'उड़ता बनारस' पुस्तक में गंगाघाटी की पक्काप्पा संस्कृति बिखरने का दर्द,विस्थापन की पीड़ा
'उड़ता बनारस' पुस्तक में गंगाघाटी की पक्काप्पा संस्कृति बिखरने का दर्द,विस्थापन की पीड़ा

'उड़ता बनारस' पुस्तक में गंगाघाटी की पक्काप्पा संस्कृति बिखरने का दर्द,विस्थापन की पीड़ा

-वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. काशीनाथ सिंह ने पुस्तक को किया लोकार्पित,सराहा -लेखक सुरेश प्रताप बोले, विश्वनाथ कॉरिडोर ध्वस्तीकरण अभियान में पूरे घटनाक्रम को तिथि वार लिपिबद्ध करने का प्रयास वाराणसी,18 सितम्बर (हि.स.)। काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के तहत खरीदे गये भवनों, मंदिरों के ध्वस्तीकरण अभियान से पक्के महाल के रहवासियों के दर्द, विस्थापन की पीड़ा को वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह ने कलमबद्ध किया है। पत्रकार ने पुस्तक में ध्वस्तीकरण के दौरान मिले प्राचीन मंदिरों के तोड़फोड़ और साधु-संतों के विरोध, 'धरोहर बचाओ आंदोलन' के बारे में बेबाकी से लिखा है। सांस्कृतिक व सामाजिक सवालों को लेकर संजीदा पत्रकार ने मंदिर के विस्तार और कॉरिडोर के विकास की यात्रा में सैकड़ों साल पुराने भवनों को तोड़े जाने को अलग नजर से देखा है। पूरे घटनाक्रम को तिथि वार संकलित कर इसे लिपिबद्ध किया है। लेखक की पुस्तक 'उड़ता बनारस' का लोकार्पण बीते गुरूवार को जाने माने साहित्यकार प्रो. काशीनाथ सिंह ने सुंदरपुर ब्रिज एन्क्लेव कॉलोनी स्थित अपने आवास पर किया। अस्वस्थता के बावजूद उन्होंने किताब लिखने वाले पत्रकार का उत्साह वर्धन किया। प्रो.सिंह ने इस दौरान कहा कि जो लोग वर्तमान बनारस के बारे में जानना चाहते है। यह किताब उनके लिए महत्वपूर्ण है, इसे जरूर पढ़ना चाहिए। प्रो. सिंह ने पुस्तक की छपाई, कवर पेज के चित्र और शीर्षक 'उड़ता बनारस' की भी जमकर प्रशंसा की। सुरेश प्रताप ने शुक्रवार को केदारघाट स्थित श्री विद्या मठ में पुस्तक की प्रति शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को सौंपी। पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग देने के लिए लेखक ने स्वामीश्री का आभार भी जताया। वरिष्ठ पत्रकार ने 'हिन्दुस्थान समाचार' को बताया कि इस पुस्तक में ध्वस्तीकरण कार्य के दौरान वर्ष 2018 में हुए 'धरोहर बचाओ आंदोलन' और अन्तर विरोधों के कारण इसके बिखरने, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की पक्कामहाल की गलियों में पदयात्रा,वहां की वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश,मंदिर बचाओ आंदोलन का भी जिक्र है। उन्होंने कहा कि जो कुछ हमने देखा, महसूस किया, उसे लिखा। हम इसे गंगाघाटी की पक्काप्पा संस्कृति कहते हैं। गली संस्कृति सड़क सभ्यता का शिकार हो गई। इसी की कहानी है "उड़ता बनारस"। उन्होंने बताया कि पुस्तक में शहर में हो रही अन्य गतिविधियों व राजनीतिक हलचल को भी समेटने की कोशिश की गई है। गंगा में बढ़ते प्रदूषण व घाटों का भी जिक्र है। उन्होंने बताया कि पुस्तक को हड़प्पा के भाई गंगाघाटी की पक्काप्पा संस्कृति व सभ्यता की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले योद्धाओं को समर्पित किया है। पुस्तक में कुल 8 अनुक्रम है,लगभग 500 पेज की है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in