवंतता मिली है। अब हमलोगों का दायित्व है कि इस विलुप्त हो रही परंपरा को आगे बढ़ाया जाए। बताया कि हमारे द्वारा वाद्ययंत्र की तीन टीम बनाई गई है, जिससे पंद्रह लोगों को रोजगार मिला है, जो लगातार पुरानी परंपरा के अनुसार कार्य कर रही है। हिन्दुस्थान समाचार/

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