नई शिक्षा नीति में नवीनता, व्यापकता, उदारता व आत्मनिर्भरता
प्रयागराज, 03 अक्टूबर (हि.स.)। शिक्षा की जीर्ण-शीर्ण इमारत का पुनरूद्धार होने का वह बहुप्रतीक्षित क्षण आज 34 वर्षों बाद आ ही गया। अंग्रेजों के समय से चली आ रही घिसी-पिटी परिपाटी को तोड़कर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने शिक्षा का एक नया ढांचा प्रस्तुत किया गया है। इसमें नवीनता के साथ व्यापकता भी है। गरीब छात्र-छात्राओं के प्रति उदारता भी है और उनके भविष्य को संवारने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का सपना भी है। यह बातें प्रयागराज के लालगंज, बिहार स्थित राजकीय बालिका इण्टर कालेज की वरिष्ठ शिक्षिका रंजीता गुप्ता ने वार्ता के दौरान कहा कि शिक्षा के इस नवीन उद्यान में मातृभाषा के आंगन में भारत का भविष्य पुष्पित व पल्लवित होगा और विकास के सर्वांगीण लक्ष्य को निःसंदेह प्राप्त करेगा। वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुरूप इसमें बाल्यावस्था की नींव को मजबूत करने का आधार प्रदान किया है। बाल्यावस्था के विकास को दृष्टिगत रखते हुए एक नवीन पाठ्यक्रम की रचना का संकल्प लिया गया है। निःसंदेह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय शिक्षा के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी। जो भारत को आत्मनिर्भर और विश्व में अग्रणी बनाएगी। शिक्षा के इस नवीन प्रारूप को साकार करने के लिए जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च करने का फैसला सरकार ने किया है। कक्षा छह से छात्र-छात्राओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने की शुरूआत कोई नई बात नहीं है। अपितु यह महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा या हस्त कला आधारित शिक्षा से ही प्रेरित इसका संशोधित रूप है। उन्होंने कहा कि आए दिन स्कूल कालेजों की मनमानी फीस को लेकर अभिभावकगण विरोध करते रहे हैं। किन्तु समस्या हल न हो सकी। अतः राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के द्वारा स्कूल कॉलेजों की फीस पर नियंत्रण रखने के लिए एक तंत्र को बनाया जा रहा है। जो स्कूल कालेजों की फीस को अभिभावकों की अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने का कार्य करेगा। जिससे दोनों पक्षों को संतुष्ट किया जा सके। वर्तमान में अंग्रेजी के मकड़जाल में फंसी शिक्षा पाली, फारसी, प्राकृत तथा अन्य स्थानीय भाषाओं को भूल चुकी है। ये भाषाएं जनमानस की भाषा है। हमारी प्राचीन गौरवशाली भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। जिसे वर्तमान में जीवंत करने का संकल्प राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने लिया है। भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं विकास के लिए ‘भारतीय अनुवाद एवं व्याख्या संस्थान’ को स्थापित करने के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों में भाषा विभाग को मजबूत बनाने एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के माध्यम से मातृभाषा-स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा दिये जाने का सुझाव दिया है। इस सत्य से हम सभी परिचित हैं कि अपनी भाषा में पढ़ी-सुनी बातें हमें अधिक समझ में भी आती हैं और याद भी रहती है। कई छात्र सिर्फ इसलिए अन्य छात्रों से पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं क्योंकि उनको अध्यापक की भाषा ही समझ में नहीं आती। आज भी अधिकांश घरों में स्थानीय भाषा ही बोली जाती है। यदि इसी भाषा में पढ़ाई हो तो पढ़ाई एक बोझ न रहकर एक मनोरंजक मार्ग बन जाएगी। छात्र भाषा को समझने- रहने पर अधिक ध्यान देने की बजाय विषयवस्तु को समझने और आत्मसात् करने पर ध्यान देंगे। अभिभावक भी घरों में अपने बालकों की पढ़ाई में मदद कर सकेंगे। अतः हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भले ही देर में आयी हो लेकिन इसका कार्यक्रम, योजना, कार्यविधि इतनी प्रभावशाली है कि यह पिछली सभी शिक्षा योजनाओं की कमियों को दूर कर देगी। हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/मोहित-hindusthansamachar.in