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स्वर्गीय रावत के जीवन से प्रेरणा ले सकते हैं आज के राजनेता

अजमेर, 11 मई(हि.स.)। भीम निवासी जनसंघ नेता एडवोकेट शंकरलाल जैन (जनसंघ के संस्थापक सदस्य) ने शिक्षक रासा सिंह रावत की योग्यता,विद्धवता व सहजता को देखते हुए तत्कालीन जनता पार्टी से जोड़ा था। रासासिंह रावत के साथ भीम,टाटगढ़, मगरा का समूचा रावत समुदाय कांग्रेस के दामन से छिटक कर जनता पार्टी से जुड़ने लगा। ब्यावर के वरिष्ठ पत्रकार साथी सिद्धार्थ जैन ने जवाजा (ब्यावर,अजमेर) डाक बंगले की एक घटना का जिक्र करते रासासिंह रावत को पहली बार सांसद का चुनाव लड़ाए जाने की चर्चा का वाकिया बताया यह 89-90 का है। लोकसभा चुनाव होने थे। उम्मीदवारों पर मंथन चल रहा था। ’राजस्थान के बेजोड़ नेता भैरोसिंह शेखावत एडवोकेट शंकरलाल जैन से अजमेर व भीलवाड़ा के लिए उम्मीदवारी बाबत सलाह मशविरा कर रहे थे। जब उन्होंने अजमेर के लिए रासासिंह का नाम सुझाया...! शेखावत ठठाकर हंस पड़े! बोले एक मास्टर और लोकसभा का चुनाव! शंकर जी आज मैं ही मिला क्या?’ तब उन जनसंघी नेता ने पूरी तल्लीनता से शेखावत को अजमेर लोकसभा की गणित समझाई। समझाया कि यह रावत वोट बैंक रासासिंह की उम्मीदवारी पर कन्वर्ट हो सकता है। ’रासासिंह खुद भी जैन द्वारा उनकी इस कदर पैरवी से दंग व हतप्रभ रह गए।’ रावत ने कभी सपने में भी नहीं सोचा कि उनको सांसद का चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा! आखिर हुआ भी वो ही! टिकट भी मिला। पहली बार में ही वे सांसद बन गए। गौरतलब हैकि राजनीति के मौजूदा दौर में यदि कोई नेता एक बार पार्षद, विधायक, सांसद बन जाता है तो सात पीढियों का जुगाड़ आसानी से कर लेता है। लेकिन रासा सिंह रावत पांच बार अजमेर के सांसद रहे, पर अपना घर का मकान तक नहीं बनवाया। 10 मई को भी जब 84 वर्ष की उम्र में रावत ने अंतिम सांस ली, तब भी वे अजमेर के आदर्श नगर स्थित डीएवी शताब्दी स्कूल के परिसर में ही रह रहे थे। बहुत कम लोगों को पता है कि रासा सिंह ने अजमेर के आर्य समाज के अनाथालय में अपनी जीवन यात्रा शुरू की थी। चूंकि अनाथालय में पढ़े लिखे इसलिए रावत को आर्य समाज के स्कूलों में नौकरी भी मिल गई। कृष्ण राव बावले और दत्तात्रेय बावले ने अजमेर में आर्य समाज के शिक्षण संस्थानों का जो साम्राज्य खड़ा किया जिसमें रावत की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। विरजानंद और डीएवी हायर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल के पद तक पहुंचने के बाद भी रासा सिंह का जीवन सादगीपूर्ण रहा। पहले वे आर्य समाज के आवासों में रहे और फिर चांद बावड़ी में एक किराये के मकान में रहे। रासा सिंह तीन बार विधानसभा चुनाव हारे लेकिन पांच बार लोकसभा का चुनाव जीते। पांच बार सांसद चुने जाने के बाद भी रावत जीवन भर सादगी के साथ रहे। पूर्व में जब अनेक जनप्रतिनिधि सांसद कोटे में मिलने वाले टेलीफोन और रसोई गैस के कनेक्शन की कालाबाजारी करते थे, तब रावत ने अपने सांसद कोटे से जरूरतमंद लोगों को टेलीफोन और रसोई गैस के कनेक्शन दिलवाए। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में रावत ने संपत्ति का साम्राज्य नहीं बनाया। रावत के सबसे बड़े पुत्र विक्रम सिंह रावत इन दिनों एसीबी में एएसपी के पद पर कार्यरत हैं। विक्रम सिंह अपनी योग्यता के आधार पर सब इंस्पेक्टर चयनित हुए थे। दूसरे पुत्र तिलक सिंह इन दिनों पेट्रोल पंप का संचालन कर रहे हैं, जबकि तीसरे पुत्र महेन्द्र सिंह आईटी कंपनी में कार्यरत हैं। रावत की पुत्री पुष्पा रावत साधारण शिक्षिका हैं। चूंकि रासा सिंह रोजाना योग आदि करते थे, इसलिए जीवन भर स्वस्थ रहे, लेकिन कोरोना ने उनकी जान ले ली। 7 मई को ऑक्सीजन लेवल कम होने की वजह से रावत को अजमेर के जेएलएन अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। लेकिन अगले ही दिन रावत का ऑक्सीजन लेवल 95 से ऊपर आ गया इसलिए डॉक्टरों ने छुट्टी दे दी। अब कहा जा रहा है कि 10 मई को सायं पांच बजे रावत को कार्डियक अरेस्ट हुआ जिसकी वजह से उनकी जान चली गई। मौजूदा दौर के राजनेता रावत के जीवन से प्रेरणा ले सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/संतोष/ ईश्वर

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